जी-हुज़ूरी बड़े काम की चीज़ है। नौकरी हो या आम ज़िंदगी, जी-हुज़ूरी कर के आप बहुत से काम निकाल सकते हैं। तरक़्क़ी पा सकते हैं। पैसे कमा सकते हैं। दफ़्तरों में ज़्यादातर लोग इस नुस्खे पर अमल करते हैं। बॉस या सीनियर की बात पर फ़ौरन हामी भर कर लोग मुक़ाबले में आगे निकल जाते हैं।
हां-हुज़ूरी करने वालों के मुक़ाबले वो लोग जो बाग़ी कहलाते हैं, जो हर बात पर हामी नहीं भरते। बॉस की राय से हमेशा इत्तेफ़ाक नहीं रखते, वो दफ़्तर में अक्सर हाशिए पर पड़े होते हैं।
बाग़ी होने के अपने फ़ायदे
लेकिन, हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल की प्रोफ़ेसर फ्रांसेस्का गिनो एक नया फ़ॉर्मूला लेकर आई हैं। उन्होंने एक किताब लिखी है- Rebel Talent। इस किताब में फ्रांसेस्का ने तर्क रखा है कि बाग़ी होने के अपने फ़ायदे हैं। पेशेवर ज़िंदगी में कई बार आप के लिए हामी भरने वाले गिरोह से अलग दिखना बड़े काम की चीज़ हो सकती है।
फ्रांसेस्का गिनो कहती हैं कि दफ़्तर में आप भेड़ों यानी जी-हुज़री करने वालों की भीड़ का हिस्सा मत बनिए। आप में क़ाबिलियत है तो धारा के विपरीत तैरने में भी लुत्फ़ है। भीड़ से अलग दिखना भी तरक़्क़ी का एक तरीक़ा हो सकता है।
फ्रांसेस्का का कहना है कि जब हम हर बात पर हामी भरते हैं, तो सत्ताधारी जमात का हिस्सा बन जाते हैं। ऐसा लगता है कि हमारी हस्ती को मंज़ूरी मिल गई है। इससे अच्छा महसूस होता है। लेकिन, इसका दूसरा पहलू ये भी है कि इससे बहुत जल्द बोरियत भी हो जाती है। आप धीरे-धीरे कटा हुआ सा महसूस करते हैं। बहती हवा के साथ अपना रुख़ मोड़ना आसान है। मगर इससे आप को सारा माहौल बनावटी लगने लगता है।
जमात से अलग होकर कुछ कीजिए
अगर आप ये समझते हैं कि आप के अंदर प्रतिभा है, तो बाग़ी हो जाइए। जी-हुज़ूरी करने वालों की जमात से अलग होकर कुछ कीजिए। फ्रांसेस्का सेलेब्रिटी शेह मासिमो बोतुरा की मिसाल देती हैं। वो कहती हैं कि मासिमो जब काम करने के लिए रेस्टोरेंट पहुंचते हैं, तो शेफ़ का लिबास पहनने के बाद झाड़ू उठाते हैं। वो बाहर निकल कर झाड़ू देने लगते हैं। देखने वालों पर इसका गहरा मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है।
जो लोग शेफ़ बोतुरा को झाड़ू लगाते देखते हैं, उनके ज़हन में दो सवाल उठते हैं। पहला तो ये कि आख़िर शेफ़ झाड़ू क्यों लगा रहा है? दूसरा सवाल देखने वाले ख़ुद से करते हैं कि अगर शेफ़ साफ़-सफ़ाई कर सकता है, तो वो क्यों नहीं कर रहे ये काम?
लीक से हटकर चलने के ऐसे कई फ़ायदे
फ्रांसेस्का कहती हैं कि शेफ़ बोतुरा एक बाग़ी हैं। बोतुरा वो काम करते हैं, जिसकी उनसे उम्मीद नहीं की जाती है। वो एक नए तरह के रोल मॉडल बन जाते हैं। बहुत से लोग उनका सम्मान करने लगते हैं। बंधी-बंधाई लक़ीर पर चलने के बजाय शेफ़ का झाड़ू उठाना एक बग़ावत ही है।
लीक से हटकर चलने के ऐसे कई फ़ायदे हैं
फ्रांसेस्का कहती हैं कि ऐसे बाग़ी लोग सबसे ज़्यादा अपने अंदर के सवाल को, जिज्ञासा को तरज़ीह देते हैं। वो जादूगर हैरी हौदीनी की मिसाल देती हैं। बचपन से जादूगरों के करतब देखने वाले हैरी, ख़ुद भी बड़े होकर जादूगर ही बनना चाहते थे। मगर वो कुछ अलग करना चाहते थे। उनके ज़हन में बस एक ही बात थी कि देखने वालों को अपने माया जाल में फंसाए रखना। अपनी अलग करने की चाहत की वजह से हैरी दुनिया के जाने-माने जादूगर बने।
अलग करने की सोचें
अगर आपके अंदर एक बाग़ी बसता है, तो आप उसकी मदद से हमेशा एक नया नज़रिया बनाने की कोशिश करें। लीक पर चलने के बजाय अलग करने की सोचें। फ्रांसेस्का इसकी मिसाल के तौर पर कैप्टन सली सलेनबर्गर का नाम लेती हैं। सलेनबर्ग न्यूयॉर्क की हडसन नदी में विमान उतार कर चर्चा में आए थे। जब जहाज़ का इंजन फ़ेल हुआ और हालात बेक़ाबू हुए, तो सलेनबर्ग ने लीक से अलग हटकर चलने की ठानी और विमान को पानी में उतार दिया।
चिंता और तनाव के माहौल में भी कैप्टन सलेबर्ग ने अपने अंदर के बाग़ी से काम लिया और वो किया, जो आम तौर पर कोई पायलट नहीं करता। लेकिन अलग करने की वजह से कैप्टन सलेनबर्ग विमान में सवार सभी 155 मुसाफ़िरों की जान बचाने में कामयाब हुए।
बाग़ियों के बारे में अक्सर ये सोच रहती है कि वो दफ़्तर के काम-काज और माहौल के लिए ठीक नहीं हैं। लेकिन, फ्रांसेस्का कहती हैं कि बाग़ियों की मौजूदगी दफ़्तर को ज़िंदादिल बनाती है। उनका खिलंदड़पन, दूसरे लोगों से बात-चीत के बाद उनमें उत्साह भरता है। तो, ऑफ़िस में अगर आप भी अब तक जी-हुज़ूरी गैंग में रहे हैं, तो शायद ये बिल्कुल सही वक़्त है ख़ुद को बाग़ी बनाकर हुजूम से अलहदा खड़ा करने का।