कोरोना वायरस ने किस कदर देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई को तोड़ कर रख दिया है, इसका अंदाज़ा यहां बढ़ते मामलों से लगाया जा सकता है। कोरोना के 60 प्रतिशत से ज़्यादा मामले पांच शहरों में हैं जिनमें मुंबई और दिल्ली सबसे आगे हैं। दिल्ली और पश्चिमी मुंबई के डॉक्टरों ने बीबीसी से कहा कि कोविड-19 के इलाज के लिए आने वाले लोगों में तेज़ बढ़ोतरी हो रही है। डॉक्टरों को डर है कि क्रिटिकल केयर समेत हॉस्पिटल बेड की कमी हो सकती है।
दिल्ली का हाल
दिल्ली सरकार ज़ोर दे रही है कि ज़्यादातर कोरोना संक्रमित घर पर ही रहकर इलाज करवाएं। सरकार का कहना है कि जिन कोरोना मरीज़ों में कोई लक्षण नहीं है या मामूली लक्षण हैं, वो अपने-अपने घर पर ही ठीक हो सकते हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत नहीं है।
दिल्ली सरकार चाहती है कि 80 प्रतिशत कोरोना संक्रमितों का इलाज घर में हो। इसके लिए शुक्रवार के अख़बारों में होम आइसोलेशन की विस्तृत गाइडलाइन वाले विज्ञापन भी दिए गए। जिसपर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए। कयास लगाए गए कि दिल्ली के अस्पतालों में बेड की कमी पड़ रही है, इसलिए सरकार लोगों को अस्पतालों में लाना नहीं चाहती।
साथ ही विपक्ष ये भी आरोप लगा रहा है दिल्ली की केजरीवाल सरकार कोरोना से हुई मौतों के सही आंकड़े नहीं बता रही है। शुक्रवार को ट्वीटर पर #kejriwalliedpeopledied हैशटैग ट्रेंड करता रहा है।
गुरुवार को दिल्ली में कोरोना से 82 मौतों की ख़बर आई तो दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था पर फिर सवाल उठा। लेकिन दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने साफ किया कि ये मौतों एक दिन में नहीं हुई हैं, बल्कि इनमें से 13 पिछले 24 घंटे में हुईं, बाकि 69 बीते 34 घंटे में हुई थीं, जिनका डेटा आने में वक्त लग गया।
इससे पहले गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने शवों को लेकर आ रही कुछ मीडिया रिपोर्ट का संज्ञान लिया था। इन रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दिल्ली के लोक नायक अस्पताल के शवगृह में 108 शव हैं और वहां सभी 80 स्टोरेज रैक भर चुकी हैं और 28 शवों को एक के ऊपर एक ज़मीन पर रखा गया है। एक रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि 26 मई को निगम बोध घाट ने आठ शवों को लौटा दिया, क्योंकि ये फेसेलिटी और शवों को लेने की स्थिति में नहीं थी, क्योंकि वहां छह में से सिर्फ दो भट्टी ही काम कर रही हैं। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि पांच दिन पहले मर चुके व्यक्ति के शव का भी अबतक अंतिम संस्कार नहीं किया गया है
इस पर शुक्रवार को दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को जानकारी दी कि वो इस मामले में तुंरत कदम ले रहे हैं। इसके लिए शवदाहगृह के काम के घंटों को बढ़ा दिया गया है। वहीं एलएनजेपी अस्पताल से कहा गया है कि वो शवों को निगम बोध घाट के अलावा पंचकुइया और पंजाब बाग के शवदाहगृहों में भी भेजें।
दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया कि गुरुवार को 28 ऐसे शवों का दाह संस्कार किया गया और 25 का शनिवार को किया जाएगा। वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के ज़रिए सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जस्टिस संगीता ढिंगरा की बेंच ने सख्ती से कहा कि ये सब दोबारा नहीं होना चाहिए।
दिल्ली में कितने कोविड बेड, कितनी तैयारी
24 मई को दिल्ली सरकार ने 50 और उससे ज़्यादा बेड की क्षमता वाले निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स को 20 प्रतिशत बेड कोविड-19 के मरीज़ों के लिए आरक्षित रखने का निर्देश दिया था। दिल्ली में ऐसे निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स की संख्या 117 है।
दिल्ली डायलॉग कमिशन के वाइस चेयरमैन जैस्मीन शाह ने बीबीसी को बताया कि प्राइवेट अस्पतालों में तकरीबन 700 कोविड19 बेड हैं, जिनमें इस हफ्ते की शुरुआत तक 530 में मरीज़ भर्ती थे। वहीं सरकारी अस्पतालों में कुल बेड में से केवल आधे में कोविड19 मरीज़ भर्ती हैं। वहीं अगर सिर्फ दिल्ली के वेंटिलेटर वाले आईसीयू बेड की बात करें तो ताज़ा आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़,
- एम्स नई दिल्ली के सभी आईसीयू में कुल 42 बेड हैं। जिनमें से 31 भरे हुए हैं और सिर्फ 11 खाली हैं।
- राम मनोहर लोहिया अस्पताल के सभी आईसीयू में कुल 67 बेड हैं, जिनमें से 53 भरे हुए हैं और सिर्फ 14 खाली हैं।
- लेडी हार्डिंग अस्पताल में कुल 29 वेंटिलेटर वाले बेड हैं। जिनमें से 20 भरे हुए हैं और महज़ 9 खाली हैं।
- वहीं सफदरजंग अस्पताल में वेंटिलेटर के साथ वाले 67 आईसीयू बेड हैं। जिनमें से 42 भरे हुए हैं और करीब 20 बेड खाली हैं।
- वल्लभ भाई चेस्ट इंस्टिट्यूट में कुल 6 आईसीयू बेड हैं, जिनमें से एक भरा हुआ है और पांच खाली हैं।
आंकड़ों को देखकर समझा जा सकता है कि दिल्ली में भी सीमित आईसीयू बेड और वेंटिलेटर हैं। हालांकि दिल्ली सरकार लगातार कह रही है कि उसने हर स्थिति के लिए तैयारी की हुई है।
मुंबई का हाल
एक बेड पर दो-दो कोरोना मरीज़, जिन्हें बेड नहीं मिले वो ज़मीन पर ही लेट गए, दो मरीज़ों की नली एक ही ऑक्सिजन टैंक से जुड़ी दिखी। मुंबई के एक सरकारी अस्पताल का वीडियो वायरल हुआ तो वहां के इमरजेंसी वॉर्ड की ये बदहाल तस्वीरें सभी ने देखीं।
लेकिन इस अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि अस्पताल में भीड़ का होना लंबे वक्त से समस्या बनी हुई है, लेकिन कोरोना वायरस ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। इससे पहले भी मुंबई से हिला देने वाले तस्वीरें आई थीं, जब डेड बॉडी के पास ही कोरोना मरीज़ों का इलाज किया जा रहा था।
जिस वक्त हम सोशल डिस्टेंसिंग की बात कर रहे हैं, उस वक्त कोरोना मरीज़ों का ये हाल देखकर मुंबई की स्वास्थ्य व्यवस्था पर कई सवाल उठे। महाराष्ट्र सरकार भी इन हालातों से इनकार नहीं कर रही है।
सत्ताधारी शिवसेना के सांसद अरविंद सांवत ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि वो मानते हैं कि मुंबई की हालत गंभीर है। हालांकि उन्होंने कहा कि मुंबई की डेमोग्राफी इस समस्या की सबसे बड़ी वजह है। कम जगह में बड़ी आबादी, घनी बस्तियां और कॉमन टॉयलेट की वजह से मुंबई में आज ये हालात हैं।
हालांकि वो ये दावा भी करते हैं कि मुंबई इन स्थितियों से निपटने के लिए दूसरों से ज़्यादा कोशिश भी कर रही है। "भारत में और कोई दूसरा राज्य नहीं है, जहां 15 दिन में 1000 बेड का अस्पताल खुला। आप बांद्रा कुर्ला कॉम्पलेक्स में जाकर देख लो, बांद्रा में जाकर देख लो, गोरोगांव में देख लोग वहां 2000 बेड का अस्पताल खुला। एक स्टेडियम में 700 से 800 बेड लगा दिए गए। हमारा काम प्रयास करना है। लेकिन बात ये है कि दुश्मन अदृश्य है इसलिए लड़ाई मुश्किल है।"
मुंबई में कितने कोविड बेड, कितनी तैयारी
एक सरकारी रिपोर्ट के मताबिक़, मुंबई में 70 सरकारी अस्पताल हैं, जहां 20,700 बेड की क्षमता है और 1500 प्राइवेट फेसेलिटी हैं, जहां 20,000 बेड की क्षमता है। शहर में मौटे तौर पर 3,000 मरीज़ों के लिए एक बेड है, जबकि डब्ल्यूएचओ कहता है कि 550 लोगों पर एक बेड होना चाहिए।
बीबीसी मराठी सेवा के मयंक भागवत के मुताबिक़, फिलहाल प्राइवेट अस्पतालों के सभी आईसीयू बेड को भी सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया है और ये बेड सरकारी रेट पर लोगों को मुहैया कराए जा रहे हैं। 33 प्राइवेट अस्पतालों के 417 आईसीयू बेड आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग और मध्यम वर्ग के लिए रखे गए हैं।
इसके अलावा माइल्ड और बिना लक्षण वाले मरीज़ों के लिए कोविड केयर सेंटर में 30 हज़ार बेड तैयार किए जा रहे हैं। वहीं डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल और कोविड-19 सेंटर में 14000 बेड तैयार किए जा रहे हैं। ये दोनों ही 31 मई तक तैयार कर लेने की योजना है।
पीक आना अभी बाकी
लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञ बार-बार कह रहे हैं कि भारत में अभी पीक आना बाकी है। ऐसे में मुंबई-दिल्ली के डॉक्टरों की चिंता बढ़ी हुई है। दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल के क्रिटिकल केयर सेक्शन के डायरेक्टर अरुण दीवान ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "रोज़ाना हमारे पास आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। लोग भी बढ़ रहे हैं और गंभीर होते मरीज़ों की संख्या भी बढ़ रही है।"
अपने 25 साल के करियर में डॉ दीवान ने ऐसे हालात नहीं देखे। वो कहते हैं कि हर दिन एक संघर्ष की तरह है और उन्हें डर है कि सबसे बुरे हालात आना अभी बाकी है। उनका कहना है कि सबसे बड़ी चुनौती मैनपावर की होगी, क्योंकि इस मामले पर हम लिमिट पर पहुंच चुके हैं। हालांकि दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के पीआरओ दिनेश नारायण बीबीसी से कहते हैं कि सफदरजंग में ना तो बेड की कमी है और ना ही कोई और दिक़्क़त।
लेकिन दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में कोरोना वार्ड में काम कर चुके एक डॉक्टर ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि आरएमएल में भी जितनी मौतों हो रही हैं उससे कम ही रिपोर्ट की जा रही हैं और स्वास्थ्य कर्मी मुश्किल स्थितियों में काम कर रहे हैं।
भारत की चिंता
लगातार चिंता जताई जा रही है कि 1।3 अरब आबादी वाला एक देश, जिसके हेल्थकेयर सिस्टम पर पहले ही बहुत बोझ है, वो कोरोना के इस बढ़ते प्रकोप को कैसे संभाल पाएगा, क्योंकि इस हफ्ते मोटे तौर पर हर दिन 6 हज़ार मामले सामने आए हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने एक निजी चैनल से कहा है कि मामलों की बढ़ती संख्या से जनता को घबराने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अच्छी बात ये है डब्लिंग रेट कम हुआ है और रिकवरी रेट बढ़ा है।
आगे की तैयारियों के बारे में अश्विनी चैबे ने कहा, "राज्यों को कुछ चीज़ों के लिए स्वतंत्र फैसले लेने की इजाज़त दी है। हमने सभी राज्यों के सहयोग से तैयारी की हुई है।"
"सभी राज्यों में मिलाकर साढ़े तीन लाख से भी ज़्यादा आइसोलेशन बेड हैं। जिनमें से कुछ हज़ारों में वेंटिलेटर की भी सुविधा है, आईसीयू की सुविधा है। साथ ही रेल मंत्रालय के सहयोग से 30 हज़ार बोगी में लगभग साढ़े तीन लाख बेड तैयार हुए हैं आइसोलेशन के, इसमें आईसीयू इत्यादि सब प्रकार का है।"