धरती पर कल्पवृक्ष के समान एवं समस्त मासों में श्रेष्ठ पुरुषोत्तम मास में यदि हम शास्त्रोक्त नियमों और व्रतों का पालन करें तो इस पवित्र मास का पूर्ण लाभ लिया जा सकता है। आइए जानते हैं कुछ नियम, जो अत्यंत ही सरल और सहज हैं।
शुद्धि और नित्य क्रियाओं का विशेष ध्यान रखें। दिन में दो बार स्नान करना चाहिए। यदि बीच में कभी पूजा में बैठ रहे हैं तो तब भी स्नान करना चाहिए। पुरुषों को संध्यावंदन, ब्रह्मयज्ञ, नित्य होम आदि पूर्ववत करना चाहिए। इस पूरे मास ब्रह्मचर्य से रहें (स्त्री संसर्ग न करें)।
व्रत और उपवास- यदि संभव हों तो पूरे पुरुषोत्तम मास में केवल रात्रि में भोजन करना चाहिए, परंतु यदि ऐसा संभव न हों तो कम से कम अमावस्या, पूर्णिमा, दोनों एकादशी और पुरुषोत्तम मास के अंतिम 5 दिवस व्रतपूर्वक रहना चाहिए (विशेष : एकादशी के दिन सामान्य एकादशियों जैसे ही अन्न बिलकुल नहीं खाना चाहिए)।
नित्य की स्तुतियां और पाठ- नित्य चतु:श्लोकी भागवत, गोपाल सहस्रनाम, श्री कृष्णाष्टकम् आदि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। नित्य श्रीमद्भागवत पढ़ना अथवा सुनना चाहिए। पुरुषोत्तम मास महात्म्य का नित्य पाठ करना चाहिए। श्रद्धापूर्वक भजन-कीर्तन करना चाहिए।
भोजन- प्याज, लहसुन, गाजर, मूली आदि का त्याग कर देना चाहिए। बन सके तो केवल गाय का दूध पीना चाहिए (भैंस/बकरी का नहीं)। संभव हों तेल का त्याग करें और शुद्ध घी में भोजन पकाएं। बासी और दुबारा गर्म किया भोजन न करें। बाहर से आने वाले/ बनने वाले भोजन का सेवन न करें।