0 डिग्री से लेकर 360 डिग्री तक सारे नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है। आइए जानते हैं पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातक कैसे होते हैं?
इस नक्षत्र में तीन तारे तीर के आगे का तिकोन जैसे दिखाई देते हैं। सूर्य जुलाई के तृतीय सप्ताह में पुष्य नक्षत्र में गोचर करता है। उस समय यह नक्षत्र पूर्व में उदय होता है। मार्च महीने में रात्रि 9 से 11 बजे तक पुष्य नक्षत्र अपने शिरोबिंदु पर होता है। पौष मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है। इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है।
पुष्य नक्षत्र : देव गुरु बृहस्पति को पुष्य नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता माना गया है। पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न जातक की जन्म राशि कर्क तथा राशि स्वामी चन्द्रमा, वर्ण ब्राह्मण, वश्य जलचर, योनि मेढ़ा, महावैर योनि वानर, गण देव तथा नाड़ी मध्य है। जातक पर जीवनभर शनि, चन्द्र और गुरु का प्रभाव बना रहता है।
शारीरिक गठन : शारीरिक विशिष्टता स्पष्ट नहीं, मध्यम कद लंबा, गौर श्याम वर्ण।
भौतिक सुख : पुत्रयुक्त, धन वाहन से युक्त, सम्मानित और सुखी।
सकारात्मक पक्ष : शांत चित्त, धार्मिक, विनम्र, बुद्धिमान, आत्मकेंद्रित, सहिष्णु, व्यावहारिक, स्पष्टवादी, माता-पिता का भक्त, ब्राह्मणों और देवताओं का आदर और पूजा करने वाला।
नकारात्मक पक्ष : यदि गुरु, चन्द्र और शनि की स्थिति ठीक नहीं है तो अपयश झेलना पड़ता है। साधारण-सी बात पर भी चिंता घेर लेती है। शंकालु प्रवृत्ति, जुआ खेलना, ब्याज लेना, घमंड रखकर कटु वचन बोलना, शराब पीना आदि दुर्गुणों से स्त्री और पुत्र सुख समाप्त हो जाते हैं।