बजट 2019 : वो पांच शब्दावली जिसे जाने बगैर बजट नहीं समझ पाएंगे
शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019 (10:49 IST)
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल शुक्रवार को केंद्र की वर्तमान एनडीए सरकार का अंतिम बजट पेश करेंगे। वित्त मंत्री अरुण जेटली की तबीयत ख़राब होने की वजह से उनका कार्यभार संभाल रहे पीयूष गोयल ये बजट पेश करने जा रहे हैं। इस साल आम चुनाव होने वाले हैं और यह बजट उस लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण समझा जा रहा है। चर्चाएं यह भी हैं कि सरकार वोटरों को लुभाने के लिए परंपरा के विपरीत पूर्ण बजट पेश कर सकती है।
दरअसल हर चुनावी साल में केवल शुरुआती चार वित्तीय महीनों का बजट पेश किये जाने की परंपरा रही है, इसिलिए इसे अंतरिम बजट कहा जाता है। नई सरकार के गठन के बाद बाकी वित्त वर्ष के लिए पूरक बजट पेश किया जाता है।
हर बजट पेश करने के दौरान कुछ ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल किया जाता है जिसे जाने बगैर आप बजट को अच्छी तरह नहीं समझ पायेंगे। ऐसे में बजट से जुड़े इन पांच शब्दों की आपको जानकारी होनी चाहिए।
1. राजकोषीय घाटा का सवाल
सरकार की कुल सालाना आमदनी के मुक़ाबले जब ख़र्च अधिक होता है तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। इसमें कर्ज़ शामिल नहीं होता। साल 2017 में बजट की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि साल 2017-18 में राजकोषीय घाटा कुल जीडीपी का 3.2 फ़ीसदी होगा। ये इसके पिछले वित्तीय वर्ष के लक्ष्य 3.5 फ़ीसदी से कम था।
हालांकि विशेषज्ञों की चिंता है कि ये लक्ष्य पूरा नहीं होगा और आने वाले वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटा कम होने के बजाय बढ़ सकता है। ऐसा अनुमान है कि बजट लोकलुभावन होगा जिसमें आने वाले चुनावों के लिहाज से मतदाताओं को लुभाने के लिए सरकार अधिक खर्च की घोषणा करेगी और टैक्स की सीमा में भी बदलाव कर सकती है।
2. पर्सनल इनकम टैक्स में छूट की सीमा
वर्तमान में ढाई लाख रुपये तक की सालाना कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगता है। इस सीमा को बढ़ाकर पांच लाख रुपये करने का अनुमान लगाया जा रहा है। वहीं इनकम टैक्स की धारा 80 सी के तहत निवेश पर दी जाने वाली करमुक्त आय की सीमा को भी 1।5 लाख से बढ़ाकर तीन लाख किये जाने की संभावना जताई जा रही है।
सरकार इसका आधार यह बता सकती है कि आरक्षण के तहत आर्थिक रूप से कमज़ोर उन लोगों को माना जा रहा है जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपये हैं, ऐसे में इतनी ही कमाई करने वाले नौकरीपेशा लोगों को राहत मिलनी चाहिए।
3. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर
प्रत्यक्ष कर वो हैं जो देश के नागरिक सरकार को सीधे तौर पर देते हैं। ये टैक्स इनकम पर लगता है और किसी अन्य व्यक्ति को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। डायरेक्ट टैक्स में इनकम टैक्स, वेल्थ टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स आते हैं।
अप्रत्यक्ष कर वो हैं जो किसी भी व्यक्ति को ट्रांसफर किये जा सकते हैं जैसे किसी सर्विस प्रोवाइडर, प्रोडक्ट या सेवा पर लगने वाला टैक्स। अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण जीएसटी है जिसने वैट, सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, लग्जरी टैक्स जैसे अलग-अलग टैक्स की जगह ले ली है।
4. वित्तीय वर्ष
भारत में वित्तीय वर्ष की शुरुआत एक अप्रैल से होती है और अगले साल के 31 मार्च तक चलता है। इस साल का बजट वित्तीय वर्ष 2019 के लिए होगा जो एक अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2019 तक के लिए होगा। मौजूदा सरकार ने वित्तीय वर्ष के कैलेंडर बदलाव की बात कई बार कही है। सरकार वित्तीय वर्ष को जनवरी से दिसंबर तक करना चाहती है। हालांकि अब तक इसमें बदलाव नहीं हुआ।
5. शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म गेन
वर्तमान में कोई भी व्यक्ति यदि शेयर बाज़ार में एक साल से कम समय के लिए पैसे लगा कर लाभ कमाता है तो उसे अल्पकालिक (शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन) पूंजीगत लाभ कहते हैं। इस पर 15 फ़ीसदी तक टैक्स लगता है।
शेयरों में जो पैसा एक साल से अधिक समय के लिए होता है उसे दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन) कहते हैं। पहले इस आय पर टैक्स नहीं देने का प्रावधान था लेकिन वर्तमान सरकार ने 2018-19 के बजट में इस पर 10 फ़ीसदी टैक्स का प्रावधान किया है।
हालांकि, यह टैक्स सिर्फ़ 1 लाख रुपये से अधिक की कमाई पर ही देना होगा। एक लाख से कम की कमाई पर किसी तरह का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन नहीं लगाया गया है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि सरकार लॉन्ग टर्म कैपिटन गेन की समय सीमा में बदलाव कर सकती है।