प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए
इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के महीनों पहले से ही सत्ता के दोनों दावेदारों यानी टीएमसी और बीजेपी के बीच कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर जंग चल रही थी। दोनों पक्ष एक-दूसरे को हिंसा करने और भड़काने का आरोप लगाते हुए खुद को बेचारा साबित करने का पुरजोर प्रयास कर रहे थे।
इसी रणनीति के तहत बीजेपी के प्रदेश नेता बार-बार केंद्रीय गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग से विधानसभा चुनावों से पहले ही राज्य में केंद्रीय बलों की टुकड़ियां भेजने की मांग कर रही थी।
अब जब बीते सप्ताह के आखिर से केंद्रीय बलों के जवान यहां पहुंचने लगे हैं तो एक बार फिर दोनों दावेदार एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करने में जुट गए हैं।
बीजेपी की दलील है कि बंगाल में कानून और व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही आयोग ने समय से पहले सुरक्षा बलों को यहां भेजने का फैसला किया है ताकि आम लोगों में फैले आतंक को खत्म कर उनका मनोबल बढ़ाया जा सके।
लेकिन टीएमसी का आरोप है कि चुनावों के एलान से पहले ही बड़े पैमाने पर केंद्रीय बलों को भेज कर बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार आम लोगों और पार्टी को आतंकित करने का प्रयास कर रही है।
पार्टी का आरोप है कि बीजेपी की मांग पर ही आयोग ने यह फैसला किया है। हालांकि आयोग ने इस पर सफाई देते हुए एक बयान में इसे रूटीन मामला करार दिया है। लेकिन राज्य में इस मुद्दे पर जुबानी जंग लगातार तेज हो रही है।
आयोग का फैसला
बीती जनवरी में चुनाव आयोग के टीम के कोलकाता दौरे के समय तमाम विपक्षी दलों ने उससे मुलाकात कर बंगाल में बढ़ती राजनीतिक हिंसा और कानून व्यवस्था की स्थिति में गिरावट पर गहरी चिंता जताई थी। उस मुलाकात के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने पत्रकारों से कहा था, "तमाम राजनीतिक दलों से हमारी विस्तार से बातचीत हुई है। सबने कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर गहरी चिंता जताई है।"
उन्होंने उसी समय कहा था कि राज्य में समय से पहले ही केंद्रीय बल के जवानों को तैनात किया जाएगा। इस सप्ताह चुनाव आयोग की टीम एक बार फिर ज़मीनी परिस्थिति और चुनावी तैयारियों का जायजा लेने कोलकाता के दौरे पर आएगी।
दो साल पहले हुए लोकसभा चुनावों के दौरान राज्य में केंद्रीय बलों की 75 कंपनियां तैनात की गई थीं। लेकिन चुनाव आयोग ने इस साल एक हजार से ज्यादा कंपनियां यहां भेजने का संकेत दिया है। इनमें से सवा सौ कंपनियां फरवरी के आख़िर तक राज्य में पहुंच जाएँगी।
चुनावों के एलान से पहले ही राज्य में केंद्रीय बलों की करीब सवा सौ कंपनियों के आने से राज्य प्रशासन हैरत में है। इससे पहले चुनाव की तारीखों के एलान के बाद संवेदनशील इलाकों में लोगों का भरोसा मजबूत करने के लिए केंद्रीय बलों की कंपनियां भेजी जाती रही है। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों के एलान के बाद ऐसी 30 और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के एलान के बाद 40 कंपनियां भेजी गई थीं। लेकिन इस साल अब तक चुनावों की तारीख का एलान नहीं किया गया है।
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, "पश्चिम बंगाल के चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ है जब ताऱीखों के एलान के पहले ही इतनी बड़ी तादाद में केंद्रीय बलों को यहां भेजा जा रहा है। इसका मतलब यह है कि चुनाव आयोग यहां कानून और व्यवस्था की परिस्थिति से संतुष्ट नहीं है। इसके अलावा यह राज्य सरकार के लिए एक कड़ा संदेश भी हो सकता है। शायद आयोग को राज्य प्रशासन की निष्पक्षता पर भरोसा नहीं है।"
राज्य प्रशासन को लेकर विश्वास में कमी
बीते कुछ महीनों से टीएमसी और बीजेपी एक-दूसरे पर अपने कार्यकर्ताओं की हत्या के आरोप लगाते रहे हैं। राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी कानून-व्यवस्था के अलावा पुलिस और प्रशासन की निष्पक्षता पर भी लगातार सवाल उठाते रहे हैं।
यह सही है कि बीते छह महीनों के दौरान राज्य में खासकर विपक्ष के कई कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है और इसी दौरान बीजेपी अध्यक्ष जे।पी।नड्डा के काफ़िले पर भी हमला हुआ है। ऐसे में आयोग की ओर से पहले ही केंद्रीय बलों को भेजना का एक मतलब यह भी है कि वह इस बार विधानसभा चुनावों को हिंसामुक्त रखने का भरसक प्रयास कर रहा है। इससे पहले वर्ष 2018 के पंचायत और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी बड़े पैमाने पर हिंसा हो चुकी है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि आयोग के रवैए से साफ है कि वह बंगाल पर खास ध्यान दे रहा है। बंगाल के अलावा बाकी जिन चार राज्यों में चुनाव होने हैं वहां अब तक केंद्रीय बलों के इतने जवान नहीं भेजे गए हैं।
चुनाव को युद्ध मानने का आरोप
टीएमसी ने भारी तादाद में केंद्रीय बलों को समय से पहले यहां भेजने के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि वह (बीजेपी) चुनावों को युद्ध मान कर चल रही है। टीएमसी के नेता और ममता बनर्जी सरकार में मंत्री ब्रात्य बसु कहते हैं, "बीजेपी इसे चुनाव नहीं, बल्कि युद्ध मान रही है। वह जानती है कि आम लोग उसके साथ नहीं हैं। इसलिए वह बंगाल में टैंक भी भेज सकती है।"
टीएमसी ने बीजेपी पर अपने सियासी हितों को साधने के लिए केंद्रीय बलों के इस्तेमाल का भी आरोप लगाया है। टीएमसी नेता फिरहाद हकीम कहते हैं, "बीजेपी राज्य के सीमावर्ती इलाकों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों को भेज कर उनको भगवा पार्टी को वोट देने के लिए धमका रही है, चुनाव आयोग को इस मामले की जांच करनी चाहिए।" बीते महीने टीएमसी महासचिव पार्थ चटर्जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मिल कर इस बात की शिकायत भी की थी। हालांकि बीजेपी ने इन आरोपों का खंडन किया है।
अलीपुरदुआर के टीएमसी विधायक सौरव चक्रवर्ती आरोप लगाते हैं, "चुनावों के एलान से पहले ही भारी तादाद में केंद्रीय बलों को भेज कर बीजेपी आम लोगों को आतंकित करने की रणनीति पर बढ़ रही है। लेकिन इससे उसे कोई फायदा नहीं होगा।"
दक्षिण 24-परगना जिले की एक रैली में मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी का कहना था, "केंद्रीय बलों से डरने की कोई जरूरत नहीं है। वह आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। बीजेपी कई इलाकों में पैसे भी बांट रही है। आपलोग इस पर निगाह रखें।"
निष्पक्ष चुनाव
दूसरी ओर, बीजेपी ने टीएमसी के आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि केंद्रीय बलों को भेजने का फैसला चुनाव आयोग का है, बीजेपी का नहीं। बीजेपी नेता जय प्रकाश मजुमदार कहते हैं, "केंद्रीय बलों की तैनाती में बीजेपी या केंद्र सरकार का कोई हाथ नहीं है। आयोग ने ज़मीनी परिस्थिति के आकलन के बाद ही यह फैसला किया है।"
बीजेपी के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी आरिज आफताब से मुलाकात कर शिकायत की है कि सरकार केंद्रीय बलों को ऐसे तरीके से तैनात कर रही है कि सत्तारुढ़ पार्टी के हितों को फायदा हो। इन जवानों को संवेदनशील और हिंसाग्रस्त इलाकों में नहीं भेजा जा रहा है। इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए।
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "राज्य में ऐसा माहौल बनाना जरूरी है कि लोग निडर होकर मतदान के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकें। इसके लिए केंद्रीय बलों की तैनाती बेहद अहम है।"
उनका दावा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान भी यहां डर का माहौल था। उस दौरान राज्य की सभी 42 लोकसभा सीटों पर हिंसा की घटनाएं हुई थीं। वह कहते हैं, मतदान केंद्रों के भीतर केंद्रीय बल और बाहर राज्य पुलिस की तैनाती की जानी चाहिए ताकि निष्पक्ष चुनाव कराया जा सके।