धन मनुष्य की सर्वप्रथम आवश्यकता आदिकाल से रही है। धन कमाने के लिए मनुष्य निरंतर कोशिश करता रहता है। चारों पदार्थ अर्थ-धर्म-काम-मोक्ष में अर्थ को प्रथम रखने का कारण ही यह है कि अर्थ से यानी कि धन से बाकी के पदार्थों को पाने में अर्थ की प्रधान भूमिका रही है।
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पुरुषार्थ के घुटने टेकने पर व्यक्ति की रुचि दैवीय शक्तियों की तरफ जाना स्वाभाविक है।
लक्ष्मी विनायक धन तथा बुद्धि के अधिष्ठाता देवता हैं। इनकी साधना से धन की कमी दूर की जा सकती है।
मंत्र
ॐ श्री गं सौम्याय गणपतये वरवरद सर्वजनं में वशामानय स्वाहा।।
दंत, अभयमुद्रा, चक्र तथा वरमुद्रा, स्वर्ण घट रखे हुए, त्रिनेत्र, रक्तवर्ण, लक्ष्मीजी के साथ श्री लक्ष्मी विनायक का ध्यान करता हूं।
छाती तक जल में खड़े होकर उत्तर दिशा में मुख करके तीन लाख जप करें। ध्यान सूर्य मंडल में करें। बिल्व वृक्ष के नीचे जपें तथा दशांश होम पायस होम से महालक्ष्मी प्रसन्न हों धन दें।
घीयुक्त चावलों से होम करने से वशीकरण हो। तिल-जौ-शकर घृताक्त कर मोदक से हवन करने से श्री गणेश प्रसन्न अवश्य होते हैं। अपार धन संपदा की प्राप्ति होती है।