मंगला गौरी व्रत, 30 जुलाई 2019 : महत्व, पूजा विधि और कथा
मंगला गौरी का व्रत श्रावण मास के प्रति मंगलवार को किया जाता है। यह व्रत माता पार्वती यानी गौरी को समर्पित है। महाराष्ट्रीयन समाज में यह उनका श्रावण आरंभ होने पर किया जाता है लेकिन अन्य प्रांतों में इसे श्रावण मास के प्रथम मंगलवार से किया जाता है।
क्यों किया जाता है व्रत : कुंवारी कन्या, जिसके विवाह में बाधा आ रही है, वैवाहिक जीवन में खुशहाली के लिए, पुत्र की प्राप्ति, पति/पुत्र की लंबी आयु, व अन्य सौभाग्य सुखों के लिए कुंवारी कन्या या सौभाग्यशाली-सुहागन स्त्री के द्वारा, इस व्रत को किया जाता है।
मंगला गौरी पूजन कब किया जाता है?
गौरी पूजन नाम से स्पष्ट है, मां गौरा अर्थात् माता पार्वती के लिए यह व्रत किया जाता है। पुराणों के अनुसार, भगवान शिव-पार्वती को श्रावण माह अति प्रिय है। यह व्रत श्रावण माह के मंगलवार को ही किया जाता है। इसलिए इसे मंगला गौरी कहा जाता है।
मंगला गौरी पूजन की आवश्यक सामग्री : गौरी पूजन में सुहाग के समान और 16-16 वस्तुओं का बहुत महत्व है।
आवश्यक सामग्री
1. चौकी/पाटा/बाजोट, जो भी उपलब्ध हो ,पुजा के लिए रख लें।
2. सफेद व लाल कपड़ा व कलश
3. गेंहू व चावल
4. आटे का चौ-मुखी दीपक, अगरबत्ती, धुपबत्ती, कपूर, माचिस
5. 16-16 तार की चार बत्ती
6. साफ व पवित्र मिट्टी, माता गौरा की प्रतिमा बनाने के लिए
7. अभिषेक के लिए साफ जल, दूध, पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर का मिश्रण)।
(जिसमें सिंदूर,बिंदी,नथ,काजल,मेहंदी,हल्दी,कंघा,तेल,शीशा,16 चूड़ियां, बिछिया, पायल, नैलपॉलिश, लिपस्टिक, बालों की पिन, चूनरी आदि शामिल हो)
14. इच्छानुसार नैवेद्य/प्रसाद
मंगला गौरी पूजा की विधि
* यह व्रत श्रावण के प्रथम मंगलवार से शुरू होता है व श्रावण के हर मंगलवार को किया जाता है। पूजा करने के पहले स्नान कर, कोरे वस्त्र पहनते हैं।
* पूर्व दिशा की तरफ मुंह कर बैठें, व बड़ी चौकी लगाएं उस चौकी पर आधे में सफेद कपड़ा बिछा कर चावल की 9 छोटी-छोटी ढेरी बनाएं अब उसी चौकी पर आधे में लाल कपड़ा बिछा कर गेंहू की 16 ढेरी बनाएं।
* अब चौकी पर थोड़े से चावल अलग से रख कर, पान के पत्ते पर स्वास्तिक बनाकर, उस पर गणेशजी की प्रतिमा रखें। ठीक उसी तरह, गेंहू की अलग से ढेरी कर उस पर कलश रखें। उस पर पांच पान के पत्ते रख, नारियल रखें। और चौकी पर चौमुखी दीपक व उसमें 16 तार की बत्ती लगाकर प्रज्वलित करें।
* सर्वप्रथम, प्रथम पूज्य गणेशजी की प्रतिमा का विधि विधान से स्नानादि करा कर, वस्त्र स्वरूप जनेऊ चढ़ा कर, रोली-चावल,सिंदूर चढ़ाकर पूजन कर भोग लगाएं ठीक उसी तरह, रोली-चावल से कलश और दीपक का पूजन करें। उसके बाद चावल की जो 9 ढेरी है,वह नवग्रह स्वरूप है तथा गेंहू की 16 ढेरी षोडषमातृका माता का स्वरूप मान विधिविधान से पूजा करें।
* अब एक थाली में पवित्र तथा साफ मिट्टी ले कर, मां गौरा की प्रतिमा बना कर,पूरी श्रद्धा से प्रतिमा को चौकी पर रखें। अब सबसे पहले प्रतिमा को जल दूध पंचामृत से स्नानादि करा कर अभिषेक कर, वस्त्र धारण कराएं।
* मां गौरी की रोली-चावल से पूजा कर सोलह श्रंगार की वस्तु चढ़ाएं। फिर 16 तरह की सभी चीजों- फूल, माला, फल, पत्ते, आटे के लड्डू, पान, सुपारी, लौंग, इलायची तथा पंचमेवा तथा प्रसाद रखें।
* अब कथा कर, मंत्र का जाप कर आरती करें। हर मंगलवार को पूजन के बाद अगले दिन, मां गौरा की प्रतिमा को किसी तालाब या नदी में, पूरी श्रद्धा से विसर्जित करें। मन्नत अनुसार यह व्रत पूर्ण कर उद्यापन करें।
मंगला गौरी पूजा व्रत की कथा
व्रत कथा:
एक नगर में एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ सुखी से जीवन जी रहा था। उसे धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी।
इसलिए सारी सुख सुविधाएं होते हुए थी दोनों पति पत्नी खुश नहीं रहते थे।
खूब पूजा अर्चना करने के बाद उन्हें पुत्र का वरदान प्राप्त हुआ। लेकिन ज्योतिषियों ने कहा कि वह अल्पायु है और 17 साल का होते ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस बात को जानने के बाद पति-पत्नी और भी दुखी हो गए। लेकिन उन्होंने इसे ही अपना और पुत्र का भाग्य मान लिया।
कुछ समय बाद उन्होंने अपने बेटे की शादी एक सुंदर और संस्करी कन्या से कर दी। वह कन्या सदैव मंगला गौरी का व्रत करती और मां पार्वती का विधिवत पूजन करती थीं। मंगलागौरी व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त था।इसके परिणाम स्वरुप सेठ के पुत्र की मृत्यु टल गई और उसे दीर्घायु प्राप्त हुई।