3 जून 2019 को है शनि जयंती, जानिए क्या करें इस दिन, कौन से पढ़ें मंत्र
भगवान शनि न्याय के देवता हैं। वे गलत को दंड और सही को पारितोषिक देते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के कई उपाय हैं। 3 जून 2019 को शनि जयंती का शुभ पर्व है। आइए जानें क्या करें उस दिन, कैसे करें आराधना...
कैसे करें पूजा : शनि जयंती के दिन उपवास रखा जाता है। व्रती को प्रात:काल उठने के पश्चात नित्यकर्म से निबटने के पश्चात स्नानादि से स्वच्छ होना चाहिए। इसके पश्चात लकड़ी के एक पाट पर साफ-सुथरे काले रंग के कपड़े को बिछाना चाहिए। कपड़ा नया हो तो बहुत अच्छा अन्यथा साफ अवश्य होना चाहिए। फिर इस पर शनिदेव की प्रतिमा स्थापित करें। यदि प्रतिमा या तस्वीर न भी हो तो एक सुपारी के दोनों तरफ शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाएं। इसके पश्चात धूप जलाएं। फिर इस स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवाएं। सिंदूर, कुमकुम, काजल, अबीर, गुलाल आदि के साथ-साथ नीले या काले फूल शनिदेव को अर्पित करें। इमरती व तेल से बने पदार्थ अर्पित करें। श्री फल के साथ-साथ अन्य फल भी अर्पित कर सकते हैं। पंचोपचार व पूजन की इस प्रक्रिया के बाद शनि मंत्र की एक माला का जाप करें। माला जाप के बाद शनि चालीसा का पाठ करें। फिर शनिदेव की आरती उतार कर पूजा संपन्न करें।
शनि जयंती 2019 कब है
3 जून 2019 को शनि जयंती है
अमावस्या तिथि आरंभ - 16:39 बजे (2 जून 2019)
अमावस्या तिथि समाप्त - 15:31 बजे (3 जून 2019)
शनि कब अशुभ फल देते हैं: अगर किसी जातक की जन्मकुंडली में शनि नीच राशिगत, वक्री, अशुभ स्थान का स्वामी होकर अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो शनि अपनी महादशा, अंतर्दशा, साढ़ेसाती या ढैया अवधि, जन्म, शनि पर गोचर या शनि का गोचर होने पर अशुभ फल देते हैं।
शनि के अशुभ फल : व्यवसाय, नौकरी व कार्यों में बाधाएं, अस्वस्थता, मानसिक अशांति, पारिवारिक अशांति, धन-संचय में कमी, परेशानीपूर्ण यात्राएं, मित्रों से मतभेद, संतान संबंधी चिंता, सट्टा में हानि, शत्रुओं द्वारा परेशानी, मुकदमा-बाजी, लाभ व मान प्रतिष्ठा में बाधाएं, धन आगमन अवरुद्ध होना, व्यय का योग अधिक, हानि, ऋण में डूबना आदि।
अशुभता कैसे दूर करें : ग्रहों की अशुभता को दूर करने के लिए उनसे संबंधित मंत्रों के जाप करने से सफलता मिलती है। साथ ही ग्रह विशेष के मंत्र जाप से ग्रह की शुभता एवं बल में वृद्धि होती है। ज्योतिष के अनुसार शनि जयंती या प्रति शनिवार के दिन शनि की पूजा विशेष रूप से करें।
क्या करें : शनि जयंती को अखंड नारियल नदी में प्रवाहित करने से शांति मिलती है। शनि जयंती को हनुमान चालीसा का पाठ करने तथा शनिदेव के दर्शन कर तेल चढ़ाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
शनिदेव को शांत करने के लिए दान और पूजन का विधान है। शनि की अनिष्टता निवारण के लिए शनि जयंती को शनिदेव के मंदिर में तेल चढ़ाएं व दान करें। काले तिल, काली उड़द, लोहा, काले वस्त्र, काली कंबल, छाता, चमड़े के जूते, काली वस्तुएं आदि का दान करें। शनिदेव के मंदिर के बाहर पुराने जूते और वस्त्रों का त्याग करना भी फायदा देता है।
शनि जयंती पर शनिदेव का व्रत रखने से भी शनि प्रसन्न होते हैं। शनि की अनिष्टता निवारण के लिए शनि जयंती का एकाशना करना चाहिए। अगर व्रत न कर सकें तो मांसाहार व मदिरापान नहीं करना चाहिए और संयमपूर्वक प्रभु स्मरण करना चाहिए।
शनि मुद्रिका से पहुंचता है लाभ : ज्योतिष विशेषज्ञ की सलाह अनुसार काले घोड़े के खुर की नाल की अभिमंत्रित अंगूठी मध्यमा अंगुली में धारण करनी चाहिए।
शनि पीड़ा निवारण रत्न : शनि दोष निवारण के लिए शनि रत्न नीलम धारण करना चाहिए लेकिन यह केवल तुला, वृषभ, मकर, कुंभ राशि या लग्न के व्यक्तियों को ही धारण करना चाहिए। शनिदोष के निवारण हेतु शुभ मुहूर्त में अनुष्ठान से अभिमंत्रित किया हुआ शनि यंत्र धारण करने से शनि की पीड़ा शांत हो जाती है।
पूजा किस देवता की करें : शनिदोष से पीड़ित जातकों को भगवान् शिव, सूर्य, हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए। भगवान शिव, सूर्य व हनुमान की आराधना करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और शनि की पीड़ा शांत हो जाती है।
शनि दोष निवारण के लिए नित्य भगवान् शिव के पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' का जप करना चाहिए तथा महामृत्युंजय मंत्र- 'ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्' का जप करना चाहिए।
इसके अलावा सूर्य नारायण के 'ॐ घृणिं सूर्याय नमः' मंत्र का जाप तथा 'आदित्य हृदय स्तोत्र' का प्रातः पाठ करना चाहिए।
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार तथा मंगलवार को महावीर हनुमानजी की आराधना करें। ‘ॐ हनुमते नमः’ मंत्र का जप करना चाहिए। नित्य 'हनुमान चालीसा' व 'सुंदरकांड' का पाठ करने से अशुभ समय में अशुभ प्रभावों में निश्चित रूप से कमी होती है।
शनि जयंती पर पढ़ें ये मंत्र :
शनिदेव को प्रसन्न करने के सिद्ध मंत्र
वैदिक शनि मंत्र: ॐ शन्नोदेवीर- भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।