गौरी व्रत पूजा कैसे करें, क्या है शुभ मुहूर्त साथ में गौरी व्रत की कथा और सौभाग्य की शुभकामनाएं
mangala gauri vrat 2022
सावन मंगलवार का पहला मंगला गौरी इस बार 19 जुलाई 2022 (Mangla Gauri Vrat 2022 Dates) को रखा जाएगा। इसके साथ ही इस माह 26 जुलाई को दूसरा, 2 अगस्त को तीसरा तथा 9 अगस्त को चौथा मंगलवारी गौरी व्रत मनाया जाएगा। यहां जानिए कैसे करें गौरी व्रत पूजा, शुभ मुहूर्त और कथा और शुभकामनाएं...
मंगला गौरी व्रत विशेष तौर पर महिलाओं के लिए है। इस व्रत में पूजन सावन महीने के सभी मंगलवारों को किया जाता है। इस दिन गौरी जी की पूजा होती है। यह व्रत मंगलवार को किया जाता है, अत: इसे मंगला गौरी व्रत कहते हैं। यह व्रत सावन माह के 16 या 20 मंगलवारों तक यानी करीब चार-पांच वर्ष करने का विधान है। सावन मंगलवार का पहला मंगला गौरी इस बार 19 जुलाई 2022 को रखा जाएगा। आइए जानें गौरी व्रत पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और कथा
Mangala Gauri Puja Vidhi-गौरी पूजा व्रत कैसे करें-
मंगला गौरी पूजन के दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
तत्पश्चात एक पट्टे या चौकी पर लाल और सफेद कपड़ा रखें।
सफेद कपड़े पर 9 ढेरी चावल की और लाल कपड़े पर 16 ढेरी गेहूं की बनाएं।
उसी पट्टे पर थोड़े से चावल रखकर गणेश जी की स्थापना करें।
पट्टे के एक अन्य कोने पर गेहूं की एक छोटी-सी ढेरी बनाकर उस पर जल से भरा कलश रखें।
कलश में आम की एक पतली-सी शाखा भी डाल दें।
इसके बाद आटे का 1 चौमुखा दीपक व 16 धूपबत्ती जलाएं।
अब सबसे पहले गणेश जी की व बाद में कलश की विधिवत पूजा करें।
अब एक सरवा (सकोरा) में गेहूं का आटा रखकर, उस पर सुपारी और जो दक्षिणा रखें, उसे आटे में दबा दें।
फिर बेलपत्र चढ़ाकर पुनः कलश की पूजा करें। कलश पर सिंदूर व बेलपत्र न चढ़ाएं।
इसके बाद चावल की जो 9 ढेरियां (नवग्रह) बनाई थीं, उनकी पूजा करें।
तत्पश्चात गेहूं की 16 ढेरियों (षोडश मातृका) की पूजा करें।
इन पर हल्दी, मेहंदी तथा सिंदूर चढ़ाएं परंतु खाली जनेऊ न चढ़ाएं।
इसके बाद कलावा, मौली लेकर पंडित जी को बांधें तथा उनसे अपने हाथ में भी बंधवाएं।
अब मंगला गौरी का पूजन करें।
गौरी पूजन के लिए एक थाली में चकला रख लें।
खस पर गंगा की मिट्टी से गौरीजी की मूर्ति काढ़ लें या मूर्ति बना लें।
आटे की एक लोई बनाकर रख लें।
पहले मंगला गौरी की मूर्ति को जल, दूध, दही, घी, चीनी, शहद आदि का पंचामृत बनाकर स्नान कराएं।
स्नान कराकर कपड़े पहनाएं और नथ पहनाकर रोली, चन्दन, सिंदूर, हल्दी, चावल, मेहंदी, काजल लगाकर 16 तरह के फूल चढ़ाएं।
इसी प्रकार गौरी जी को 16 माला, 16 तरह के पत्ते, आटे के 16 लड्डू, 16 फल व 5 तरह के मेवे 16 बार चढ़ाएं।
इसी तरह 16 बार 7 तरह के अनाज, 16 जीरा, 16 धनिया, 16 पान, 16 सुपारी, 16 लौंग, 16 इलायची, एक सुहाग की डिब्बी, एक डिब्बी में तेल, रोली, मेहंदी, काजल, हिंगुल सिंदूर, कंघा, शीशा, 16 चूड़ी व दक्षिणा चढ़ाएं।
अंत में गौरी जी की कथा सुनें।
इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा- Pujan Muhurat
इस बार सावन का पहला मंगला गौरी व्रत सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जाएगा। जिसका समय सुबह 05.35 मिनट से दोपहर 12.12 मिनट तक रहेगा। माता पार्वती की पूजा इस मुहूर्त में करना अधिक उचित होगा। इसी दिन सुबह 05.35 से दोपहर 12.12 मिनट तक रवि योग तथा सुकर्मा योग भी रहेगा, जो कि दोपहर 01.44 मिनट से प्रारंभ होकर पूरी रात तक रहेगा। धार्मिक एवं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह तीनों ही योग शुभ माने गए हैं तथा इस योग में किए गए कार्य सफल होकर उनका पूरा लाभ प्राप्त होता है।
मंगला गौरी व्रत की कथा- Mangala Gauri Vrat Katha
Mangala Gauri Vrat Katha पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी काफी खूबसूरत थी और उसके पास काफी संपत्ति थी। लेकिन उनके कोई संतान नहीं होने के कारण वे काफी दुखी रहा करते थे। ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था।
उसे यह श्राप मिला था कि 16 वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। संयोग से उसकी शादी 16 वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती थी। अत: अपनी माता के इसी व्रत के प्रताप से धरमपाल की बहु को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई।
इस वजह से धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की। तभी से ही मंगला गौरी व्रत की शुरुआत मानी गई है। इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं और अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।
जो महिला उपवास का पालन नहीं कर सकतीं, वे भी कम से कम पूजा तो करती ही हैं। इस कथा को सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को 16 लड्डू देती है। इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती है। इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती 16 बाती वाले दीये से देवी की आरती करती है। व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विसर्जित कर दी जाती है।
अंत में मां गौरी के सामने हाथ जोड़कर अपने समस्त अपराधों के लिए एवं पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगना चाहिए। इस व्रत और पूजा को परिवार की खुशी के लिए लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है। अत: शास्त्रों के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमों के अनुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र-पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं, ऐसी इस व्रत की महिमा है।
व्रत की शुभकामनाएं-
मंगला गौरी व्रत से व्रतधारी के सुहाग की लंबी उम्र होती है।
यह व्रत के करने से माता गौरी मनचाहा वरदान देती हैं।
इस व्रत से घर में सुख-शांति, सौभाग्य एवं खुशियां बनी रहती हैं।
यह व्रत पति तथा बच्चों की अच्छी किस्मत के लिए हैं।