कोरोना वायरसः अमेरिका के पड़ोस में चीन की 'मास्क डिप्लोमेसी'

Webdunia
गुरुवार, 23 अप्रैल 2020 (12:32 IST)
तमारा गिल, बीबीसी न्यूज़ वर्ल्ड
कोरोना वायरस से फैली महामारी ने जहां एक ओर पूरी दुनिया की रफ़्तार रोक दी है, वहीं लातिन अमेरिका चीन की तरफ़ देख रहा है। लातिन अमेरिका के देशों को कोविड-19 की महामारी से लड़ने के लिए चीन से मेडिकल इक्विपमेंट, विशेषज्ञ और सलाह, ये तीनों चीज़ें मदद के तौर पर मिल रही हैं। कई विश्लेषक लातिन अमरीकी देशों को मिल रही इस मदद को चीन की नई 'मास्क डिप्लोमेसी' करार दे रहे हैं।

कुछ महीनों पहले चीन कोरोना वायरस के संक्रमण का केंद्र था लेकिन अब उसे कोविड-19 पर काबू पाने वाले देश के तौर पर देखा जा रहा है।

पश्चिमी दुनिया के जो देश कुछ अर्से पहले तक ये समझ रहे थे कि कोरोना वायरस उनसे बहुत दूर है, अब चीन उन्हें मदद की पेशकश कर रहा है।

'कहानी बदलने की चीन की कोशिश'

ये एक बड़ा बदलाव है और विश्लेषक इसे "कहानी बदलने की चीन की कोशिश" के तौर पर देख रहे हैं।

चीन दुनिया में अपनी छवि सुधार रहा है, ख़ासकर लातिन अमेरिका में जहां अमेरिका इन दिनों दिखाई नहीं दे रहा है।

अमेरिका के पड़ोसी देशों में चीन ने मदद देने के लिए सबसे पहले वेनेज़ुएला को चुना। 15 मार्च के आस-पास वेनेज़ुएला को चीन से भेजे गए 4000 कोडिव टेस्ट-किट की डिलेवरी कर दी गई।

इसके ठीक पहले निकोलस मादुरो की सरकार ने इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड से पांच अरब डॉलर की मदद मांगी थी जिसे आईएमएफ़ ने ठुकरा दिया था।

हालांकि अतीत में निकोलस मादुरो की सरकार इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड की कड़ी आलोचना करती रही थी।

'शुक्रिया, चीन!'

चीन की मदद पाने वालों में केवल वेनेज़ुएला नहीं है। इस लिस्ट में बोलिविया, इक्वाडोर, अर्जेंटीना और चिली जैसे देश हैं जिन्होंने चीन की दरियादिली को मुक्तकंठ से सराहा है।

यहां तक कि इन देशों ने कोविड-19 पर स्टडी के लिए अपने विशेषज्ञ भी चीन भेजे हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि चीन की तरफ़ सब कुछ मदद के रूप में हुआ है। लातिन अमरीकी देशों ने चीन से बड़ी खरीदारियां भी की हैं।

मेक्सिको ने हाल ही में चीन को 56।4 मिलियन अमरीकी डॉलर में मेडिकल सप्लाई का ऑर्डर दिया है जिसमें एक करोड़ 15 लाख KN95 मास्क भी शामिल हैं।

पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट्स हासिल करने को लेकर दुनिया के देशों में जिस तरह होड़ मची हुई हुई है, उसे देखते हुए मेक्सिको के विदेश मंत्री मार्सेलो इब्रार्ड ने कहा, "जिस तरह से मेक्सिको का ख़्याल रखा गया है, उसके लिए हम चीन का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं।"

लातिन अमेरिका में चीन का दखल

चीन के उप विदेश मंत्री लु झाओहुई ने मार्च के आख़िर में कहा था, "कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जब तक आख़िरी जीत न हासिल कर ली जाए, तब तक हम दूसरे देशों के साथ सहयोग मजबूत करने की दिशा में काम करते रहेंगे।"

बहुत सारे राजनेता और विशेषज्ञ चीन की मदद की सराहना करते हैं लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो ये मानते हैं कि चीन कोई परोपकार नहीं कर रहा है।

थिंकटैंक 'सेंटर फ़ॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़' (सीएसआईएस) में एशिया मामलों के एक्सपर्ट बॉनी ग्लेज़र कहते हैं, "चीन पैसा बनाना चाह रहा है। वो दुनिया की कोई मदद नहीं कर रहा है।"

साल 2008 के संकट के समय भी चीन ने लातिन अमरीकी देशों को पैसे से और व्यावसायिक मदद दी थी।
लातिन अमेरिका में चीन के दखल और बढ़ते प्रभुत्व को तभी से नोटिस किया जा रहा है।

एशिया का सुपरपावर'

अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकार पुराने अनुभव को देखते हुए ये सवाल पूछ रहे हैं कि क्या 'एशिया का ये सुपरपावर' इस बार भी लातिन अमेरिका को बचाने के लिए आगे आएगा।

लातिन अमरीकी देश ख़राब आर्थिक स्थिति के साथ-साथ कोरोना वायरस से फैली महामारी के संकट का सामना कर रहे हैं। ये उनके लिए एक तरह से दोहरी मार पड़ने जैसी स्थिति है।

बीजिंग की रेनमिन यूनिवर्सिटी में लातिन अमरीकी अध्ययन केंद्र के निदेशक सुई शोउजुन कहते हैं, "अगर लातिन अमरीकी देश चीन की तरफ़ मदद के लिए देखेंगे तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन उन्होंने दोबारा मदद पहुंचाएगा।"

प्रोफ़ेसर सुई शोउजुन को इसमें जरा सा भी संदेह नहीं लगता कि चीन इस क्षेत्र में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर अन्य मानवीय सहायता तक के मामलों में बढ़चढ़कर मदद करेगा, हालांकि वो इस बात पर भी जोर देते हैं कि चीन बिना शोर-शराबा किए ऐसा करना पसंद करेगा।

वो कहते हैं, "चीन बुरे वक़्त में काम आने वाले देश के तौर पर खुद को पेश करना पसंद करेगा न कि एक मसीहा के तौर पर।"

चीन के इरादों पर सवाल

चीन और लातिन अमेरिका के रिश्तों पर लंबे समय से नज़र रखती आ रहीं मार्ग्रेट मेयर्स मौजूदा हालात में लातिन अमेरिका में चीन की बढ़ती मौजूदगी पर ज़ोर देती हैं।

वो कहती हैं, "इसमें कोई शक नहीं कि चीन इस इलाके को पटरी पर लाने के लिए प्रमुख भूमिका निभाएगा।"

लेकिन मार्ग्रेट मेयर्स की कुछ चिंताएं भी हैं, "साल 2008 के संकट के बाद चीन ने जिस तरह से मदद की थी, इस बार उसकी मदद करने का तरीका पहले से अलग हो सकता है। "

विशेषज्ञ इस ओर भी इशारा करते हैं कि लातिन अमेरिका को चीन की संभावित मदद काफी कुछ इस पर निर्भर करेगा कि वो इस इलाके में आर्थिक सुधार की कितनी संभावनाएं देखता है और अपनी भूमिका वो किस हद तक बढ़ाना चाहेगा।

इसकी वजहें भी हैं। पिछले सालों में लातिन अमेरिका में चीन के निवेश की रफ़्तार काफी कम हुई है। इसलिए इस नई मदद को लेकर लोगों के मन में अपने सवाल हैं।

कोविड-19 की महामारी

मार्ग्रेट मेयर्स पूछती हैं, "पिछले साल चीन ने लातिन अमरीकी देशों में केवल 1।1 अरब डॉलर का निवेश किया था। अगर ये संकट से पहले की स्थिति है तो कोरोना वायरस से फैली महामारी के बाद चीन को सहयोग की ज़्यादा भावना दिखानी होगी।"

जर्मन थिंकटैंक 'द मर्कैटर इंस्टीट्यूट फ़ॉर चाइना स्टडीज़' के विशेषज्ञ मैट फरहेन कहते हैं, "कोविड-19 की महामारी के ख़राब दौर से गुजर रहे लातिन अमेरिका के लिए चीन की तरफ़ से पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट्स की मदद बहुत मायने रखती है। लेकिन इस हकीकत के बावजूद आने वाले समय में परिस्थितियां पूरी तरह से अलग होंगी।"

"दुनिया पहले से ही एक वैश्विक आर्थिक सुस्ती का सामना कर रही है और इन सब के बीच चीन से ये उम्मीद करना कि वो लातिन अमरीकी देशों के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की तमाम कमियों को दूर कर के उनकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आए, मुझे लगता है कि वास्तविकता से परे हैं।"

ब्राज़ील की डिप्लोमैट और अर्थशास्त्री टैटियाना रोज़िटो कहती हैं कि लातिन अमेरिका को भले ही दुनिया की मदद मिले या न मिले, ज़रूरत इस बात की है कि इन देशों को खुद ही एक क्षेत्रीय विकास योजना लेकर सामने आना चाहिए।

चीन और अमेरिका के बीच

लातिन अमरीकी देशों को टैटियाना रोज़िटो ये सलाह देती हैं कि उन्हें चीन या अमेरिका में से किसी एक चुनने के धर्मसंकट में फंसने से बचना चाहिए।

वो कहती हैं, "एक लीडरशिप वैक्यूम है। चीन भले ही इसे अभी न भर पाए लेकिन कोरोना वायरस से लड़ने की दिशा में उसने अपनी काबिलियत दिखाई है।"

इतिहास में जब भी पीछे मुड़कर देखा जाएगा, संकट के समय ही सत्ता के समीकरण बदलते हैं। दुनिया इसी तरह से चलती आई है।

अमरीकी सरकार के पूर्व अधिकारी एरिक फार्न्सवर्थ कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि चीन सचमुच लातिन अमेरिका का रक्षक बनना चाहता है। अगर वे ऐसा करते हैं तो निस्संदेह वो इसका श्रेय भी लेंगे लेकिन मुझे लगता है कि उनकी नज़र कहीं और है।"

एरिक फार्न्सवर्थ और दूसरे जानकारों की ये राय है कि चीन कोविड-19 की महामारी फैलाने की जिम्मेदारी से बचना चाहता है और वो इसी मक़सद से मदद के लिए आगे आ रहा है।

बदनामी के साये में चीन

जानकार इस ओर ध्यान दिलाते हैं कि कोरोना वायरस का प्रकोप चीन से शुरू हुआ। अज्ञात निमोनिया के बारे में आगाह करने वाले डॉक्टरों को चीन में खामोश कर दिया गया और यहां तक कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने अपने हालिया बयानों में इस तथ्य पर भी सवाल उठाया कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन से शुरू हुई।

चायनीज़ यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग में चीनी अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर विली लैम कहते हैं, "चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों ने जिम्मेदारी के मुद्दे पर लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश की। इसमें कोई शक नहीं कि ये वायरस चीन से ही फैला और प्रांतीय और केंद्रीय सरकार की ग़लतियों की वजह से हालात बहुत बिगड़ गए।

सीएसआईएस के एक्सपर्ट बॉनी ग्लेज़र भी चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना करते हैं। उनका मानना है कि चीन अब संकट के हालात का आर्थिक फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रहा है।

ब्राज़ील लातिन अमेरिका के उन गिने-चुने देशों में से हैं जिसने चीन पर इस सिलसिले में आरोप लगाया है। हालांकि चीन ने इसे खारिज करते हुए इन आरोपों को नस्लवादी करार दिया है।

रेनमिन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर सुई शोउजुन कहते हैं, "इसमें कोई शक नहीं कि चीन अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो अमेरिका की जगह लेना चाहता है। अमेरिका दुनिया का सबसे ताक़तवर देश है और रहेगा। पश्चिमी गोलार्ध में कोई देश उसकी जगह नहीं ले सकता है।"

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