सूर्य धनु संक्रांति : 16 दिसंबर को सूर्य के राशि परिवर्तन के साथ ही बंद होंगे मांगलिक कार्य

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सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। धनु राशि में सूर्य के प्रवेश करते ही खरमास आरंभ हो जाएगा। इस माह में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। 
 
16 दिसंबर की सुबह सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेंगे इसे धनु संक्रांति कहा जाएगा। ये देवगुरु बृहस्पति की राशि है। धनु राशि में सूर्य के आ जाने से मौसम में बदलाव होंगे, जिससे देश के कुछ हिस्सों में बारिश हो सकती है। जिससे ठंड भी बढ़ सकती है। इस राशि में सूर्य 15 जनवरी तक विराजमान रहेंगे। 
 
16 दिसंबर, बुधवार की सुबह करीब 4 बजे सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य के इस राशि परिवर्तन से सामान्य काम कर के जीवनयापन कर रहे लोगों को शुभ फल मिलेगा। 
 
साल में 2 बार सूर्य बृहस्पति की राशि में आते हैं और एक महीने के लिए रहते हैं। 16 दिसंबर से 15 जनवरी तक धनु और 15 मार्च से 15 अप्रैल तक मीन राशि में सूर्य विचरण करते हैं। जब सूर्य और बृहस्पति का संयोग बनता है तो 2 महीनों में किसी भी तरह के मांगलिक काज नहीं किए जाते हैं।
 
- 16 दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में जाते ही खरमास शुरू हो जाएगा। खरमास के लगते ही मांगलिक कार्यों पर एक बार फिर रोक लग जाएगी। एक माह तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होंगे।
 
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार खरमास में सभी प्रकार के शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, सगाई, गृहप्रवेश के साथ व्रतारंभ एवं व्रत उद्यापन आदि वर्जित होते हैं।
 
- सूर्यदेव एक राशि में एक माह तक रहते हैं। इसके बाद ये राशि परिवर्तन करते हैं जिसे संक्रांति कहते हैं जिस भी राशि में सूर्य जाते हैं उसी राशि के नाम से संक्रांति जानी जाती है।
 
- ऐसे ही जब सूर्यदेव धनु राशि में प्रवेश करते हैं तब खरमास लगता है। मीन संक्रांति होने पर भी खरमास लगता है।
 
- सूर्य जब-जब गुरु की राशि यानी धनु राशि में रहता है तब तक खरमास माना जाता है। इस समय मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। 
 
खरमास में मांगलिक कार्यों के संपन्न नहीं होने का एक वैज्ञानिक आधार भी है। सूर्य जब गुरु की राशि धनु और मीन में प्रवेश करता है तो इससे गुरु निस्तेज हो जाते हैं, उनका प्रभाव समाप्त हो जाता है। शुभ कार्यों के लिए गुरु का पूर्ण बलशाली अवस्था में होना आवश्यक है। इसलिए इस एक माह के दौरान शुभ कार्य करना वर्जित रहता है। खासकर विवाह तो बिल्कुल नहीं किए जाते हैं क्योंकि विवाह के लिए सूर्य और गुरु दोनों को मजबूत होना चाहिए।
 
एक माह बाद मकर राशि में 
सूर्य एक माह बाद मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस खास दिन को मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके दान किया जाता है। इस दिन से उत्तरायण प्रारंभ होता है, यानी सूर्य अगले 6 महीने के लिए उत्तरायण होता है। जिसे देवताओं का दिन कहा गया है। विवाह सहित समस्त शुभ कार्य इस दिन से प्रारंभ हो जाते हैं।
भगवान विष्णु का पूजन
खरमास के प्रतिनिधि आराध्य देव भगवान विष्णु हैं। इसलिए इस माह के दौरान भगवान विष्णु की पूजा नियमित रूप से करना चाहिए। खरमास में आने वाली दोनों एकादशियों का भी विशेष महत्व होता है। इनमें व्रत रखकर विधि -विधान से भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस मास में प्रतिदिन स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु के मंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: का तुलसी की माला से जाप करें। इस दौरान पीपल के वृक्ष में नियमित जल और कच्चा दूध अर्पित करने से धन-सुख, वैभव की प्राप्ति होती है। दान, पुण्य, जप और भगवान का ध्यान लगाने से कष्ट दूर हो जाते हैं।
 
वैज्ञानिक पक्ष
सूर्य की तरह गुरु ग्रह में भी हाइड्रोजन और हीलियम की उपस्थिति है। सूर्य की तरह इसका केंद्र भी द्रव्य से भरा हुआ है, जिसमें अधिकतर हाइड्रोजन ही है। पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित सूर्य तथा 64 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित बृहस्पति ग्रह में वर्ष में एक बार ऐसे जमाव में आते हैं जिनकी वजह से बृहस्पति के कण काफी मात्रा में पृथ्वी के वायुमंडल में पहुंचते हैं। ये कण एक-दूसरे की कक्षा में आकर अपनी किरणों को आंदोलित करते हैं। उक्त कारण से व्यक्ति की मानसिक स्थिति में भी परिवर्तन आता है, जिससे मांगलिक कार्यों में व्यवधान संभावित है। इसी कारण से मंगल कर्म करना निषेध हैं।

धनु संक्रांति के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ किया जाता है। भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवा आदि का भोग तैयार किया जाता है। सत्यनारायण की कथा के बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है और चरणामृत का प्रसाद दिया जाता है। जो लोग विधि के साथ पूजन करते हैं उनके सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
 
खरमास:  
संस्कृत में गधे को खर कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में खरमास की कथा के अनुसार भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं। उन्हें कहीं पर भी रूकने की इजाजत नहीं है। मान्यता के अनुसार उनके रूकते ही जन-जीवन भी ठहर जाएगा। लेकिन जो घोड़े उनके रथ में जुड़े होते हैं वे लगातार चलने और विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं।
 
उनकी इस दयनीय दशा को देखकर सूर्यदेव का मन भी द्रवित हो गया। वे उन्हें एक तालाब के किनारे ले गए, लेकिन उन्हें तभी यह ध्यान आया कि अगर रथ रूका तो अनर्थ हो जाएगा। लेकिन घोड़ों का सौभाग्य कहिए कि तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे। भगवान सूर्यदेव घोड़ों को पानी पीने और विश्राम देने के लिए छोड़े देते हैं और खर अर्थात गधों को अपने रथ में जोत देते हैं।
 
अब घोड़ा-घोड़ा होता है और गधा-गधा, रथ की गति धीमी हो जाती है फिर भी जैसे-तैसे एक मास का चक्र पूरा होता है तब तक घोड़ों को विश्राम भी मिल चुका होता है, इस तरह यह क्रम चलता रहता है और हर सौर वर्ष में एक सौर खर मास कहलाता है।

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