सोम प्रदोष व्रत के दिन अद्भुत संयोग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन सामग्री, विधि, मंत्र, उपाय एवं कथा
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार त्रयोदशी तिथि के दिन जब सोमवार आता है, उस दिन सोम प्रदोष व्रत (Som Pradosh Vrat) रखा जाता है। इस वर्ष सोम प्रदोष व्रत माघ शुक्ल त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाएगा, जोकि सोमवार, 13 फरवरी 2022 को पड़ रही है। इस बार सोमवार को प्रदोष व्रत (Som Pradosh Vrat 2022) के दिन 3 बहुत ही शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि, रवि योग और आयुष्मान योग का अद्भुत संयोग बना रहा है।
पुराणों में प्रदोष व्रत की बहुत महिमा बताई गई है। एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों का दान करने के बराबर मिलता है। इस दिन सच्चे मन से प्रदोष काल में भगवान शिव जी की पूजा करने से हर कष्ट से मुक्ति मिलती है तथा मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। अत: इस दिन भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए यह प्रदोष व्रत पूरे मन से करना चाहिए। प्रदोष में बिना कुछ खाए ही व्रत रखने का विधान है। ऐसा करना संभव न हो तो एक बार फल खाकर उपवास कर सकते हैं। यहां पढ़ें कथा, पूजन सामग्री, विधि, शुभ योग, पूजा मुहूर्त एवं मंत्र-
प्रदोष व्रत पूजन के शुभ मुहूर्त-Pradosh vrat shubh muhurt
माघ, शुक्ल त्रयोदशी 14 फरवरी, सोमवार।
त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ- रविवार, 13 फरवरी 2022 को सायं 6.42 मिनट पर शुरू।
त्रयोदशी तिथि की समाप्ति- 14 फरवरी को रात 8.28 मिनट पर।
सर्वार्थ सिद्धि योग में त्रयोदशी तिथि इस दिन 11.53 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी मंगलवार, 15 फरवरी को सुबह 07 बजे तक रहेगी। रवि योग दिन में 11.53 मिनट से शुरू होकर सर्वार्थ सिद्धि योग के समय तक जारी रहेगा तथा इसी दिन आयुष्मान योग रात्रि 09.29 मिनट तक रहेगा फिर सौभाग्य योग की शुरुआत होगी।
आज का राहुकाल- सोमवार प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक।
प्रदोष व्रत पूजन सामग्री-Pradosh Vrat Samgri List
पवित्र जल,
गाय का कच्चा दूध,
दही,
गंगा जल,
रोली,
मौली,
बिल्व पत्र,
गंध,
चावल,
फूल,
धूप,
दीप,
फल,
पान,
सुपारी,
लौंग,
इलायची,
जनेऊ,
धतूरा,
भांग,
कपूर,
शहद,
इत्र,
रूई,
चंदन,
श्रृंगार सामग्री,
नैवेद्य,
आदि।
पूजन विधि- lord shiva puja vidhi
- सोम प्रदोष व्रत के दिन व्रतधारी को सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव जी की पूजा करनी चाहिए।
- पूजन के समय भगवान शिव, माता पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगा जल से स्नान कराकर बिल्व पत्र, गंध, चावल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं।
- त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से 3 घड़ी पूर्व शिवजी का पूजन करना चाहिए।
- सायंकाल प्रदोष के समय पुन: स्नान करके इसी तरह से शिव जी की पूजा करें।
- भगवान शिव जी को घी और शकर मिले मिष्ठान्न अथवा मिठाई का भोग लगाएं।
- अब आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं।
- इसके बाद शिव जी की आरती करें।
- रात्रि जागरण करके शिव मंत्र 'ॐ सों सोमाय नम:' या 'ॐ नम: शिवाय' का जाप करें।
- इस तरह व्रत करने वालों की हर इच्छा पूरी हो सकती है।
उपाय- सोम प्रदोष के शुभ योग में पारद शिवलिंग को घर के पूजा स्थान पर स्थापित करना चाहिए।
- यदि प्रतिदिन घर में पारद शिवलिंग का पूजन किया जाए तो पितृ दोष, कालसर्प दोष, वास्तु दोष आदि समाप्त हो जाते हैं और जीवन में शुभ समय का आगमन शुरू हो जाता है।
सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई।
वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया।
कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा।
राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं।
अत: सोम प्रदोष व्रत करने वाले भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए। इस व्रत से शिव जी प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं।