#UnseenKashmir: कश्मीर की कहानी, सीआरपीएफ़ की ज़बानी

गुरुवार, 1 जून 2017 (10:28 IST)
संजय कुमार (डीआईजी, सीआरपीएफ़)
सुरक्षा बलों के भी मानवाधिकार हैं और अब वक़्त आ गया है कि देखा जाए कि उनका कितना उल्लंघन हो रहा है। ये इसलिए क्योंकि कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों की चुनौतियों के बारे में सोचना होगा।
 
यहां कम जगह में ज़्यादा लोगों को रहना पड़ता है। आम आदमी के आठ घंटों के मुकाबले हमारे जवान 12 से 16 घंटे काम करते हैं। हमेशा इमर्जेंसी रहती है जिसमें मूलभूत सुविधाओं को भी भूलना पड़ता है।
 
ये भी अमानवीय है
ड्यूटी के व़क्त उन पर पत्थर चलाए जाते हैं। यह अमानवीय है। उन पर हमला करते हैं, उन्हें उकसाते हैं। मजबूरन उन्हें कई बार हथियार उठाना पड़ता है। इस तरह उकसाना भी अमानवीय है। अभी तक ऐसे कोई सबूत नहीं हैं कि हम मानवाधिकार उल्लंघन कर रहे हैं।
बल्कि इसके उलट एक वीडियो देखें जो टीवी और सोशल मीडिया में चल रहा है। जिसमें सीआरपीएफ़ के छह लोग चुनावी ड्यूटी के लिए जा रहे हैं, उन पर पत्थरबाज़ी की गई है, हमला किया गया है। दुनिया का कोई और सुरक्षा बल होता तो उस तरह की बदतमीज़ी बर्दाश्त नहीं करता जैसे सीआरपीएफ़ के उन जवानों ने की। ये इसी इलाक़े में होता है। फिर भी सुरक्षा बलों को अमानवीय बताया जाता है।
 
हम ये भी मानते हैं कि कश्मीरी लोग हमारे ख़िलाफ़ नहीं हैं। बल्कि हम उनके लिए उनके साथ हैं। शांतिपूर्वक प्रदर्शन तो एक लोकतांत्रिक अधिकार है, और पत्थरबाज़ों की तादाद बहुत कम है। पत्थरबाज़ आम कश्मीरी नहीं है। इन लोगों के अपने निजी मतलब हैं जो ये रास्ता अपनाते हैं। इनके पीछे पाकिस्तान का हाथ भी हो सकता है और ये बहुत व्यवस्थित तरीके से काम करते हैं।
इन मुश्किल परिस्थितियों के बीच हम परिवार को साथ भी नहीं रख पाते। उनके पास रहने से भी तनाव कम होता, परिवार के बिना लगातार अलग रहना भी एक समस्या है। लेकिन बच्चों और परिवार की अपनी ज़रूरतें होती हैं। उनको स्कूल चाहिए होता है। बिना रोक टोक के घूमने-फिरने की आज़ादी की ख़्वाहिश होती है।
 
यहां रहने वाले बच्चों को बहुत मुश्किल होती है। चार-चार महीने स्कूल बंद रहता है। दो-तीन महीने बर्फ़ की वजह से छुट्टियां हो जाती हैं। इसलिए हमें मजबूरन अपने परिवारों को शांति वाले इलाक़ों में रखना पड़ता है। जहां टकराव वाले हालात नहीं हैं और बच्चे स्कूल जा सकते हैं। अस्पताल और बाज़ार जा सकते हैं। यहां हमारे बल का साथ तो है, पर हम अकेले ही हैं।
 
(बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य और माजिद जहांगीर से बातचीत पर आधारित)

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