चीन की एक वैज्ञानिक पर अपुष्ट आरोप लगते रहै हैं कि कोरोना वायरस उनकी ही लैब से लीक हुआ। अब वो इन आरोपों की जाँच के लिए तैयार हो गई हैं।
प्रोफ़ेसर शी ज़ेंग्ली का कहना है कि वो इन आरोपों की जाँच के लिए 'किसी को भी अपने यहाँ आने की इजाज़त' देने के लिए तैयार हैं।
प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली का आश्चर्यजनक बयान ऐसे समय में आया है जब विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम अगले महीने जाँच के लिए वुहान जाने की तैयारी कर रही है।
चीनी अधिकारियों ने बीबीसी की टीम का पीछा किया
चीन के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत युनान में स्थित सुदूर ज़िले टांग्वान तक पहुँचना वैसे भी आसान नहीं है, लेकिन जब बीबीसी की एक टीम ने हाल ही में वहाँ जाने की कोशिश की तो यह बिल्कुल असंभव था।
साधारण गाड़ियों में सादे कपड़े वाले पुलिस और अन्य अधिकारी बीबीसी की टीम का संकरे और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर मीलों तक पीछा करते रहे। वो हमारा लगातार पीछा करते रहे और हमें पीछे लौटने को मजबूर कर दिया।
हमारे रास्ते में कई बाधाएँ आईं, जिनमें 'टूटी-फूटी लॉरी' भी शामिल थी। स्थानीय लोगों ने बताया कि हमारे आने से कुछ मिनटों पहले उसे सड़क पर रखा गया था।
चेकपॉइंट्स पर हमें कुछ अज्ञात लोग मिले, जिन्होंने हमसे कहा कि उनका काम हमें दूर रखना है।
पहली नज़र में लगा कि ये सब हमें अपने गंतव्य पर पहुँचने से रोकने की कोशिशें हैं। हमें एक खाली और सुनसान पड़ी ताँबे की ख़दान में पहुंचना था, जहाँ साल 2012 में छह मज़दूर एक रहस्यमय बीमारी का शिकार हो गए थे। बाद में इस बीमारी से तीन मज़दूरों की मौत भी हो गई थी।
लेकिन उस समय मज़दूरों की जिस बीमारी और मौत की त्रासदी को भुला दिया गया, उसे अब कोरोना वायरस महामारी ने एक नया अर्थ दे दिया है।
उन तीन मज़दूरों की मौतें अब कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर एक बड़े बड़े वैज्ञानिक विवाद के केंद्र में हैं। अब ये सवाल भी उठ रहे हैं कि नॉवल कोरोना वायरस क्या सचमुच प्राकृतिक है या किसी लैब में बना है?
चीन ने बीबीसी की टीम को क्यों रोका?
ऐसे में चीनी अधिकारियों ने हमें जिस तरह उस खदान तक पहुँचने से रोकने की कोशिश की, उससे संकेत मिलता है कि वो इस कहानी को अपने हिसाब से दुनिया को सुनाना चाहते हैं।
चीन के युनान प्रांत में पहाड़ों से ढँके जंगल और गुफाएं पिछले एक दशक से ज़्यादा समये से वैज्ञानिक शोध के लिए आकर्षण का केंद्र रही हैं। इस शोध का नेतृत्व वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी की प्रोफ़ेसर शी ज़ेंग्ली करती रही हैं।
प्रोफेसर ज़ेंग्ली को साल 2003 में उस वक़्त अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली जब उन्होंने सार्स नाम की बीमारी का पता लगाया। वायरस के कारण फैली इस बीमारी ने 700 से ज़्यादा लोगों की जान ले ली थी। ये वायरस संभवत: युनान प्रांत की गुफाओं में रहने वाले चमगादड़ों की एक प्रजाति से निकला था।
सार्स बीमारी की खोज के बाद से ही प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली को 'चीन की बैटवुमन' कहा जाने लगा। वो एक प्रोजेक्ट की अगुआई कर रही हैं, जो ऐसी बीमारियों का पता लगाने और उनकी भविष्यवाणी से जुड़ा है।
तब से प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली की टीम चमगादड़ों का सैंपल लेकर वुहान के लैब में जाती रही है और चमगादड़ों से मिलने वाले वायरस का पता लगाती रही है।
मगर एक सच ये भी है कि कोरोना वायरस महामारी सबसे पहले वुहान में ही फैली थी। इसलिए ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि ये दोनों चीज़ें कहीं न कहीं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी से बीबीसी को फ़ोन आया।।।
प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली ने इन कयासों को सिरे से ख़ारिज़ कर दिया है। हालाँकि अब, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारी जनवरी में वुहान जाने वाले हैं, प्रोफेसर ज़ेंग्ली ने बीबीसी के कुछ सवालों का ईमेल पर जवाब दिया है।
प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली के मुताबिक़ उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन से दो बार बात की है। उन्होंने अपने जवाब में लिखा, "मैंने उन्हें (डब्ल्यूएचओ की टीम) को कहा है कि अगर वो यहाँ आना चाहते हैं तो उनका स्वागत है।"
बीबीसी ने प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली से पूछा कि क्या वो अपनी तरफ़ से लैब की जाँच के आधिकारिक न्योता लिए देंगी और वहाँ के डेटा शेयर करेंगी?
इस पर उन्होंने जवाब दिया, "मैं व्यक्तिगत रूप से खुले, पारदर्शी, भरोसेमंद, विश्वसनीय और उचित संवाद के आधार पर यात्रा के किसी भी रूप का स्वागत करूंगी लेकिन ये योजना मैंने तय नहीं की है।"
बाद में बीबीसी को वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के प्रेस कार्यालय से एक कॉल आया, जिसमें कहा गया कि प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली व्यक्तिगत क्षमता में अपनी बात रख रही थीं और उनके जवाबों पर वुहान इंस्टीट्यूट ने मुहर नहीं लगाई है।
वुहान इंस्टिट्यूट ने बीबीसी से इस लेख के छपने से पहले इसकी एक प्रति उन्हें भेजने का अनुरोध किया था, जिसे बीबीसी ने अस्वीकार कर दिया।
'कोरोना वायरस फैलने की लैब लीक थ्योरी'
कई वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 के लिए ज़िम्मेदार सार्स-Cov-2 वायरस चमगादड़ों से इंसानों तक प्राकृतिक रूप से पहुँचा है।
हालाँकि प्रोफेसल ज़ेंग्ली की पेशकश के बाद भी इस बात के आसार कम ही लग रहे हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना वायरस फैलने की 'लैब लीक थ्योरी' की पड़ताल करेगा।
डब्ल्यूएचओ की टीम के 'इंक्वॉयरी रेफ़रेंस'में ऐसी किसी पड़ताल का ज़िक्र नहीं है।
हाँ, टीम का फ़ोकस वुहान के उस बाज़ार पर ज़रूर रहेगा जहाँ जंगली जानवरों का व्यापार होता है और जहाँ से शुरुआत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले सामने आए थे।
वुहान जाने वाली डब्ल्यूएचओ की टीम में शामिल डॉक्टर डैसेक कहते हैं, "हम क्लस्टर मामलों और संपर्क में आए लोगों की जाँच करेंगे। हम देखेंगे कि बाज़ार में जानवर कहाँ से आए। अभी देखना होगा कि इस जाँच से हम कहाँ तक पहुँचते हैं।"
डॉक्टर डैसेक कोरोना वायरस के लैब से फैलने की थ्योरी को बोगस मानते हैं।
पहले भी चीन की लैब से लीक हो चुके हैं वायरस
टांग्वान में तीन मज़दूरों की मौत के बाद और चमगादड़ों से भरी खदान की ख़बरें आने के बाद ही ये आशंका जताई जा रही थी कि वो 'बैट (चमगादड़) कोरोना वायरस' के कारण मरे थे।
इसके बाद वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी के वैज्ञैनिकों ने वहाँ के चमगादड़ों की सैंपलिंग की और अगले तीन बरसों में वो कई बार वहाँ गए। लेकिन उन्होंने जो वायरस इकट्ठे किए, उससे कम बहुत कम जानकारियाँ हासिल हो पाईं।
प्रोफ़ेसर शी ज़ेंग्ली नॉवल कोरोना वायरस के लिए ज़िम्मेदार सार्स-Cov-2 वायरस का सबसे पहले सीक्वेंस बनाने वाले वैज्ञानिकों में से एक हैं। उन्होंने ये साल 2020 की शुरुआत यानी जनवरी में ये उस वक़्त किया था जब उनके शहर में वायरस तेज़ी से फैल रहा था।
इसके बाद उन्होंने वायरस की लंबी स्ट्रिंग की दूसरे वायरस से तुलना की और पाया कि उनके डेटा में इससे सबसे अधिक मिलता जुलता सार्स-Cov-2 वायरस है।
लैब से वायरस लीक होने के कई ऐसे मामले हैं जिनकी बाक़ायदा पुष्टि हो चुकी है।
मिसाल के तौर पर, पहल सार्स वायरस साल 2004 में चीन की राजधानी बीजिंग में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी से दो बार लीक हुआ था। इतना ही नहीं, इस पर संक्रमण फैलने के काफ़ी समय बाद ही काबू पाया जा सका था।
वायरस को जेनेटिक तौर पर मैनिप्युलेट करने (बदलने) का चलन भी नया नहीं है। ऐसा करके वैज्ञानिक वायरस को ज़्यादा ख़तरनाक और ज़्यादा संक्रामक बना सकते हैं जिससे उन्हें ख़तरे का बेहतर अंदाज़ा लग सके और वो बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी वैक्सीन बना सकें।
लैब में म्यूटेट किया गया नॉवल कोरोना वायरस?
जबसे सार्स-Cov-2 का सीक्वेंस बनाया गया है तब से इसे इंसानों को संक्रमित करने की क्षमता ने वैज्ञानिकों को हैरत में डाल रखा है।
अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के कई समूहों ने इस आशंका को गंभीरता से लिया कि हो सकता है कोरोना वायरस को भी लैब में म्यूटेट किया गया हो।
डॉक्टर डैनियल लूसी वॉशिंगटन डीसी के जॉर्जटाउन मेडिकल सेंटर में संक्रामक बीमारियों के प्रोफ़ेसर हैं। वो कई महामारियों के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने चीन में सार्स, अफ़्रीका में इबोला और ब्राज़ील में ज़ीका जैसे वायरस पर विस्तृत अध्ययन किया है।
डॉक्टर लूसी को यक़ीन है कि चीन ने पहले ही इंसानों और जानवरों के सैंपल लेकर बीमारी के लिए ज़िम्मेदार मूल वायरसों पर विस्तृत शोध कर लिया है।
उन्होंने कहा, "चीन के पास संसाधन हैं, क्षमता है और उनके ज़ाहिर इरादे भी हैं। इसलिए निश्चित तौर पर उन्होंने इंसानों और जानवरों के सैंपल का अध्ययन कर लिया है।"
डॉक्टर लूसी का कहना है कि कोरोना वायरस संक्रमण के स्रोत का पता लगाना न सिर्फ़ विस्तृत वैज्ञानिक समझ के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि ये बीमारी भविष्य में दोबारा न फैले, ये इसके लिए भी ज़रूरी है।
उन्होंने कहा, "हमें संक्रमण का स्रोत तब तक ढूँढना चाहिए जब तक ये मिल न जाए। मुझे लगता है कि इसे ढूँढा जा सकता है और शायद पहले ही ढूँढा जा चुका है। लेकिन सवाल ये है कि इस बारे में अब तक बताया क्यों नहीं गया?"
हालाँकि डॉक्टर लूसी को अब भी लगता है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है लेकिन वो बाकी आशंकाओं को ख़ारिज भी नहीं करना चाहते हैं।
वो कहते हैं, "आप सोचिए कि अगर किसी चीनी लैब में सार्स-Cov-2 से मिलते-जुलते वायरस पर अध्ययन चल रहा हो तो क्या वो हमें इस बारे में बताएंगे? लैब में होने वाली हर चीज़ प्रकाशित नहीं की जाती।"
अपने यहाँ वायरस के स्रोत से चीन करता रहा है इनकार
बीबीसी ने जब डॉक्टर लूसी की आशंकाओं को वुहान जाने वाली डब्ल्यूएचओ टीम के सदस्य डॉक्टर डैसेक के सामने रखा तो उनका कहना, "मैंने वुहान इंस्टिट्यूट के साथ एक दशक से ज़्यादा समय तक काम किया है। मैं वहाँ के लोगों को जानता हूँ। मैं उनकी प्रयोगशालाओं में अक्सर जाता रहता हूँ।"
उन्होंने कहा, "मैं अपने आँख-कान खुले रखकर और पूरी तरह चौकन्ना होकर काम कर रहा हूँ लेकिन मुझे ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है।"
क्या वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी से उनका पुराना सम्बन्ध और वहाँ के वैज्ञानिकों से उनकी दोस्ती इस जाँच को प्रभावित नहीं करेगी?
इस सवाल के जवाब में डॉक्टर डैसेक ने कहा, "हम जो भी रिपोर्ट प्रकाशित करेंगे वो पूरी दुनिया के सामने होगी और वुहान इंस्टिट्यूट से मेरा संबंध मुझे इस दुनिया के उन चुनिंदा वैज्ञानिकों में से एक बनाता है जिन्हें चीन में चमगादड़ों से फैलने वाले कोरोना वायरस के बारे में सबसे ज़्यादा जानकारी है।"
हो सकता है कि चीन ने नॉवल कोरोना वायरस के उत्पत्ति के बारे में अपने शोध से जुड़ा सीमित डेटा ही साझा किया हो। इतना ही नहीं, वायरस की उत्पत्ति के बारे में यह अपनी थ्योरी का प्रचार-प्रसार करने में जुटा है।
चीन यूरोप में हुए कुछ अपुष्ट अध्ययनों का हवाला देकर यह साबित करने की कोशिश करता रहा है कि सार्स-Cov-2 चीन से शुरू ही नहीं हुआ है। चीन की सरकारी मीडिया यह दावे भी करती रही है कि कोरोना वायरस काफ़ी पहले से अस्तित्व में रहा होगा।
वुहान इंस्टिट्यूट के उलट दावे करते शोध
हालाँकि इन सबने अटकलों को बढ़ावा ही दिया है। इनमें से कई अटकलें टांग्वान की ताँबे की ख़दान से भी जुड़ी हुई हैं। इंटरनेट पर उन पुराने अकादमिक शोधपत्रों को खोजा जा रहा है जो मज़दूरों की मौत के बारे में वुहान इंस्टिट्यूट के दावों से अलग हैं।
इन्हीं में से एक थीसिस कन्मिंग हॉस्पिटल यूनिवर्सिटी के एक छात्र की थीसिस भी है।
प्रोफ़ेसर शी ज़ेंग्ली ने बीबीसी से कहा, "मैंने वो थीसिस डाउनलोड करके पढ़ी है। इसके दावों से कुछ साबित नहीं होता। थीसिस का निष्कर्ष न तो किसी प्रमाण पर आधारित है और न ही किसी तर्क पर। हाँ, कॉन्स्पिरेसी थ्योरी को बढ़ावा देने वालों ने मेरे खिलाफ़ इसका इस्तेमाल ज़रूर किया है। अगर आप मेरी जगह होते तो क्या करते?"
बीबीसी ने प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली से ये भी पूछा कि वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी की वेबसाइट पर उपलब्ध वायरस डेटाबेस अचानक हटा क्यों लिया गया?
इसके जवाब में उन्होंने कहा, "हमारे व्यक्तिगत और आधिकारिक ईमेल्स पर साइबर हमला हुआ था इसलिए इस डेटा को सुरक्षा के नज़रिए से ऑफ़लाइन कर लिया गया। हमने ये डेटाबेस अंग्रेज़ी पत्रिकाओं में प्रकाशित किया है। ये पूरी तरह पारदर्शी है। हमारे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है।"
कई सवालों के जवाब मिलने अभी बाकी हैं
हालाँकि युनान प्रांत में न सिर्फ़ वैज्ञानिक मुश्किल सवाल पूछेंगे बल्कि पत्रकारों के पास भी पूछने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रश्न होंगे।
चीन के वैज्ञानिक साल 2013 से ही युनान में मज़दूरों की मौत के बाद चमगादड़ों से फैलने वाले कोरोना वायरस पर रिसर्च कर रहे हैं लेकिन लेकिन वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी से प्रकाशित होने वाली पत्रिका के मुताबिक़ वैज्ञानिकों ने इस जानकारी से कुछ भी अहम हासिल नहीं किया, सिवाय इसका सीक्वेंस और डेटाबेस तैयार करने के।
हालाँकि प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली और डॉक्टर डैसेक इससे पूरी तरह इनकार करते हैं कि वैज्ञानिकों ने इस बारे में पर्याप्त काम नहीं किया।
डॉक्टर डैसेक ने कहां, "यह कहना बिल्कुल उचित नहीं होगा कि हम असफल रहे।"
प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली और डॉक्टर डैसेक दोनों इस बात पर अड़े नज़र आए कि मौजूदा वक़्त में वायरस के स्रोत का पता लगाने से ज़्यादा ज़रूरी इसे रोकने के तरीके ढूँढना है।
प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली ने बीबीसी को भेजे ईमेल में लिखा, "हम भविष्य को ध्यान में रिसर्च कर रहे हैं और ग़ैर-वैज्ञानिक पृष्ठभूमि के लोगों के लिए यह समझना मुश्किल है।"
सवालों के लिए तैयार नज़र नहीं आता चीन
विश्व स्वास्य संगठन एक पारदर्शी जाँच का वादा कर रहा है लेकिन चीन सरकार सवालों का सामना करने के लिए इच्छुक नज़र नहीं आती। कम से कम पत्रकारों के सवालों के लिए तो बिल्कुल नहीं।
टांग्वान से निकलने के बाद बीबीसी की टीम ने उस गुफा के उत्तर में जाने की कोशिश की जहाँ प्रोफ़ेसर ज़ेंग्ली ने एक दशक पहले सार्स से जुड़ा ऐतिहासिक शोध किया था। लेकिन अब भी कई अज्ञात कारें हमारा पीछा कर रही थीं। हम फिर एक जैसी जगह पहुँचे जहाँ रास्ता बंद था और हमें बताया गया कि हम वहाँ से आगे नहीं जा सकते।
कुछ घंटों बाद हमें पता चला कि स्थानीय ट्रैफ़िक को एक धूल भरे रास्ते की ओर डायवर्ट कर दिया गया है। जब हमने भी उसी रास्ते पर जाने की कोशिश की तो हमें फिर बीच सड़क पर टूटी हुई कार मिली। हम वहाँ करीब एक घंटे तक फँसे रहे और आख़िरकार हमें एयरपोर्ट लौटने को मजबूर कर दिया गया।