सिंह-चारित्रिक विशेषताएँ
सिंह राशि के जातकों में निम्न चारित्रिक विशेषताएं पाई जाती हैं चरित्र के प्रारंभिक लक्षण- अहं केंद्रित, स्वार्थी, अहं, तानाशाही, घमंड को बढ़ावा देने के लिए शक्ति का प्रयोग, एकाकी स्वभाव होना, आसानी से चोट पहुंचाने वाले तथा असुरक्षित अहं का होना। चरित्र के उत्तरकालीन लक्षण- स्वयं की पहचान की जाग्रति, स्वनिर्धारक बनना, व्यक्तित्व में मस्तिष्क का समेकन करना, स्वशासित, बौद्धिक चेतनायुक्त होना, आसपास के समूह की जानकारी होना, आत्महित की ओर से सामूहिक आवश्यकताओं की ओर रूपांतरित होना, व्यक्तित्व का प्रभावी होना तथा व्यक्तित्व नियंत्रण होना। अंतःकरण के लक्षण- स्वार्थ की निरर्थकता से भिज्ञ होना, शाश्वत सत्य के रूप में अंतःकरण से भिन्न होना, एक विकसित एवं निश्चित जीवन योजना होना, उद्देश्यों के साथ स्वयं के जीवन को निर्देशित करना, दिव्य योजना में स्वचेतना को समर्पित करना, व्यक्तिगत इच्छा, प्रेम तथा बुद्धिमता की अभिव्यक्ति करना, स्वयं पर नियंत्रण, वास्तविकता के धरातल पर अंतःकरण के गुणों में व्यक्त करना, बौद्धिक अनुयायित्व, आसपास के वातावरण की बजाय अंतरात्मा के प्रति संवेदनशील होना, विकेंद्रीकरण के प्रति सचेत होना, समूह की भलाई के लिए समेकित व्यक्तित्व का अधीनस्थ होना, उच्च उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समूहों का नियंत्रण, दिव्य योजना के अनुरूप वातावरण का अनुकूलन, ऐसे समूह का केंद्रबिंदु होना जो किसी वृहत समूह का एक भाग है, यह जानकारी होना कि एक वृहत समूह तथा बड़े केंद्रबिंदु का अस्तित्व सदैव होता है, किसी समूह का केंद्रबिंदु होना तथा अन्य समूहों के केंद्र बिंदुओं से संबंध बनाना।