डिजिटल इंडिया को तूफान, शार्क और जहाजों से है खतरा

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016 (12:12 IST)
- भरत शर्मा 
शायद आपने भी गौर किया होगा कि दो-तीन दिन से इंटरनेट धोखा दे रहा है। या तो कनेक्शन नहीं मिलता, या फिर उसकी रफ्तार बेहद धीमी है। नोटबंदी के इस दौर में डिजिटल लेन-देन की जरूरत है और लंबी कतारों से बचने के लिए इंटरनेट बड़ा सहारा साबित हो सकता है। ऐसे में चेन्नई के वरदा तूफान ने देश के कई हिस्सों में ये सहारा छीन लिया है।
एयरटेल और वोडाफोन जैसी मोबाइल नेटवर्क कंपनियों ने मैसेज के जरिए अपने ग्राहकों को बताया कि तूफान ने अंडरसी (समुद्र में) केबल को नुकसान पहुंचाया है, जिसके चलते कनेक्शन में दिक्कतें पेश आ सकती हैं। सवाल उठना लाजमी है कि इस तूफान और हमारे इंटरनेट का क्या लेना-देना? दरअसल, इंटरनेट की दुनिया समंदर ने नीचे बिछी केबल से चलती है और अगर ये केबल प्रभावित होती हैं, तो इंटरनेट कनेक्शन में परेशानी आनी तय है।
 
टेलीकम्युनिकेशन मार्केट रिसर्च फर्म टेलीज्यॉग्रफी के मुताबिक दुनिया भर में समंदर के नीचे फिलहाल 321 केबल सिस्टम काम कर रहे हैं। इनमें कुछ निर्माणाधीन हैं और इनकी संख्या साल दर साल बढ़ रही है। आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि साल 2006 में जहां सबमरीन केबल के हिस्से सिर्फ एक फीसदी ट्रैफिक था, वहीं अब 99 फीसदी अंतरराष्ट्रीय डाटा इन्हीं तारों से दौड़ता है।
 
इन केबल का इतिहास पुराना है। 1850 के दशक में बिछाई गई पहली सबमरीन कम्युनिकेशन केबल टेलीग्राफिक ट्रैफिक के लिए इस्तेमाल होती थी जबकि आधुनिक केबल, डिजिटल डाटा के लिए ऑप्टिकल फाइबर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती है। इनमें टेलीफोन, इंटरनेट और प्राइवेट डाटा ट्रैफिक शामिल है।
 
आधुनिक केबल की बात करें, तो इनकी मोटाई करीब 25 मिलीमीटर और वज़न 1.4 किलोग्राम प्रति मीटर होता है। किनारे पर छिछले पानी के लिए ज्यादा मोटाई वाली केबल इस्तेमाल होती है। अंटार्कटिका को छोड़कर सारे महाद्वीप इन केबल से जुड़े हैं।
 
लंबाई की बात करें, तो ये लाखों किलोमीटर में है और इनकी गहराई कई मीटर है। दुनिया कम्युनिकेशन, खास तौर से इंटरनेट के मामले में इन केबल पर निर्भर करती है और इन तारों को नुकसान पहुंचने के कई कारण हो सकते हैं।
जापान ने पेश की थी मिसाल : चेन्नई के तूफान जैसे कुदरती हादसे तो अपनी जगह हैं, लेकिन अतीत में शार्क मछलियों से लेकर समुद्र में निर्माण संबंधी उपकरण और जहाजों के लंगर भी इन तारों के लिए खतरा पैदा कर चुके हैं।
 
इन खतरों के बावजूद सबमरीन केबल, सैटेलाइट इस्तेमाल करने की तुलना में कहीं ज्यादा सस्ती हैं। ये सही है कि सैटेलाइट के जरिए दूर-दराज के इलाकों तक पहुंचा जा सकता है, लेकिन दुनिया भर के देश अब नए फाइबर-ऑप्टिक केबल बिछाने में निवेश कर रहे हैं।

मौजूदा केबल नेटवर्क को मज़बूत बनाने के लिए बैकअप के लिए केबल भी बिछाई जा रही हैं। साल 2011 में जापान में आई सुनामी ने केबल तारों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया था, लेकिन मज़बूत बैकअप के बूते वो ऑनलाइन रहने में कामयाब रहा।
 
चेन्नई और मुंबई बेहद अहम : अब बात करें भारत की। सबमरीन केबल नेटवर्क के मुताबिक देश में 10 सबमरीन केबल लैंडिंग स्टेशन हैं, जिनमें से चार मुंबई, तीन चेन्नई, एक कोच्चि, एक तुतीकोरिन और एक दिघा में है।
 
इनमें अगर भारत के दो प्रमुख अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट गेटवे की बात करें, तो इस लिहाज से मुंबई और चेन्नई काफी अहम हैं। और चेन्नई के तूफान ने समंदर में ऑप्टिक फाइबर को नुकसान पहुंचाकर साउदर्न इंडियन गेटवे को प्रभावित किया है।
 
कई अहम तारों से जुड़ी चेन्नई : सबमरीन केबल मैप के अनुसार अलग जगहों से अलग अलग फासले का केबल नेटवर्क जुड़ा है। चेन्नई बे ऑफ बंगाल गेटवे (8,100 किलोमीटर), सीमीवी-4 (20 हजार किलोमीटर), टाटा टीजीएन-टाटा इंडिकॉम (3175 किलोमीटर) और आई2आई केबल नेटवर्क (3200 किलोमीटर) जैसे केबल नेटवर्क से जुड़ा है। ये नेटवर्क उसे यूरोप और दक्षिण एशिया से जोड़ते हैं।
 
इसके अलावा मुंबई को जोड़ने वाले अहम केबल नेटवर्क का नाम है यूरोपा इंडिया गेटवे, जिसकी लंबाई करीब 15 हजार किलोमीटर है।

मोबाइल नेटवर्क कंपनियों के मुताबिक उनके इंजीनियर केबल में आई खामियों को दूर करने की कोशिश में जुटे हैं और जल्द ही इस समस्या को दूर कर दिया जाएगा। लेकिन जब तक वरदा की चपेट में आई केबल ठीक नहीं होतीं, आपका इंटरनेट हौले-हौले ही चलेगा।

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