हमारे सनातन धर्म में पूजा-पाठ व कर्मकाण्ड में संकल्प का विशेष महत्त्व होता है। ऐसी मान्यता है कि बिना संकल्प किए कोई पूजा-पाठ सफ़ल नहीं होता। इसलिए प्रत्येक कर्मकाण्ड से पूर्व यजमान का संकल्प करवाना आवश्यक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब पण्डितगण आपसे किसी कार्य हेतु संकल्प करवाते हैं तब संकल्प के उच्चारण में 'जम्बूद्वीपे भरतखण्डे' क्यों बोलते हैं?
ऐसा इसलिए बोला जाता है क्योंकि भारत जिसका पूर्व नाम अजनाभ वर्ष था, जम्बूद्वीप में स्थित है, जिसके स्वामी महाराज आग्नीध्र थे। आग्नीध्र स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत के ज्येष्ठ पुत्र थे। प्रियवत समस्त भू-लोक के स्वामी थे। उनका विवाह विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मती से हुआ था। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्र व एक कन्या थी। महाराज प्रियव्रत ने अपने सात पुत्रों को सप्त द्वीपों का स्वामी बनाया था, शेष तीन पुत्र बाल-ब्रह्मचारी हो गए थे। इनमें आग्नीध्र को जम्बद्वीप का स्वामी बनाया गया था। आग्नीध्र के पुत्र महाराज नाभि एवं महाराज नाभि के पुत्र ऋषभदेव थे जिनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा।