शनि ग्रह की विशेषता

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी-शकट भेदन कर दे तो पृथ्वी पर बारह वर्ष घोर दुर्भिक्ष पड़ जाए और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाए। शनि ग्रह जब रोहिणी का भेदन कर बढ़ जाता है, तब यह योग आता है।

ऐसा ही योग महाराज दशरथ के समय में आने वाला था। जब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ से बताया कि यदि शनि का योग आ जाएगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प-तड़प कर मर जाएगी। प्रजा को इस कष्ट से बचाने के लिए महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मंडल में पहुंचे।

सर्वप्रथम महाराज दशरथ ने शनि देवता को प्रणाम किया और बाद में क्षत्रिय-धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया। शनि देवता महाराज की कर्तव्यनिष्ठा से परम प्रसन्न हुए और उनसे वर मांगने के लिए कहा। महाराज दशरथ ने वर मांगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप शकट-भेदन न करें। शनि देव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट कर दिया।

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शनि की शांति के उपाय
- शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय-जप करना चाहिए।
- नीलम धारण करने से भी शनि का प्रकोप शांत होता है।
- ब्राह्मण को तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, नीलम, काली गौ, जूता, कस्तूरी और सुवर्ण का दान देना चाहिए।

शनि उपासना का मंत्र
शनि की उपासना के लिए निम्न में से किसी एक मंत्र अथवा सभी का श्रद्धानुसार नियमित एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप का समय संध्याकाल तथा कुल जप संख्या 23000 होनी चाहिए।

वैदिक मंत्र-
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्रवन्तु नः॥

पौराणिक मंत्र-
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्‌॥

बीज मंत्र-
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

सामान्य मंत्र-
ॐ शं शनैश्चराय नमः।

कैसे हैं शनि
- शनैश्चर की शरीर-कान्ति इंद्रनीलमणि के समान है।
- इनके सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं।
- शनि गिद्ध पर सवार रहते हैं।
- ये हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं।

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