इस साल शुक्र कब-कब बदलेंगे अपनी चाल, जानिए सारे गोचर एक साथ
ज्योतिष में शुक्र शुभ ग्रह के रूप में प्रतिष्ठित है। यह स्त्री ग्रह है। इसका संबंध कला, सौंदर्य और प्रेम से है। यह वृष और तुला राशि का स्वामी है। वृष राशि आकर्षक व्यक्तित्त्व का प्रतीक है तहा तुला शिष्ट और न्यायपूर्ण व्यवहार का द्योतक है। शुभ स्थिति में होने पर जातक का चित शांत रहता है। शुक्र से प्रभावित जातक सुन्दर मोहक और मिलनसार किस्म का होता है।
शुक्र का संबंध शुक्राचार्य से है। शुक्र का मूल उद्देश्य स्वयं भौतिकता से दूर रहते हुए विकास क्रम को नियमित रूप में संचालित करना है। ज्योतिष में शुक्र का प्रधान गुण इन्द्रियों की तृप्ति माना जाता है
शुक्र मीन राशि में शुक्र उच्च तथा कन्या राशि में नीच का होता है। बुध,शनि व केतु के साथ इनकी मित्रता है तो चंद्रमा,सूर्य व राहू के साथ इनका शत्रुवत संबंध है। मंगल व बृहस्पति के साथ शुक्र का संबंध सामान्य है। शुक्र को भोर का तारा भी कहा जाता हैं। यह जन्मकुंडली में विवाह का कारक ग्रह है।
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह पत्नी, प्रेमी, प्रेमिका, विवाह, सौंदर्य, रति, क्रिया, कला, वाहन, व्यापार, मैथुन, संगीत इत्यादि का कारक ग्रह है। शुक्र ग्रह के साथ अन्य ग्रहों की युति से अनेक प्रकार के योग उत्पन्न होते है। शुक्र केंद्र में उच्च का होने पर मालव्य योग का निर्माण करता है ।
शुक्र ग्रह यदि ख़राब स्थिति में है तो जातक का अपने स्वास्थ्य को लेकर परेशान रहता है। शरीर में स्थित किडनी का कारक ग्रह है इसी कारण यदि जन्मकुंडली में यह ग्रह अशुभ स्थिति में है या अशुभ ग्रह के प्रभाव में है तो जातक की किडनी खराब हो सकती है। यह ग्रह अक्सर वीर्य, जननेन्द्रिय गुप्तांग से संबंधित बीमारी देता है। अतः जातक को चाहिए की शुक्र से सम्बंधित मंत्र, पूजा दान इत्यादि करें।
शुक्र ग्रह यदि अनुकूल स्थिति में है तो व्यक्ति को भौतिक सुख प्रदान करता है। जातक सुखमय दाम्पत्य जीवन की पराकाष्ठा का अनुभव करता हुआ उत्तरोत्तर आगे की ओर बढ़ता रहता है इस कारण परिवार तथा समाज में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और यश का भागी बनता है। यदि शुक्र अशुभ भाव या अशुभ भाव का स्वामी होकर कुंडली में विराजमान है तो व्यक्ति को पारिवारिक कष्ट के साथ साथ मान-सम्मान तथा प्रतिष्ठा में कमी होगी।