जानिए रत्नों का रहस्यमय संसार

- अशोक जैन 'सहजानंद'
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कुछ पुराणों का मत है कि दैत्यराज बलि का वध करने के लिए भगवान त्रिलोकीनाथ ने वामन-अवतार धारण किया और उसके गर्व को चूर किया।

इस समय भगवान के चरण स्पर्श से दैत्यराज बलि का सारा शरीर रत्नों का बन गया, तब देवराज इंद्र में उस पर वज्र की चोट की, इस प्रकार टूट कर बिखरे हुए बलि के रत्नमय खंडों को भगवान शिव ने अपने त्रिशूल में धारण कर लिया और उसमें नवग्रह और बारह राशियों के प्रभुत्व का आधार करके पृथ्वी पर गिरा दिया। पृथ्वी पर गिराए गए इन खंडों से ही विभिन्न रत्नों की खानें पृथ्वी के गर्भ में बन गईं।

रत्नों की उत्पत्ति :
रत्नों की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य कथा भी ग्रंथों में आती है। देवता और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया तो 14 रत्न पदार्थ निकले। उसमें लक्ष्मी, उच्चैश्रवा, ऐरावत आदि के कौस्तुभ मणि को अपने कंठ में धारण कर लिया। इससे निकले अमृत को लेकर देव और दानवों में संघर्ष हुआ। अमृत का स्वर्ण कलश असुरराज लेकर भाग खड़े हुए।

कहते हैं कि इस छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदें जहां-जहां गिरीं वहां सूर्य की किरणों द्वारा सूखकर वे अमृतकण प्रकृति की रज में मिश्रित होकर विविध प्रकार के रत्नों में परिवर्तित हो गए।

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प्रमुख मणि-रत्न : -
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रत्न चौरासी माने गए हैं। नौ प्रमुख रत्न तथा शेष उपरत्न माने जाते हैं। इन नौ प्रमुख रत्नों का नवग्रहों से संबंध माना जाता है।

सूर्य- माणिक्य, चन्द्रमा-मोती, मंगल- मूंगा, बुध- पन्ना, बृहस्पति- पुखराज, शुक्र- हीरा, शनि- नीलम, राहु- गोमेद, केतु- लहसुनिया।

पुराणों में कुछ ऐसे मणि रत्नों का वर्णन भी पाया जाता है, जो पृथ्वी पर पाए नहीं जाते।

* चिंतामणि * कौस्तुभ मणि * रुद्र मणि * स्यमंतक मणि

ऐसा माना जाता है कि चिंतामणि को स्वयं ब्रह्माजी धारण करते हैं। कौस्तुभ मणि को नारायण धारण करते हैं। रुद्रमणि को भगवान शंकर धारण करते हैं। स्यमंतक मणि को इंद्र देव धारण करते हैं। पाताल लोक भी मणियों की आभा से हर समय प्रकाशित रहता है। इन सब मणियों पर सर्पराज वासुकी का अधिकार रहता है।

प्रमुख मणियां 9 मानी जाती हैं- घृत मणि, तैल मणि, भीष्मक मणि, उपलक मणि, स्फटिक मणि, पारस मणि, उलूक मणि, लाजावर्त मणि, मासर मणि।

आगे पढ़िए मणियों के संबंध में प्रचलित बातें



इन मणियों के संबंध में कई बातें प्रचलित हैं।
* घृतमणि की माला धारण कराने से बच्चों को नजर से बचाया जा सकता है।
* इस मणि को धारण करने से कभी भी लक्ष्‍मी नहीं रूठती।
* तैल मणि को धारण करने से बल-पौरुष की वृद्‍धि होती है।
* भीष्मक मणि धन-धान्य वृद्धि में सहायक है।
* उपलक मणि को धारण करने वाला व्यक्ति भक्ति व योग को प्राप्त करता है।
* उलूक मणि को धारण करने से नेत्र रोग दूर हो जाते हैं।
* लाजावर्त मणि को धारण करने से बुद्धि में वृद्धि होती है।
* मासर मणि को धारण करने से पानी और अग्नि का प्रभाव कम होता है

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