जब जन्मपत्रिका में राहु और केतु के बीच शेष सातों ग्रह आ जाते हैं, तो ऐसी पत्रिका कालसर्प से पीड़ित होती है। जिस जातक की पत्रिका में कालसर्प योग होता है उसका जीवन अत्यंत कष्टदायक एवं दुखी होता है। ये जातक मन ही मन घुटते है, कुंठा से भर जाते है।
1. एकाग्रता व आत्मविश्वास में कमी, बच्चों की चिंता, विवाह में देरी होना, बच्चों का असफल होना, पढ़ाई में मन नहीं लगना।
2. एक ही विचार बार-बार आना, कार्य में विरोध उत्पन्न होना, व्यापार में हानि की संभावना हमेशा बनी रहना, किसी कार्य में मन नहीं लगना।
3. आर्थिक तंगी (धन की कमी), चिड़चिड़ापन, बेवजह तनाव, मायूसी, उदासी, चिंता, हीनभावना, आत्महत्या के विचार आना, घर में कलह इत्यादि।
5. पेट की खराबी, पेट दर्द, नशे की आदत पड़ जाना, नींद न आना, मिर्गी रोग, सिरदर्द, माइग्रेन, हिस्टीरिया, संशय, क्रोध, भूख न लगना, रोगों से हमेशा पीड़ित रहना, क्षणिक उत्तेजना, गुमसुम बने रहना ये सभी प्रकार के लक्षण अर्थात् अनेक प्रकार की परेशानी का कारण कालसर्प योग एवं राहु-केतु हैं।