प्रभु जोशी

प्रभु जोशी वरिष्ठ कहानीकार, पत्रकार और चित्रकार हैं। नईदुनिया के संपादकीय तथा फीचर पृष्ठों का पांच वर्ष तक संपादन। पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी तथा अंग्रेजी में कहानियों, लेखों का प्रकाशन। लिंसिस्टोन तथा हरबर्ट में ऑस्ट्रेलिया के त्रिनाले में चित्र प्रदर्शित। गैलरी फॉर केलिफोर्निया (यूएसए) का जलरंग हेतु थॉमस मोरान अवार्ड। ट्वेंटी फर्स्ट सेन्चरी गैलरी, न्यूयार्क के टॉप सेवैंटी में शामिल। भारत भवन का चित्रकला तथा मप्र साहित्य परिषद का कथा-कहानी के लिए अखिल भारतीय सम्मान। दूरदर्शन इंदौर में प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव पद से रिटायर्ड। इससे पूर्व इंदौर आकाशवाणी में प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव पद पर कार्यरत। कई रेडियो प्रोग्रामों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवार्ड। वर्तमान में लेखन और चित्रकारी में सक्रिय।
यह तथ्य हमें एक बड़े विस्मय से भरता है कि इन दिनों देशभर के इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में एक ऐसे महाजश्न का माहौल है, जो शायद हमें 1947 में मिलने वाली...
यह आकस्मिक नहीं कि हमारे इस कमजोर बौद्धिक आधार वाले मौजूदा भारतीय समाज की प्रकृति पिछले कुछ दशकों से एक निरे बावलेपन से भरी हुई हो गई है जिसे आसानी से...
एक नव-स्वतंत्र राष्ट्र में, कलाओं और साहित्य के मध्य, 'सांस्थानिकता' का, क्या और कैसा अंतर्ग्रथित संबंध हो, इसको लेकर नेहरू, आरंभ से ही अत्यंत सशंकित और...
सातवें दशक के उत्तरार्द्ध में प्रकाशित एल्विन टॉफलर की पुस्तक 'तीसरी लहर' के अध्याय 'बड़े राष्ट्रों के विघटन' को पढ़ते हुए किसी को भी कोई कल्पना तक नहीं...
सर्वोच्च न्यायालय में सन 2013 में दायर की गई, एक जनहित याचिका को अपने संज्ञान में लेते हुए, केन्द्र सरकार ने कोई 857 ऐसी पोर्न साइट को चिन्हित किया, जिन्हें...
वक्त ज्यादा नहीं लगा और यह होने लगा कि आखिरकार, धीरे-धीरे, हिन्‍दी की वह पर्त झड़ने लगी, जो हमारे प्रधानमंत्री की भाषा पर चढ़ी हुई थी। अब वे अँग्रेजी बोलने...
मैगी, पिछले दशकों में बच्चों और युवाओं के आस्वाद पर आधिपत्य जमाकर निर्द्वन्द् रूप से 'तुरन्ता' भोज्य व्यंजनों की कतार में निर्विघ्न ढंग से सब से आगे बनी...
श्रीराम ताम्रकर हिंदी सिने पत्रकारिता के ऐसे और एक मात्र व्यक्ति रहे हैं जिन्हें भारतीय और विश्व सिनेमा का संदर्भ सम्राट कहा जा सकता है। वे अंग्रेजी के...
हम यदि गौर से देखें तो पिछले पाँच सौ साल के कालखंड में भारतीयों के बीच शायद ही किसी शब्द को इतना अधिक गौरवान्वित किए जाने का इतिहास बरामद हो सकेगा, जितना...

इसलिए विदा करना चाहते हैं हिन्दी

शुक्रवार, 14 सितम्बर 2007
दुनिया की हर भाषा की जिंदगी में एक बार कोई निहायत ही निष्करुण वक्त दबे पाँव आता है और 'उसको बोलने वालों' के हलक में हाथ डालकर उनकी जुबान पर रचे-बसे शब्दों...
आज जितना भ्रष्टाचार सार्वजनिक क्षेत्र में बताया जाता है, क्या निजी क्षेत्र में उससे कम है? क्या दोनों के बीच एक गहरी अंतर-निर्भरता नहीं है? वित्तीय पूँजी...