शास्त्रों के अनुसार धरती लोक की भद्रा सबसे अधिक अशुभ मानी जाती है। तिथि के पूर्वार्द्ध की दिन की भद्रा कहलाती है। तिथि के उत्तरार्द्ध की भद्रा को रात की भद्रा कहते हैं। यदि दिन की भद्रा रात के समय और रात्रि की भद्रा दिन के समय आ जाए तो भद्रा को शुभ मानते हैं।
भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण है। कृष्ण पक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्द्ध में एवं कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी, शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णमासी के पूर्वार्द्ध में भद्रा रहती है।
जिस भद्रा के समय चन्द्रमा मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक राशि में स्थित तो भद्रा का निवास स्वर्ग में होता है। यदि चन्द्रमा कन्या, तुला, धनु, मकर राशि में हो तो भद्रा पाताल में निवास करती है और कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि का चन्द्रमा हो तो भद्रा का भूलोक पर निवास रहता है।
यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी, जो भद्रा का मुख होती है, अवश्य त्याग देना चाहिए।
भद्रा 5 घटी मुख में, 2 घटी कंठ में, 11 घटी हृदय में और 4 घटी पुच्छ में स्थित रहती है।