पाकिस्तान में 'कफ सिरप' बना धीमा जहर

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013 (14:07 IST)
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पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम इलाके गुजरांवाला निवासी सिद्दीक के लिए 26 दिसंबर 2012 का दिन कुछ खास था। उस दिन जब सिद्दीक बाजार में पटाखे बेचकर घर लौटे तो काफी खुश थे क्योंकि उनकी कमाई काफी अच्छी हुई थी।

इस खुशी को मनाने के लिए उन्होंने अपने दोस्त के साथ दवा दुकान से एक कफ सिरप खरीद कर पिया और घर आने के बाद खाना खाकर सो गया। फिर कभी नहीं उठने के लिए। सिद्दीक के दोस्त की भी उसी रात मौत हो गई थी।

सिद्दीक के पिता अब्दुल हमीद सदमे में थे। उनके अनुसार, 'अगर उसे कोई तकलीफ थी तो वो हमें बताता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। सुबह जब अस्पताल के लोग आए तब उन्होंने हमें बताया कि उसकी मौत हो चुकी है।'

उस दिन गुजरांवाला के अस्पताल में कफ सिरप पीने वाले 64 लोगों को काफी नाजुक हालत में अस्पताल लाया गया था, जिनमें से 36 लोगों की मौत हो गई थी।

ये सभी लोग काफी गरीब परिवार से थे और लंबे समय से शौकिया तौर पर कफ सिरप पीने के आदी थे। इन्हीं लोगों में से एक वकास था जो एक रिक्शाचालक था।

वकास के मुताबिक, 'मैं पिछले पांच सालों से हर रोज तकरीन तीन शीशी कफ सिरप पी रहा हूं। पहले जब मैं पिया करता था तब मैं खुद में स्फूर्ति महसूस किया करता था। लेकिन उस दिन इसे पीने के बाद मैंने काफी कमजोरी महसूस की और बेहोश हो गया।'

ये पहला मौका नहीं था जब कफ सिरप पीने के कारण ऐसा हादसा हुआ था। कुछ हफ्ते पहले ही लाहौर के शहादरा इलाके में, 'टाईनो' नाम की दवा पीने के बाद 19 लोगों की मौत हो गई थी।

बाहर से आता जहर : लाहौर की घटना के सामने आने के साथ ही फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने तुरत-फुरत में प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी। इन कंपनियों में काम करने वाले लोग सरकारी विभाग के अधिकारियों के हाथों परेशान किए जाने की शिकायत करते रहे।

इनके अनुसार 'टाईनो' बनाने वाली कंपनी के आंतरिक जांच में भी ये पाया गया है कि इस 'सिरप' में कुछ भी गलत नहीं है।

लेकिन गुजरांवाला हादसे में 33 लोगों की मौत के बाद, प्रांतीय सरकार ने कदम उठाना शुरू किया। कई दवा की फैक्ट्रियों और दवा की दुकानों को सील कर दिया गया।

इस दौरान कुछ दवा दुकानदारों को गिरफ्तार भी किया गया और दवा की बोतलें जब्त की गईं। अब पाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इन मौतों की वजह इस कफ सिरप को बनाने के लिए भारत से आयात किया गया एक जहरीली सामग्री है।

पंजाब स्थित स्वास्थ्य मंत्रालय के महानिदेशक डॉ. निसार चीमा के अनुसार, सरकार ने जांच की है और ये बेहद संवेदनशील मामला है।

लेकिन पाकिस्तान के फार्मास्यूटिकल कंपनी संगठन के अध्यक्ष सलीम इकबाल के अनुसार, सरकार जिस तरह से इस मामले को देख रही है उससे फार्मास्यूटिकल कंपनियां खुश नहीं हैं।

सलीम के अनुसार उन्होंने सरकार से कई बार इस जांच रिपोर्ट को उनके साथ साझा करने की बात कही है, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है।

वे आगे पूछते हैं कि आखिर इस घटना के इतने हफ्तों के बाद भी सरकार अपनी जांच रिपोर्ट जमा क्यों नहीं कर पाई है। अगर ये प्रक्रिया इतनी ही लंबी है तो सरकार इतनी जल्दी इस नतीजे पर कैसे पहुंच गई कि गुजरांवाला हादसे के पीछे की वजह खराब सामग्री है।

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सस्ती जिंदगी : पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में ऐसे लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है जो किसी ना किसी तरह के नशे के आदी हो चुके हैं। ये लोग आमतौर पर कफ सिरप, पेन-किलर्स, एंटी-एलर्जीक और नशे की दवाईयां का सेवन करने लगते हैं।

लाहौर में ऐसे ही लोगों की मदद के लिए एनजीओ चलाने वाले सय्यद जुल्फिकार हुसैन कहते हैं कि ऐसे नशेड़ियों की संख्या लाखों में होती है, क्योंकि इन दवाईयों पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं होती। कोई भी थोड़े पैसों में इन्हें खरीद सकता है, जबकि दूसरी दवाईयां महंगी होती हैं।

गुजरांवाला अस्पताल के मुख्यालय में मुख्य चिकित्साधिकारी के अनुसार, 'आमतौर पर डॉक्टर ऐसे कफ़ सिरप मरीजों को नहीं देते, ना ही मरीज खुद इनका इस्तेमाल करते हैं। मरीजों को ज्यादातर ब्रांडेड दवाई पीने की सलाह दी जाती है।'

वजह चाहे इन दवाइयों का आसानी से मिल जाना हो, उनकी खुलेआम बिक्री या उनकी सामग्री में किसी तरह की कमी होना हो, आरोप ये है कि संबंधित विभाग इस बारे में गंभीर नहीं हैं।

पंजाब प्रांत के स्वास्थय निदेशक डॉ. चीमा पूरा दायित्व हाल में गठित ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी पर डाल रहे हैं।

वे कहते हैं, 'उनकी पहली जिम्मेदारी दवा बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कच्चे-माल की जांच और दवाईयों के उत्पादन पर नजर रखना है, लेकिन हम इस बात पर भी ध्यान देंगे कि भविष्य में ऐसी घटनाएं ना हो। हम सभी स्थानीय गैरब्रांडेड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे जो लोगों की जिंदगी से खेल रहे हैं।'

मनोवैज्ञानिक डॉ. रियाज भट्टी के मुताबिक, 'इस घटना ने एक बार फिर से ये साबित कर दिया है कि पाकिस्तान में कोई स्वास्थय प्रणाली नहीं है। जो लोग हालात से मजबूर हैं और बुरी तरह टूट चुके हैं वो इन्हीं दवाईयों का सहारा लेने लगते हैं।'

गुजरांवाला में सिद्दीक के पिता अब्दुल हामिद कहते हैं कि, उन्हें अपने बेटे के लिए इंसाफ चाहिए। उनके छोटे से पोते को अब कभी पिता का प्यार नहीं मिलेगा।

आखिर उसकी देखभाल कौन करेगा?

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