क्या है गाय पर अजमेर दरगाह के विवाद की जड़?

सोमवार, 10 अप्रैल 2017 (11:43 IST)
- नारायण बारेठ (जयपुर से)
अजमेर स्थित सूफ़ी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में गाय और तीन तलाक़ के मुद्दे पर दिए बयानों से विवाद पैदा हो गया है। दरगाह के सज्जादा नशीन पद को लेकर दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन और उनके भाई अलाउद्दीन आलिमी में झगड़ा चल रहा है। आलिमी ने ख़ुद को सज्जादा नशीन घोषित कर दिया। लेकिन दरगाह प्रबंधन के मुताबिक आलिमी के दावे का कोई क़ानूनी आधार नहीं है।
 
दरगाह के ख़ादिम समुदाय का कहना है यह इनका घरेलू विवाद है। दरगाह दीवान के हालिया बयानों को लेकर कुछ मुस्लिम संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भाइयों का यह विवाद उस वक्त सामने आया जब आबेदीन ने हाल में सालाना उर्स के मौके पर गाय के गोश्त और तीन तलाक़ के मुद्दे पर एक बयान जारी किया।
 
उन्होंने सामाजिक सौहार्द को ध्यान में रखते हुए मुसलमानों से गोमांस को त्यागने की अपील की थी। दरगाह दीवान ने ये भी कहा कि एक ही समय तीन तलाक कहना आज के वक़्त प्रासंगिक नहीं है। कुछ मुस्लिम संगठनों ने इस पर ऐतराज किया और कहा इससे मुसलमानों को शक़ के दायरे में खड़ा कर दिया गया है। मगर इसके तुरंत बाद उनके भाई आलिमी ने अपने भाई आबेदीन को 'मूर्ताद' (ग़ैर मुस्लिम) करार दे दिया और ख़ुद के सज्जादा नशीन होने का ऐलान कर दिया।
 
दरगाह दीवान आबेदीन ने अपने भाई के दावे को तुरंत ख़ारिज कर दिया। उनका कहना था यह 'बेकार' की बात है। उनके बाद उनके पुत्र सैयद नसीरुद्दीन ही उनके उत्तराधिकारी हैं। सैयद नसीरुद्दीन ने बीबीसी से कहा कि इस मुद्दे पर कोई विवाद नहीं है, "यह वंशानुगत है और सबसे बड़ा बेटा ही सज्जादा नशीन होता है। क़ानून और अदालती निर्णय भी यही कहते हैं।"
 
दरगह प्रबंधन के एक अधिकारी ने बताया कि आबेदीन ही सज्जादा नशीन हैं। दरगाह प्रबंधन के एक अधिकारी ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, 'हमने आलिमी से उनके दावे का आधार बताने को चिठ्ठी लिखी, मगर इसका कोई जवाब नहीं आया।"
 
ख़ुद को सज्जादा नशीन बता रहे आलिमी के बेटे सैयद दानिश कहते हैं, "मेरे वालिद साहिब को काम करने से रोका गया, उन्हें प्रशासन से पाबंद करवाया गया है, हम क़ानूनी उपाय करेंगे। साथ ही इस्लामिक विद्वानों से सलाह मशविरा कर रहे हैं।"
 
दरगाह के एक ख़ादिम नसीम अहमद चिश्ती कहते हैं, "यह उनका घरेलू झगड़ा है। हिस्सेदारी का विवाद है। उन्हें घर परिवार में हल करना चाहिए।" दरगाह में ख़ादिमों के दो संगठन हैं। इनमें से एक अंजुमन सैयद जादगान के वरिष्ठ पदाधिकारी वाहिद अंगारा कहते हैं, "जैनुअल आबेदीन क्या कुछ कहते हैं, वो काबिल-ए-ऐतबार नहीं है।" दरगाह में नज़राने और चढ़ावे में हिस्से को लेकर भी विवाद का लंबा इतिहास रहा है। मगर इस पर फिलहाल समझौता हो गया है।
 
यह विवाद अब भी अदालत में विचाराधीन है। ब्रिटिश शासन के समय भी मामला अदालत तक पहुंचा था। जैनुअल आबेदीन के पुत्र सैयद नसीरुद्दीन बताते हैं, "उस वक्त प्रिवी कौंसिल ने 1938 में सज्जादा नशीन के हक़ में फ़ैसला दिया था।" उसके बाद भी निर्णयों में सज्जादा नशीन के अधिकारों को मान्यता दी गई है।
 
लेकिन क्या जैनुअल आबेदीन के बयान का कोई राजनैतिक मक़सद भी है? सैयद नसीरुद्दीन कहते हैं, "उन्होंने जो कुछ कहा है वो इंसानियत के लिए है।" जबकि जयपुर में जमात-ए-इस्लामी के मोहम्मद इक़बाल सिद्दकी कहते हैं, "उनके बयान से गलतफ़हमी पैदा हुई है। इस कथन ने मुसलमानों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इससे फ़िज़ा ख़राब हुई है।"

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