-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
हमारी सनातन संस्कृति में प्रकृति को परमात्मा सदृश मानकर उसकी आराधना की गई है। प्रकृति परमात्मा का ही अंग है इसीलिए हमने नदियों,पर्वतों एवं वृक्षों की पूजा की। हमारे वनस्पति शास्त्र में कई ऐसी दुर्लभ जड़ी-बूटियों का उल्लेख है जिन्हें प्राप्त कर पूर्ण विधि-विधान से सिद्ध कर लेने पर मनुष्य को आशातीत लाभ होता है। ऐसी ही एक अति-दुर्लभ जड़ी है 'हत्थाजोड़ी'। जो मूल रूप में एक वृक्ष की जड़ होती है। दुरुपयोग की आशंका के चलते हम उस वृक्ष के नाम का उल्लेख यहां नहीं कर रहे हैं।
'हत्थाजोड़ी' में वशीकरण की बड़ी अद्भुत क्षमता होती है। इसमें मां चामुंडा का वास माना गया है। इसकी आकृति मनुष्य के दोनों हाथ की बंद मुट्ठियों की भांति होती है। यह अत्यंत दुर्लभ जड़ है जो बहुत कम प्राप्त हो पाती है। आज के व्यावसायिक दौर में 'हत्थाजोड़ी' के नाम पर नकली हत्थाजोड़ी का चलन बढ़ गया है जिससे कोई लाभ नहीं होता।
प्राकृतिक 'हत्थाजोड़ी' को विधिपूर्वक पूर्व निमन्त्रित कर निकाला जाता है एवं विशेष मुहूर्तों जैसे रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य, नवरात्रि,ग्रहणकाल, होली, दीपावली में विशेष मंत्रों द्वारा सिद्ध किया जाता है। सिद्धि के पश्चात् इसे चांदी की डिब्बी में सिंदूर के साथ रखा जाता है। इस प्रकार की मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी जिस व्यक्ति के पास होती है वह वशीकरण करने में सक्षम हो जाता है। उस पर मां चामुंडा की कृपा सदैव बनी रहती है।