जैसे-जैसे अयोध्या में बनाए गए राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा का दिन क़रीब आ रहा है, वैसे – वैसे इस मंदिर में राम की मूर्ति बनाने के लिए नेपाल से आईं शिलाओं को लेकर रुझान बढ़ता जा रहा है। राम मंदिर के निर्माण का काम पूरा होने के बाद फरवरी में नेपाल के कालीगंडकी तट से दो शिलाएं अयोध्या लाई गईं थीं।
इन दो शिलाओं का वजन 14 और 27 टन था। कालीनदी तट से सङ्कलित इन शिलाओं को जनकपुर के जानकी मंदिर के माध्यम से अयोध्या भेजा गया था। शुरुआत में इन शिलाओं से राम मूर्ति बनाए जाने की बात सामने आई। लेकिन बाद में पता चला कि इन शिलाओं को राम मूर्ति बनाने के लिए उचित नहीं पाया गया।
भारतीय मीडिया में छपी कुछ ख़बरों के मुताबिक़, इन पत्थरों से मूर्ति नहीं बनाए जाने की एक वजह राम मंदिर से जुड़े संतों की ओर से जताई गई आपत्ति थी।
ख़बरों के मुताबिक़, कुछ संतों का मानना था कि इन पत्थरों को मूर्ति निर्माण में इस्तेमाल नहीं कर सकते क्योंकि कालीनदी की चट्टानों को तोड़ा नहीं जाना चाहिए क्योंकि वे शालिग्राम के बराबर हैं।
हालांकि, अयोध्या पहुंचे नेपाली प्रतिनिधियों के मुताबिक़, इन शिलाओं की तकनीकी जांच के बाद मूर्तिकारों ने कहा कि ऐसी शिला से मूर्ति तराशना संभव नहीं है। इसके बाद दूसरे पत्थरों से मूर्तियां बनाई गयीं।
नेपाली प्रतिनिधियों के मुताबिक़, 27 टन वजनी शिला पर मूर्ति तराशने की कोशिश की गयी थी। क्योंकि 14 टन वजनी शिला को शालिग्राम माना गया। लेकिन 27 टन वाली शिला भी उपयुक्त न पाए जाने के बाद दोनों शिलाओं को राम मंदिर निर्माण स्थल के पास रखा गया है।
भारतीय मीडिया के मुताबिक़, राम मंदिर के गर्भगृह में रखने के लिए देश की अलग-अलग जगहों से लाए गए पत्थरों से तीन मूर्तियां बनाई गई हैं। इनमें से सबसे अच्छी मूर्ति का चयन कर उसे गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा।
प्राण प्रतिष्ठा कब होगी?
अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर का काम देख रहे श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने कहा है कि प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम 22 जनवरी को होगा। ट्रस्ट ने इसकी तैयारी के लिए मेहमानों को आमंत्रित करना शुरू कर दिया है।
मंदिर के गर्भगृह के निर्माण का काम चौबीसों घंटे चल रहा है और काम समय पर पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश-विदेश से ख़ास मेहमान अयोध्या पहुंचेंगे। नए मंदिर के लिए पुजारियों का चयन भी चल रहा है।
नेपाल से लाई गईं शिलाएं कहां हैं?
नेपाल से भेजी गई शिलाओं से मूर्तियां नहीं बनाए जाने के बाद बीबीसी ने नेपाल और भारतीय अधिकारियों से बात करके ये समझने की कोशिश की है कि ये शिलाएं कहां रखी गयी हैं और इनका किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। ये ख़बर लिखे जाने तक इन शिलाओं की स्थिति के बारे में कोई पुख़्ता जानकारी नहीं मिल सकी है।
लेकिन नेपाल से इन शिलाओं को अयोध्या भेजने का प्रस्ताव लाने वाले पूर्व उप-प्रधानमंत्री और पूर्व गृह मंत्री तथा नेपाली कांग्रेस के नेता बिमलेंद्र निधि ने बताया है कि उन्हें जानकारी मिली है कि पत्थरों को सुरक्षित रखा गया है।
उन्होंने कहा, ''उस शिला से मूर्ति बनाना उपयुक्त नहीं था, इसलिए मुझे जानकारी मिली है कि वह उस स्थान पर सुरक्षित रखा गया है जहां राम मंदिर बनाया जा रहा है।''
"भले ही मूर्ति न बनी हो, लेकिन कहा गया है कि पवित्र शिला को गरिमापूर्ण तरीके से मंदिर परिसर में स्थापित किया जाएगा ताकि लोग इसकी पूजा कर सकें।"
अयोध्या से लोगों के लिए शादी के दिन जनकपुर के जानकी मंदिर में आने की प्रथा है। उसी परंपरा को जारी रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारत के अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करने के बाद, नेपाल ने कालीगंडकी का शिलाएं भेजने का प्रस्ताव रखा।
बेनी नगर पालिका जहां से शिलाएं भेजे गए थे, वहां के मेयर सुरत केसी का कहना है कि ये शिलाएं कांग्रेस नेता बिमलेंद्र निधि की पहल पर भेजे गए थे और इन्हें मूर्तियां बनाने के लिए नेपाल से अयोध्या ले जाया गया था। हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर दुख हुआ कि मूर्तियां नहीं बनी थीं।
उन्होंने कहा, "मैंने इन शिलाओं को भेजने वालों से कहा है कि अगर इन शिलाओं से मूर्ति नहीं बनी है तो उन्हें वापस लाया जाना चाहिए। इन शिलाओं से मूर्ति बनाए जाने का दबाव होने के बाद भी मूर्ति नहीं बनी।”
"हमारा कहना ये है कि इन शिलाओं को हमने जिस तरह भेजा है, उसके बाद उन्हें सम्मानपूर्वक जगह दी जानी चाहिए।”
शिलाओं को भेजने का फ़ैसला
नेपाल की ओर से प्रस्ताव भेजे जाने के बाद अयोध्या की राम मंदिर निर्माण समिति ने जानकी मंदिर को पत्र लिखकर शिलाएं उपलब्ध कराने को कहा। इसके आधार पर ही नेपाल सरकार ने इन शिलाओं को भारत भेजने का औपचारिक फ़ैसला किया।
इसके बाद नेपाल के गंडकी प्रांत की सरकार ने जानकी मंदिर प्रबंधन के समन्वय से इन शिलाओं को अयोध्या भेजा गया।
इस प्रक्रिया में राम मंदिर निर्माण का काम देख रहे श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अधिकारी भी नेपाल आए और इन पत्थरों को अयोध्या भेजे जाने से पहले उनकी पहचान करने के लिए कुछ दिनों तक रुके।
अधिकारियों ने बताया कि जब इन शिलाओं को अयोध्या भेजा गया था तो उनके साथ एक ताम्रपत्र भी भेजा गया था।
इसी ताम्रपत्र की तीन प्रतियां नेपाल की संघीय सरकार, गंडकी प्रांत की सरकार और जानकी मंदिर को भेजी गई हैं। इस ताम्रपत्र में लिखा गया है कि इन शिलाओं को मूर्ति बनाने के लिए भेजा गया है।
गत साल के12 जनवरी की तारीख़ वाले इस ताम्रपत्र में लिखा है - ''नेपाल सरकार के समझौते एवं गंडकी प्रांत की सरकार के फ़ैसले के मुताबिक़ कालीगंडकी नदी के आसपास के क्षेत्र से (बेनी नगर पालिका वार्ड नंबर 6 ठूलोबगर) भारत में अयोध्या धाम की श्री रामलीला प्रतिमा के निर्माण के लिए म्याग्दीकी ओर से दो शिलाएं प्रदान की जाएंगी। मुख्यमंत्री श्री खगराज अधिकारी की ओर से जनकपुरधाम में जानकी मंदिर को प्रदान करने का कार्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है।''
शिला पर सरकारी अधिकारी क्या कहते हैं?
शिला भेजने वाली गंडकी राज्य सरकार की सामाजिक विकास मंत्री सुशीला सिंखडा से जब इस बारे में पूछा गया कि शुरुआत में मूर्ति बनाने के लिए भेजी गई थी और ताम्रपत्र में भी इसका जिक्र था, लेकिन अयोध्या पहुंचने के बाद मूर्ति नहीं बनी, तो उन्होंने इस पर अनभिज्ञता जताई। उसने कहा, "मुझे अभी इस बारे में जानकारी नहीं है। मैं आपको बाद में इससे अवगत कराऊंगी।”
बीबीसी ने जनकपुर के जानकी मंदिर के पुजारी रामरोशन दास से भी इस बारे में पूछा। हालांकि, उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें नेपाल से लिए गए पत्थरों की ताजा स्थिति की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा, ''मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानता।''
शिला का उपयोग कैसे किया जाता है?
नेपाल के कुछ प्रतिनिधियों का कहना है कि इन शिलाओं से भले भी मूर्ति का निर्माण न किया गया हो लेकिन उनकी शालिग्राम के रूप में पूजन किया जाएगा।
इन शिलाओं को भेजने की प्रक्रिया से जुड़े रहे कुलराज चालीसे ने बताया है कि उन्हें पता चला है कि इन शिलाओं को मंदिर परिसर में ही रखा जाएगा। चालीसे को शालिग्राम का सांस्कृतिक महत्व समझने वाले विद्वानों में गिना जाता है।
उन्होंने कहा है कि ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने बताया है कि छोटी शिला को शालिग्राम और बड़ी शिला को उसके आधार के रूप में स्थापित किया जाएगा। हालांकि, बीबीसी उनकी ओर से दी गई जानकारी की ट्रस्ट के पदाधिकारियों से पुष्टि नहीं कर सकी है।
बीबीसी की ओर से ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय से संपर्क करने की बार-बार कोशिशें असफल रहीं।
चालीसे के मुताबिक़, वह एक नेपाली भूविज्ञानी के साथ पिछली जून में अयोध्या गए थे जहां उन्होंने इस शिला की स्थिति को देखा था।
उनका कहना है कि जब मूर्तिकारों ने बड़ी शिला पर मूर्ति तराशने की कोशिश की तो पता चला कि वह ज्यादा कठोर नहीं है।
उन्होंने कहा कि वह मानते हैं कि इन शिलाओं को सम्मानजनक ढंग से रखा जाएगा। लेकिन अगर मूर्तियां बनाने के लिए भेजी गई शिलाओं को दूसरे ढंग से इस्तेमाल किया जा रहा है तो सरकार को इसकी जानकारी देनी चाहिए।
उन्होंने कहा, “इस शिला को जानकी मंदिर प्रबंधन की ओर से अयोध्या स्थित राम मंदिर को गोधुवा उपहार के रूप में दिया गया था जिसमें नेपाली करदाताओं का पैसा ख़र्च हुआ। बेटी को दिया गया दहेज वापस नहीं लिया जा सकता। लेकिन गोधुवा का किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, उसके बारे में मैती पक्ष को अवगत कराना चाहिए।”
हालाँकि चालीसे का कहना है कि यदि मूर्ति बनाई जाती तो ये केवल मूर्ति बनकर रहने से चट्टान की पहचान मिट जाती, लेकिन इसे चट्टान के रूप में रखने से इसका महत्व बढ़ जाता है। उन्होंने कहा है कि देवशिला को उसी सम्मान के साथ रखा जाएगा जैसे उसे लाया गया था।
राम मंदिर बनाने का फैसला
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी थी।
साल 1992 में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया था जिसके बाद हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी क़ानूनी लड़ाई चली।
इसके बाद नवंबर 2019 में ऐतिहासिक फैसला सुनाया और आदेश दिया कि अयोध्या में विवादित ज़मीन पर मंदिर बनाया जाए।
इस फ़ैसले में ये भी शामिल था कि केंद्र सरकार मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड की पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन उपलब्ध कराए।