जिन युवाओं ने बाबा को सदा लेटे हुए ही देखा- कसरावद या आनंदवन की उनकी कुटिया में या किसी मंच पर, शायद ही कभी अंदाज लगा पाए होंगे कि यह शख्स जब खड़ा रहा करता था तब क्या कहर ढाता था। अपनी युवावस्था में धनी जमींदार का यह बेटा तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्म देखने का शौकीन था।
अँगरेजी फिल्मों पर लिखी उनकी समीक्षाएँ इतनी दमदार हुआ करती थीं कि एक बार अमेरिकी अभिनेत्री नोर्मा शियरर ने भी उन्हें पत्र लिखकर दाद दी, लेकिन जब कुष्ठरोगियों की पीड़ा देखकर बाबा ने अपना घर छोड़ा तो वे सारी संपत्ति से मुँह मोड़कर चले और साथ में पत्नी साधना थीं।
बाबा ने अपना पसीना बहाकर कुष्ठरोगियों के लिए आनंदवन बसाया। उन्हें युवाओं की मटरगश्ती जरा भी पसंद नहीं थी। किस्सा भामरागढ़ का है। देशभर के महाविद्यालयीन युवा श्रम छावनियों में भाग लेने के लिए आए थे। लड़कियाँ भी अपने दुपट्टे खोंसकर लड़कों की बराबरी से मशक्कत कर रही थीं। उनका हौसला-अफजाई करने बाबा वहाँ आए।
एक लड़के ने कुदाल रखकर बाबा के हस्ताक्षर चाहे। बाबा नाराज हो उठे कि काम के समय यह क्या ऊटपटांग बात करते हो और उन्होंने उसकी कलम और डायरी दूर फेंक दी, लेकिन शाम को उसी लड़के के सिर पर हाथ फेरकर उसकी इच्छा पूरी की।
बाबा धर्मपत्नी साधनाताई को पूरा सम्मान देते थे। सामने राष्ट्रपति हों या शंकराचार्य, बाबा अपने उद्बोधन को सबसे पहले प्रिय साधना का नाम लेकर ही शुरू करते थे। दूसरा किस्सा भामरागढ़ वाले प्रसंग के तुरंत बाद का है। सन 1979 में मुंबई में सुलभा और अरविंद देशपांडे के घर बाबा पधारे थे। संयोग से उस दिन उनका जन्मदिन था। सुबह नाश्ते के समय रेखा वसंत पोत्दार, जो एक एयरलाइन में काम करती थीं, उस संस्कृति के अनुसार बाबा के लिए केक बनाकर ले आईं। वहाँ विष्णु चिंचालकर, नाना पाटेकर और 8 वर्षीय स्कूली लड़की उर्मिला मातोंडकर भी थे। जब रेखा ने बाबा के सामने केक रख कर हैप्पी बर्थडे कहा तो कमरे में चुप्पी छा गई।
सब लोग तनाव में थे कि अब विस्फोट होगा, परंतु मुस्कुराते हुए बाबा ने केक काटा और पहला टुकड़ा अपनी पत्नी साधना को खिलाया। सार्वजनिक मंच से अपना नाम सुनकर जिन्हें कभी संकोच नहीं हुआ होगा वे साधनाजी पति के इस उत्कट प्रेम प्रदर्शन से लजाकर लाल हो गईं। उन क्षणों का साक्षी बनकर न सिर्फ मैं बल्कि मेरा डिब्बा कैमरा भी निहाल हो गया।