स्वतंत्रता दिवस से पहले जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले में बुधवार को हुई भीषण मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने एक चरमपंथी को मारा। इस ऑपरेशन में चरमपंथियों का मुक़ाबला करते हुए सेना की 48 राष्ट्रीय राइफ़ल्स के कैप्टन दीपक सिंह घायल हो गए थे। उन्हें इलाज के लिए सैन्य अस्पताल ले जाया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। दीपक सिंह देहरादून के रहने वाले थे। उनका पार्थिव शरीर 15 अगस्त को उनके आवास पर लाया गया और राजकीय सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी गई।
घर पर मातम, पड़ोसी भी गमगीन
मूलरूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा के रहने वाले कैप्टन दीपक ने 12वीं तक की पढ़ाई देहरादून के एक स्कूल से की। 13 जून 2020 को वह सेना में कमीशन अधिकारी के तौर पर नियुक्त हुए थे। उनके पिता महेश सिंह उत्तराखंड पुलिस से इंस्पेक्टर के पद से रिटायर हुए हैं।
वह पुलिस मुख्यालय में तैनात थे और इसी साल अप्रैल में वीआरएस लिया था। जबकि उनकी मां चंपा देवी गृहणी हैं।
पूर्व में उनका परिवार देहरादून पुलिस लाइन स्थित रेसकोर्स में रहता था, लेकिन क़रीब तीन साल पहले परिवार कुआंवाला स्थित विंडलास रिवर वैली में शिफ्ट हो गया था।
कैप्टन दीपक के मौत की ख़बर से विंडलास रिवर वैली हाउंसिंग सोसाइटी के लोग गमगीन दिखे। रिवर वैली रेज़िडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन ने शोकसभा आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
सोसायटी के सचिव प्रदीप शुक्ला ने बताया कि 'हमारे यहां 15 अगस्त के उपलक्ष्य में ध्वजारोहण के साथ अन्य कई नाच-गाने के प्रोग्राम तय किये गये थे। मगर ठीक एक दिन पहले आयी इस ख़बर के कारण सब रोकना पड़ा। 15 अगस्त को सिर्फ़ ध्वजारोहण ही किया गया, क्योंकि यह करना ज़रूरी था।'
रक्षाबंधन से पहले मौत से बहनों को सदमा
कैप्टन दीपक सिंह 2 बहनों के इकलौते भाई थे। रक्षाबंधन से क़रीब 5 दिन पहले भाई की मौत की खबर कैप्टन दीपक की बहनों को मिली।
वह तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। क़रीब 3 माह पहले ही उनसे बड़ी बहन ज्योति की शादी हुई थी जिसमें शामिल होने के लिए वे देहरादून आए थे।
जबकि सबसे बड़ी बहन मनीषा केरल में रहती हैं। कैप्टन दीपक की बहने भी उनकी सलामती की दुआ कर रही थीं पर 15 अगस्त को उनका पार्थिव शरीर घर पहुंचा।
दोनों बहनें और मां का रो-रोकर बुरा हाल है और वो बात करने की स्थिति में नहीं हैं।
आवासीय सोसाइटी के सचिव प्रदीप शुक्ला कहते हैं, 'रक्षा बंधन आने को है और दीपक दो बहनों का इकलौता भाई था। अब ऐसे में बहनों पर क्या गुज़र रही होगी, यह शब्दों में कह पाना भी बहुत कठिन है।'
वहीं दीपक के पिता महेश सिंह ने बताया कि, 'मई के महीने में घर में शादी थी, 2 मई को दीपक घर पर ही था। उसने क़रीब 2 हफ़्ते घर में ही गुज़ारे। जिसके बाद वह चला गया था। हमारी उससे लगातार बात होती रहती थी। '
'बल्कि आने वाले दिनों में दीपक को देहरादून में अपने 2-3 दोस्तों की शादी में शामिल होना था, मगर तक़दीर में कुछ ओर ही होना लिखा था।'
आर्मी में ही जाने की थी चाहत
25 वर्षीय शहीद कैप्टन दीपक सिंह 48राष्ट्रीय राइफल्स में कैप्टन के पद पर तैनात थे। कैप्टन दीपक के पिता ने बताया कि उनके बेटे की इच्छा आर्मी में ही जाने की थी।
बेटे की मौत पर पिता के आंखों में आंसू नहीं है बल्कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है। महेश सिंह कहते हैं, 'उसकी इच्छा आज पूरी हो गई, वह चाहता ही यही था। मुझे अपने बेटे की शहादत पर गर्व है। मुझे किसी बात का दुःख नहीं है।'
'ना ही मैं रोऊंगा और न ही मैं अभी तक रोया हूं। मैंने क़तई ठान लिया है कि मैं कमज़ोर नहीं होऊंगा।'
उन्होंने बताया, 'पुलिस लाइन में रहने के कारण उसने नज़दीक से यूनिफ़ॉर्म को देखा था और यूनिफ़ॉर्म देखकर ही उसके में इच्छा थी कि मैं भी यूनिफ़ॉर्म पहनूं।'
उन्होंने बताया, 'वह पढ़ाई में भी अव्वल था। जैसे ही उसने इंटर पास किया जिसके बाद उसने सेना का भी फ़ॉर्म भर दिया। वह दो जगह इलाहाबाद और भोपाल एसएसबी के एग्ज़ाम के लिए गया।'
'मैं दोनों जगह ही उसके साथ गया था। बाद में यह दोनों एग्ज़ाम उसने पास किये। इसके बाद उसने मुझसे कहा कि मैं इनफेंट्री ज्वाइन करूंगा। जिसके बाद दीपक ने सिग्नल ज्वाइन किया।'
पिता बेटे को याद करते हुए कहते हैं, 'सिग्नल में जाने के बाद भी वह एक दिन छुट्टी पर आया और बोला मैं तो जम्मू कश्मीर में नौकरी करूंगा। तब वह असम में पोस्टेड था तब वह वहीं से जम्मू-कश्मीर गया और आर। आर (राष्ट्रीय राइफ़ल्स) ज्वॉइन किया। यह बात उसने यहां घर पर आकर बाद में बताई।'
देश के प्रति जज़्बा और जुनून
पिता के पास बेटे को लेकर तमाम यादें हैं, 'एक बार जब वह देहरादून छुट्टी पर आया था, तब वह मुझे देहरादून स्थित कैंट एरिया में लेकर गया। वहां कैंट एरिया में खुखरियां (बड़ा चाक़ू, डैगर) मिलते हैं।'
'उसने वहां से वह खुखरी ख़रीदी और मुझे कहा, 'पापा यह खुखरी मैं इसलिए ले रहा हूं अगर मेरी गन की कभी गोलियां ख़त्म हो गई तो दुश्मन को मैं इस से ठीक कर दूंगा।'
वह कहते हैं 'उसके यहां से जाने बाद से वह परिवार वालों को भी वह खुखरी के साथ वाली अपनी फ़ोटो भेजता था। फ़ोटो में उसके एक तरफ़ गन लटकी है दूसरी तरफ़ उसकी वही खुख़री लटकी होती है।'
वह भावुक होकर कहते हैं 'मुझे दुःख इस बात का है कि वह मुझसे पहले चला गया, जबकि जाना तो मुझे पहले था।'
कैप्टन दीपक रणभूमि ही नहीं, बल्कि खेल के मैदान के भी महारती थे। एक बेहतरीन खिलाड़ी होने के नाते उन्होंने कई मौकों पर शानदार खेल दिखाया।
पिता बताते हैं, 'उसके तमाम मेडल आज यहां घर में मौजूद हैं। बल्कि उसके जीते इतने मेडल हैं कि उन्हें लगाने की भी जगह नहीं बची है।'
रिवर वैली रेज़िडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव प्रदीप शुक्ला कहते हैं 'दीपक बेहद मिलनसार और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे। वह जब भी छुट्टी पर आते, टेनिस खेलने ज़रूर आते थे।'(फोटो सौजन्य : बीबीसी)
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)