प्राचीनकाल में प्राप्त रत्नों का उल्लेख :
प्राचीनकाल से ही रत्न अपने आकर्षक रंगों, प्रभाव, आभा तथा बहुमूल्यता के कारण मानव को प्रभावित करते आ रहे हैं। अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, देवी भागवत पुराण, महाभारत आदि अनेक ग्रंथों में रत्नों का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में 7 रत्नों का उल्लेख है।
उपरत्न : 10 लालड़ी, 11. फिरोजा, 12. एमनी, 13. जबरजदद, 14. ओपल, 15. तुरमली, 16. नरम, 17. सुनैला, 18. कटैला, 19. संग-सितारा, 20. सफेद बिल्लोर, 21. गोदंती, 22. तामड़ा, 23. लुधिआ, 24. मरियम, 25. मकनातीस, 26. सिंदूरिया, 27. नीली, 28. धुनेला, 29. बैरूंज, 30. मरगज, 31. पित्तोनिया, 32. बांसी, 33. दुरवेजफ, 34. सुलेमानी, 35. आलेमानी, 36. जजे मानी, 37. सिवार, 38. तुरसावा, 39. अहवा, 40. आबरी, 41. लाजवर्त, 42. कुदरत, 43. चिट्टी, 44. संग-सन, 45. लारू, 46. मारवार, 47. दाने-फिरंग, 48. कसौटी, 49. दारचना, 50. हकीक, 51. हालन, 52. सीजरी, 53. मुबेनज्फ, 54. कहरुवा, 55. झना, 56. संग बसरी, 57. दांतला, 58. मकड़ा, 59. संगीया, 60. गुदड़ी, 61. कामला, 62. सिफरी, 63. हरीद, 64. हवास, 65. सींगली, 66. डेड़ी, 67. स्फटिक, 68. गौरी, 69. सीया, 70. सीमाक, 71. मूसा, 72. पनघन, 73. अम्लीय, 74. डूर, 75. लिलियर, 76. खारा, 77. पारा-जहर, 78. सेलखड़ी, 79. जहर मोहरा, 80. रवात, 81. सोना माखी, 82. हजरते ऊद, 83. सुरमा, 84. पारस।