पुनर्वसु नक्षत्र : जानिए अपना व्यक्तित्व

0 डिग्री से लेकर 360 डिग्री तक सारे नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है। आइए जानते हैं पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक कैसे होते हैं?

पुनर्वसु का अर्थ पुन: शुभ होता है। आकाश मंडल में पुनर्वसु 7वां नक्षत्र है। इस नक्षत्र का स्वामी गुरु है और राशि स्वामी बुध है। अदिति इस नक्षत्र की इष्टदेवी है। इस नक्षत्र के अंतर्गत पैदा होने वाले जातक धार्मिक होते हैं, लेकिन कभी कभी उन पर कट्टरपंथ हावी हो जाता है।

अगले पन्ने पर पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातकों का भविष्यफल...


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पुनर्वसु नक्षत्र : मिथुन राशि में इसके चारों चरण आते हैं। पुनर्वसु नक्षत्र के पहले तीन चरणों में जन्म होने पर जन्म राशि मिथुन, राशि स्वामी बुध तथा चौथे चरण में जन्म होने पर जन्म राशि कर्क तथा राशि स्वामी चन्द्रमा, वर्ण शूद्र, वश्य पहले तीन चरणों में नर व अंतिम चरण में जलचर, योनि मार्जार, महावैर योनि मूषक, गण देव, नाड़ी आदि है।

*रंग : ग्रे
*भाग्यशाली अक्षर : क, ह।
*वृक्ष : बांस
*देव : अदिति, बृहस्पति
*नक्षत्र स्वामी : गुरु
*राशि स्वामी : बुध और चंद्रमा



*शारीरिक गठन : लंबे पैर, घुंघराले बाल, लंबी नाक और सुंदर चेहरा लिए व्यक्ति। अच्छी शक्ति एवं सौष्ठव से युक्त।

*भौतिक सुख : भवन और वाहन का सुख, लेकिन स्त्री सुख की गारंटी नहीं।

* सकारात्क पक्ष : अच्छा स्वभाव, शांतु, सुखी, दानी, न्यायप्रिय, प्रभावशाली, व्यवहार बदलने में सक्षम, धार्मिक प्रवृत्ति, शोध कार्य में रुचि रखने वाले, भ्रमणशील और नेतृत्व करने वाला।

* नकारात्मक पक्ष : यदि गुरु, बुध और चन्द्रमा अच्‍छी स्थिति में नहीं हैं तो ऐसा जातक क्लेश को सहने वाला, बुद्धिहीन कामुक, रोगी और थोड़े में ही संतुष्ट होता है।

प्रस्तुति : शतायु

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