नक्षत्र मंडल में मूल का स्थान 19वां है। 'मूल' का अर्थ 'जड़' होता है। राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर उदय और मिलन के आधार पर गण्डमूल नक्षत्रों का निर्माण होता है। इसके निर्माण में कुल छह 6 स्थितियां बनती हैं। इसमें से तीन नक्षत्र गण्ड के होते हैं और तीन मूल नक्षत्र के होते हैं। कर्क राशि तथा आश्लेषा नक्षत्र की समाप्ति साथ-साथ होती है वही सिंह राशि का समापन और मघा राशि का उदय एक साथ होता है। इसी कारण इसे अश्लेषा गण्ड संज्ञक और मघा मूल संज्ञक नक्षत्र कहा जाता है।
वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र की समाप्ति एक साथ होती हैं तथा धनु राशि और मूल नक्षत्र का आरम्भ यही से होता है। इसलिए इस स्थिति को ज्येष्ठा गण्ड और मूल नक्षत्र कहा जाता हैं। मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं तथा मेष राशि व अश्विनि नक्षत्र की शुरुआत एक साथ होती है। इसलिए इस स्थिति को रेवती गण्ड और अश्विनि मूल नक्षत्र कहा जाता हैं।
1. जब बालक इन नक्षत्रों में जन्म लेता है तो विशेष तरह के प्रभाव देखने में आते हैं। इन नक्षत्रों में जन्म लेने का असर सीधा बच्चे के स्वभाव और स्वास्थ्य पर पड़ता है। जब बालक के स्वास्थ्य की स्थिति संवेदनशील हो जाती है। वास्तविकता में केवल नक्षत्रों के आधार पर ही सारा निर्णय नहीं लेना चाहिए। पूरी तरह से कुंडली देखकर ही इसका निर्णय करें।
2. अगर बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है तो सबसे पहले ये देखें की बच्चे के स्वास्थ्य की स्थिति क्या है और किस कारण से उसको समस्या हो सकती है। पिता और माता की कुंडली जरूर देखें कि उनका और उन पर इस नवजात के जन्म का क्या प्रभाव है।
3. कहते हैं कि मुला, मघा और अश्विनी के प्रथम चरण का जातक पिता के लिए, रेवती के चौथे चरण और रात्रि का जातक माता के लिए, ज्येष्ठ के चतुर्थ चरण और दिन का जातक पिता तथा आश्लेषा के चौथे चरण संधिकाल में जन्म हो तो स्वयं के लिए जातक हानिकारक होता है।
4. मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाला बालक शुभ प्रभाव में है तो वह सामान्य बालक से कुछ अलग विचारों वाला होता है यदि उसे सामाजिक तथा पारिवारिक बंधन से मुक्त कर दिया जाए तो ऐसा बालक जिस भी क्षेत्र में जाएगा एक अलग मुकाम हासिल करेगा।
5. ऐसे बालक तेजस्वी, यशस्वी, नित्य नव चेतन कला अन्वेषी होते हैं। यह इसके अच्छे प्रभाव हैं। अगर वह अशुभ प्रभाव में है तो इसी नक्षत्रों में जन्मा बच्चा क्रोधी, रोगी, र्इष्यावान होगा इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
6. मूल नक्षत्र के जातक आमतौर पर लक्ष्य केंद्रित होते हैं तथा ये जातक कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी तब तक प्रयास करते रहते हैं, जब तक या तो ये जातक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लें या फिर इन जातकों की सारी ऊर्जा समाप्त न हो जाए।
7. मूल नक्षत्र का स्वामी केतु है, वहीं राशि स्वामी गुरु है इसलिए इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति पर केतु और गुरु का प्रभाव जीवनभर रहता है। केतु जहां नकारात्मक घटनाओं को जन्म देता हैं, वहीं गुरु जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है। मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। धनु राशि का स्वामी गुरु है तो जातक को चाहिए कि वह धर्मपरायण और विष्णु, हनुमान भक्त बना रहे इसी में उसकी भलाई है।
8. मूल नक्षत्र के जातक अपने विचारों पर दृढ़ होते हैं और इनमें निर्णय लेने की क्षमता भी गजब की होती है। पढ़ाई-लिखाई में अव्वल होते हैं। ये खोजी बुद्धि के होते हैं। शोधकार्य में सफलता मिल सकती है। ये कुशल और निपुण व्यक्ति होने के साथ- साथ उत्कृष्ट वक्ता भी होते हैं। ये डॉक्टर या उपचारक भी हो सकते हैं। ये भावुक प्रवृत्ति के होने के कारण दयालु और सभी का भला करने वाले भी होते हैं।
9. यदि केतु और गुरु की स्थिति कुंडली में सही नहीं है तो ये बेहद जिद्दी किस्म के हो जाते हैं और अपनी मनमानी करते हैं। इनकी विनाशकारी कार्यों में रुचि बढ़ जाती है। ऐसे में इनके गलत मार्ग पर चलने के खतरे भी बढ़ जाते हैं। इनमें ईर्ष्या की भावना प्रबल हो जाती है। ये अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। ये तंत्र-मंत्र या पारलौकिक विद्या के चक्कर में पड़कर अपना करियर बर्बाद कर लेते हैं। इनके पैरों में हमेशा तकलीफ बनी रह सकती है। यदि ऐसा जातक माता-पिता का कहना मानते हुए विष्णु या हनुमानजी की शरण में रहे, तो सभी तरह की मुसीबतों से बच सकता है।
10. गंडांत योग में जन्मे जातक : पूर्णातिथि (5, 10, 15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि (1, 6, 11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है। इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर 4 घड़ी मिलाकर नक्षत्र गंडांत कहलाता है। इसी तरह से लग्न गंडांत होता है। इस संबंध संपूर्ण जानकारी हेतु आगे क्लिक करें... गंडांत योग में जन्मे जातक का भविष्य और उपाय