चीन और नेपाल के बीच तिब्बत के केरुंग से लेकर काठमांडू तक रेलवे लाइन बिछाने के समझौते पर गुरुवार को हस्ताक्षर हो गए हैं। चीन के 6 दिन के दौरे पर गए नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली और चीन के मौजूदा प्रीमियर ली केकियांग के बीच दोनों देशों को जोड़ने के लिए सड़क, रेल और हवाई मार्ग बनाने के बारे में समझौता हुआ।
दोनों देशों ने उम्मीद जताई है कि द्विपक्षीय सहयोग के तहत हुए इस ऐतिहासिक समझौते से एक नए युग की शुरुआत होगी। इसके अलावा आपसी सहयोग के लिए ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क से भी दोनों देशों को जोड़ने के संबंध में सहमति हुई है।
भारत पर क्या पड़ेगा असर?
चीन में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सैबल दासगुप्ता कहते हैं कि तिब्बत के ऊपर ल्हासा तक जो रेल लाइन है, उसे बढ़ाकर काठमांडू तक लाए जाने की योजना है। इसके लिए कई ब्रिज और सुरंगें बनानी होंगी, जो काफी कठिन काम के साथ-साथ बेहद खतरनाक भी माना जाता है और इसमें काफी खर्च भी आएगा, जो नेपाल की क्षमता नहीं है। उधार लेने की सूरत में नेपाल 30-40 साल तक कर्ज चुकाता रहेगा। इसके बारे में नेपाल को सोचना होगा। फिर आगे ये रेल आएगी तो करेगी क्या, ये भी सरकार को सोचना होगा। नेपाल के लिए चीन खरीदार नहीं लेकिन चीन के लिए नेपाल खरीदार है।
ये रेलवे लाइन फिलहाल भारत की सीमा तक नहीं है तो ऐसे में ये कहा जा सकता है कि इससे साफतौर पर कोई खतरा दिखाई नहीं देता। लेकिन सैबल दासगुप्ता कहते हैं कि मान लो ये रेल लाइन बाद में काठमांडू से आगे बढ़ा दी जाती है और भारत की सीमा तक आ जाती है तो चीन का माल भारत के दरवाजे पर खड़ा होगा।
अगर हम ये मानते हैं कि चीन नेपाल को अपना सामान बेचना चाहता है तो इससे बड़ी हंसने वाली बात कोई नहीं है। नेपाल में तो लोग ट्रेन के टिकट भी नहीं खरीद पाएंगे। सस्ती चीजों की बात करें तो नेपाल में एक बाजार होने की बात समझ आती है लेकिन बड़ी मशीनरी के लिए तो वो भारत का ही मुंह देखेगा।
चीन का एक ही मकसद है कि वो भारत के दरवाजे पर अपना माल लाए, चाहे इसके लिए उसे नुकसान ही क्यों न झेलना पड़े। फिर वो इससे भारत पर बेल्ट एंड रोड परियोजना का हिस्सा बनने का बनाव बनाना, क्योंकि भारत के व्यापारी ही सरकार से कहेंगे कि भारत इतना बड़ा मौका हाथ से क्यों जाने दे रहा है।
चीन के जुए का नाता भारत के चुनाव से
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत एशिया के देशों से मध्य-पूर्व को जोड़ना चाहते हैं। हालांकि कई जानकार कहते हैं कि इस बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से चीन, सुपर पॉवर बनने का अपना ख्वाब पूरा करना चाहता है।
चीन ने भारत से भी इसमें शामिल होने की गुजारिश की है हालांकि भारत इससे इंकार करता रहा है। इस योजना के तहत शुरू हुई चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) परियोजना में शामिल होने से भारत ये कहते हुए इंकार कर चुका है कि इसके पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से होकर गुजरने से उसकी संप्रभुता का उल्लंघन होता है।
भारत में अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं। सैबल दासगुप्ता कहते हैं कि इससे पहले मोदी सरकार किसी भी हाल में वन बेल्ट वन रोड परियोजना का समर्थन नहीं कर पाएगी। वो नहीं चाहेगी कि वो इस बात को स्वीकार करे, क्योंकि अगर आज एक सीमा पर बात होती है तो कल दूसरी सीमा पर भी बात आ सकती है। अगर इस अखंडता वाले सिद्धांत की कुर्बानी भारत दे देता है तो उसे चुनावों में मुंह की खानी पड़ेगी।
वो कहते हैं कि चीन बहुत बड़ा जुआ खेल रहा है और उसे उम्मीद है कि आने वाले वक्त में सरकार शायद इसे स्वीकृति दे दे। वो सीधे सरकार पर दबाव डालने की बजाय भारत के व्यापारियों को फायदा पहुंचाने वाले काम के जरिए उन पर दबाव डालने की कोशिश कर रहा है।
वन बेल्ट वन रोड
वहीं नेपाल से वरिष्ठ पत्रकार युबराज घिमिरे बताते हैं कि बीते साल इस बात पर सहमति बन गई थी कि नेपाल, चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना का हिस्सा बनेगा लेकिन इसके तहत कौन से प्रोजेक्ट किए जाएंगे, इस पर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है।
वो कहते हैं कि भारत ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि नेपाल, चीन और तिब्बत के साथ किस तरह से संबंध रखना चाहता है, ये पूरी तरह से नेपाल का फैसला है। लेकिन नेपाल जो करे उससे भारतीय संवेदनशीलता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को आघात नहीं पहुंचना चाहिए। वो कहते हैं कि बार-बार नेपाल ने कहा है कि वो उसके पड़ोसी देश चीन और भारत के हितों के विरुद्ध कोई काम नहीं करेगा। तिब्बत के साथ नेपाल के 16 जिलों की सीमाएं सटी हुई हैं और इस कारण तिब्बत से बिना जुड़े इन इलाकों का विकास करना संभव नहीं है।
भारत और नेपाल के बीच तनाव
युबराज घिमिरे बताते हैं कि चीन के स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत और नेपाल के बीच 1960 के दशक में चीन के सहयोग से कोदारी राजमार्ग बना था। 2015 में देश का नया संविधान बना और उस वक्त मधेशी मामलों को लेकर भारत ने नेपाल की आर्थिक नाकाबंदी लगा दी थी, इसके बाद से नेपाल और भारत के बीच तनाव बढ़ा। वो कहते हैं कि नेपाल को लगा कि केवल भारत पर निर्भर रहना उसे काफी मुश्किल स्थिति में डाल सकता है और इसके बाद नेपाल का चीन से संबंध बढ़ना लाजमी ही लगता है।
हालांकि वे मानते हैं कि रेलवे लाइन बनने के बाद चीन का सामान भारत आएगा, ऐसा जरूरी नहीं है। वो कहते हैं कि रेल लाइन केवल काठमांडू तक ही आना है। इस बीच भारत ने भी बिहार के रक्सौल से काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने की बात की है, जो 5 साल में बन जाएगा। द्विपक्षीय चर्चाओं में अधिकारी कई बार कहते हैं कि सीमा के आरपार होने वाली तस्करी पर काबू करना है लेकिन मुझे नहीं लगता है कि इससे तस्करी का खतरा बढ़ने की आशंका है। ये सेवा यात्रियों के लिए शुरू की जानी है।