ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का महत्वपूर्ण स्थान है। ज्योतिष शास्त्रानुसार प्रत्येक ग्रह का एक प्रतिनिधि रत्न होता है जो उस ग्रह के शुभ प्रभाव में वृद्धि करने एवं उसके अशुभ प्रभाव का शमन करने में सक्षम होता है। जब किसी जातक की कुण्डली में कोई शुभ ग्रह निर्बल या अस्त होता है तो उस ग्रह के बल में वृद्धि करने हेतु दैवज्ञ उस ग्रह के प्रतिनिधि रत्न को धारण करने का परामर्श देते हैं जबकि कुंडल के अशुभ ग्रहों के दुष्प्रभाव को शांत करने हेतु उस ग्रह के प्रतिनिधि रत्न का दान किया जाता है।
असली रत्न बहुत मंहगे होने के कारण हर किसी की क्रयशक्ति में नहीं होते ऐसे में अक्सर आम जनमानस नकली,आर्टिफिशियल व सिंथेटिक रत्नों से धोखा खा जाते हैं जिनका ज्योतिषीय आधार पर कोई महत्व नहीं होता चाहे वे दिखने में कितने ही सुन्दर क्यों ना लगे।
ऐसे में आम आदमी के मन में संशय होता है कि आखिर ग्रहों के बल में वृद्धि करने के लिए क्या किया जाए? ज्योतिष शास्त्र में इस शंका का बहुत ही सटीक समाधान दिया गया है, जब कोई रत्न किसी कारणवश धारण करना संभव नहीं हो तो उसके स्थान पर उस रत्न का उपरत्न धारण कर अथवा उसकी प्रतिनिधि वनस्पति का प्रयोग कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
उपरत्न का प्रभाव वास्तविक रत्न की तुलना में कम अवश्य होता है किन्तु होता अवश्य है। अब जनमानस के मन में दुविधा होती है कि आखिर किस रत्न का उपरत्न कौन सा है जिसे धारण कर वे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आज हम वेबदुनिया के पाठकों को रत्नों के उपरत्न व उनकी प्रतिनिधि वनस्पति के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं। आइए जानते हैं कि किस ग्रह हेतु कौन सा रत्न प्रतिनिधि रत्न होता है एवं उस रत्न का उपरत्न कौन सा है व उस ग्रह की प्रतिनिधि वनस्पति कौन सी है-