गणेशजी विघ्नों को हरने वाले देवता हैं व सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण करते हैं। शास्त्रों में लिखा है- 'कलौ चण्डी विनायको' यानी कलियुग में चण्डी और गणेशजी के अलावा शीघ्र प्रसन्न होने वाले दूसरे देवता नहीं हैं।
गणेश प्रतिमा धातु की हो या शुद्ध मिट्टी की। अलग-अलग काष्ठ की प्रतिमा भी बनती है, जो तंत्र से संबंधित है। उनकी पूजा ही फलदायी होती है। प्रतिमा पर यदि रंग हो तो वे भी प्राकृतिक होना चाहिए, न कि रासायनिक।
सुबह जल्दी नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर पाट पर लाल वस्त्र बिछाकर चावल की ढेरी पर उपलब्ध गणेशजी को विराजमान करें। पास ही तांबे का कलश कुछ जल डालकर रखें तथा गणेशजी के दाहिनी ओर गोघृत का दीपक जला दें व धूप इत्यादि से सुवासित करें।