चीन की आबादी में कमी का दुनिया पर क्या असर होगा?

BBC Hindi

शनिवार, 21 जनवरी 2023 (07:58 IST)
ज़ारिया गोर्वेट, बीबीसी फ़्यूचर
एक जुलाई 1982 की आधी रात को चीन ने एक बहुत बड़ा अभियान शुरू किया। मक़सद था: ये पता लगाना कि उस ख़ास लम्हे पर चीन की आबादी कितनी थी।
 
साल 1964 के बाद से चीन में किसी ने ये जानने की कोशिश ही नहीं की थी कि देश की आबादी कितनी थी। तो, कोई भी बस ये अटकल ही लगा सकता था कि चीन अपने इस अभियान से किस संख्या पर पहुंचेगा।
 
चीन अपने नागरिकों की गिनती के लिए कई बरस से तैयारियां कर रहा था। इसके लिए 29 कंप्यूटर ख़रीदे गए थे। इनमें से कम से कम 21 कंप्यूटर अमरीका से ख़ास रियायत के तहत हासिल किए गए थे। और जनगणना के लिए चीन ने पचास लाख लोगों को ट्रेनिंग दी थी।
 
आने वाले कई महीनों तक इन लोगों ने पूरी मेहनत से देश के सभी परिवारों के हर सदस्य की गिनती की थी। उसी साल अक्टूबर महीने में इस अभियान के नतीजों का एलान किया गया था: न्यूयॉर्क टाइम्स ने हेडलाइन लगाई, 'चीन की आबादी, 1008,175,288: दुनिया की एक चौथाई'।
 
पहली बार आबादी में नकारात्मक वृद्धि
दशकों से लगातार हो रही जनसंख्या वृद्धि के चलते चीन की आबादी एक बड़ी सीमा रेखा यानी एक अरब लोगों के भी पार चली गई थी। उस वक़्त चीन में हर दो सेकेंड में एक बच्चा पैदा हो रहा था।
 
चीन ने एक दंपत्ति के सिर्फ़ एक बच्चा पैदा करने की नीति 1980 में लागू की थी। इसका साफ़ मक़सद, आबादी की विकास दर सिफर पर लाना था। लेकिन, भले ही चीन की ये नीति, 2016 यानी 36 साल तक चलती रही थी। मगर, ये तो अब जाकर हुआ है कि चीन, आबादी की 'नकारात्मक वृद्धि' के दौर में दाख़िल हुआ है।
 
60 साल में पहली बार है जब चीन की आबादी घटने लगी है। चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उनके मुताबिक़, 2022 में चीन की आबादी 1।4118 अरब थी, जो 2021 की तुलना में 8,50,000 कम थी।
 
इससे पता चलता है कि चीन की जन्म दर में पिछले छह साल से जो गिरावट लगातार हो रही है, वो अब रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है। अब चीन में प्रति एक हज़ार लोगों के बीच बच्चों की जन्म दर महज़ 6।77 रह गई है।
 
चीन की जन्म दर में इस बदलाव को कुछ लोग ख़तरे की घंटी मान रहे हैं, तो कुछ लोग इसे उम्मीद भरी ख़बर के तौर पर ले रहे हैं। कई लोग इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि चीन की आबादी घटने का दुनिया की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा।
 
उन्हें ये उम्मीद है कि लगातार समृद्धि शायद अब आबादी बढ़ने पर उस तरह निर्भर नहीं रहेगी, जैसा ऐतिहासिक रूप से माना जाता रहा है।
 
कल्याणकारी संस्था पॉपुलेशन मैटर्स ने सुझाव दिया है कि चीन की आबादी में आ रही इस स्थिरता का जश्न मनाया जाना चाहिए। क्योंकि, इससे वहां के नागरिकों का भला होगा और इससे पर्यावरण को भी फ़ायदा होने की उम्मीद है।
 
लेकिन, दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश में ऐसा उल्टा बदलाव, भविष्य के लिए कई अनिश्चितताएं और पेचीदगियां पैदा करने वाला है।
 
क्या चीन की आबादी में गिरावट का ये नया दौर वाक़ई चौंकाने वाला है? और इसका हमारी धरती पर क्या असर पड़ेगा? बीबीसी फ्यूचर ने चीन की आबादी में गिरावट से जुड़े पांच बड़े सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है।
 
चीन में एक बच्चे की नीति लागू होने के कुछ वर्षों बाद ही, 1991 में वहां की जन्म दर, रिप्लेसमेंट की दर से नीचे जा चुकी थी। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आबादी का वही स्तर बनाए रखने के लिए जितने बच्चे पैदा होने चाहिए, चीन की हर महिला उससे कहीं कम बच्चे पैदा कर रही थी।
 
उसके बाद के वर्षों में चीन की आबादी में लगातार बढ़ोत्तरी की वजह ये बिल्कुल नहीं थी कि उसकी एक बच्चे वाली विवादित नीति नाकाम हो गई थी। बल्कि, इसका कारण, आबादी पर क़ाबू पाने की कोशिश का उल्टा असर था जिसे 'आबादी की गतिशीलता' कहा जाता है।
 
इससे होता ये है कि भले ही किसी देश की महिलाएं औसतन 2।1 से कम बच्चे पैदा करें, फिर भी वहां की मौत की दर में स्थिरता और अप्रवास न होने के चलते, आबादी कई दशकों तक बढ़ती रहती है।
 
असल में ये बच्चे पैदा होने और मौत के समय के फ़ासले के कारण होता है। अभी हाल के वर्षों तक चीन की आबादी तुलनात्मक रूप से युवा थी। 2010 में उसके नागरिकों की औसत आयु 35 थी। जबकि जर्मनी की औसत आयु 44।3 थी (जो अब 38।4 वर्ष है)।
 
इससे साथ साथ लोग लंबी उम्र तक जी रहे थे। 2021 में चीन ने नागरिकों की औसत आयु के मामले में अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया था। मतलब ये है कि चीन में प्रति औरत पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में भारी कमी भले आ गई। फिर भी, जितने लोगों की मौत हो रही थी, उनकी तुलना में ज़्यादा बच्चे पैदा हो रहे थे।
 
हालांकि, अब ये हालात बदल गए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि शायद प्रजनन दर में गिरावट और कोविड-19 महामारी के चलते मौतों की संख्या में इज़ाफ़े के कारण ही चीन की कुल आबादी में कमी आई है। हालांकि, इसकी आशंका तो काफ़ी समय से जताई जा रही थी।
 
2। क्या चीन की आबादी में गिरावट का भविष्य में दुनिया की कुल आबादी पर भी असर पड़ेगा?
भविष्य में दुनिया की आबादी से जुड़े आकलन पर संयुक्त राष्ट्र की 2022 की रिपोर्ट में ही कहा गया कि 2023 में चीन की आबादी में गिरावट आएगी। यानी चीन ने हालिया जनगणना के बाद जो आंकड़े बताए हैं, उनकी उम्मीद पहले से ही लगाई जा रही थी। हालांकि, ये बदलाव अंदाज़े से थोड़ा पहले ही आ गया है।
 
दुनिया की आबादी बढ़ने को लेकर किए गए कई आकलनों में चीन की आबादी के इस मंज़िल पर पहुंचने को भी शामिल किया जा रहा था। 2023 में चीन की आबादी घटने की उम्मीदों और अन्य देशों को लेकर अपने पूर्वानुमानों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि दुनिया में इंसानों की आबादी अभी लगातार बढ़ती रहेगी और 2030 तक ये 8।5 अरब हो जाएगी।
 
वहीं, 2086 तक दुनिया की कुल जनसंख्या 10।4 अरब हो जाएगी। ये एक मध्यम या औसत संभावना है, जिसमें ये मानकर चला जा रहा है कि ज़्यादा प्रजनन दर वाले देशों की जन्म दर में कमी आएगी, जबकि कम प्रजनन दर वाले देशों की जन्म दर में मामूली सी बढ़ोत्तरी होगी।
 
पॉपुलेशन मैटर्स के अभियानों और संचार संपर्क के प्रमुख एलिस्टेयर करी कहते हैं कि, 'चीन में भले ही आबादी घट रही हो, लेकिन बाकी दुनिया में ऐसा नहीं हो रहा है और अगले 63 साल तक होगा भी नहीं।'
 
दुनिया की आबादी में ज़्यादातर बढ़ोत्तरी अफ्रीका के सहारा क्षेत्र के देशों में होगी। इस इलाक़े के बारे में पूर्वानुमान लगाया गया है कि अब से 2050 तक दुनिया की जितनी आबादी बढ़ेगी, उसमें से आधे से ज़्यादा हिस्सा सहारा क्षेत्र के देशों का ही होगा।
 
उस वक़्त तक सहारा इलाक़े की आबादी दो गुना होने का अंदाज़ा लगाया जा रहा है। तब नाइजीरिया, आबादी के लिहाज़ से दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश बन जाएगा।
 
शुआंग चेन, लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनमिक्स के सोशल पॉलिसी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। वो कहती हैं कि कि चीन की आबादी की संख्या पर ही ध्यान केंद्रित करने से असल बात नज़रों से ओझल हो जाएगी। हालांकि, वो मानती हैं कि इस नज़रिए से चीन की आबादी में गिरावट शायद जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से फ़ायदेमंद भी हो सकती है।
 
2022 में पर्यावरण में दुनिया के कुल कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में चीन का योगदान 27 प्रतिशत था। और इस समय, दुनिया के आधे से ज़्यादा कोयले से चलने वाले नए बिजलीघर अकेले चीन बना रहा है।
 
शुआग चेन कहती हैं कि, 'सामाजिक रूप से जिस बात को लेकर सबसे ज़्यादा चिंता जताई जा रही है, वो सामाजिक बनावट की है। चूंकि चीज़ें बड़ी तेज़ी से बदल रही हैं।।। तो शायद समाजों के पास ख़ुद को इस बदलाव के मुताबिक़ ढालने के लिए वक़्त नहीं है।'
 
3। आबादी के मामले में कौन सा देश चीन की जगह लेने की ओर बढ़ रहा है?
संयुक्त राष्ट्र की 2022 की रिपोर्ट में 2023 के जो पूर्वानुमान लगाए गए हैं, उनके मुताबिक़ इसी साल भारत, अपने पड़ोसी देश को पीछे छोड़कर दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा।
 
जनगणनता के नतीजों को देखते हुए कई जानकार तो ये भी कह रहे हैं कि भारत, आबादी के मामले में शायद चीन को पीछे छोड़ चुका है।
 
अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि भारत की आबादी अभी लगातार बढ़ती रहेगी। 2022 में 1।417 अरब से बढ़कर 2030 में भारत की आबादी, 1।515 अरब पहुंच जाएगी।
 
मोटे तौर पर इसके दो बड़े कारण हैं: भारत में प्रजनन दर ऊंचे स्तर पर बनी हुई है। जबकि इलाज की सुविधाएं बेहतर होने से मृत्यु दर में गिरावट आई है।
 
इसके अलावा आबादी की बनावट भी एक पहलू है। भारत की आबादी इस वक़्त चीन के औसत से एक दशक युवा है। तो, कुल मिलाकर चीन की तुलना में इस समय भारत में बच्चे पैदा करने वालों की तादाद भी अधिक है।
 
4। दूसरे देशों की तुलना में चीन की प्रजनन दर कैसी है?
चीन की प्रजनन दर 1990 के दशक से ही लगातार कम होती आ रही थी, और 2020 में ये 1।28 के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी।
 
अगर आप तुलना करना चाहें तो उसी साल भारत में एक महिला औसतन 2।05 बच्चों को जन्म दे रही थी, तो अमेरिका में ये दर 1।64 थी।
 
यहां तक कि अपनी कम जन्म दर और बूढ़ी होती आबादी के लिए बदनाम जापान की प्रजनन दर भी उस साल 1।34 थी।
 
चीन की आबादी की बच्चे पैदा करने की क्षमता में तेज़ी से आई इस गिरावट के कई कारण माने जाते हैं।
 
पहला तो ये कि चीन में औरतों और मर्दों की संख्या में असंतुलन है। एक बच्चे की नीति के चलते चीन में लड़कों और लड़कियों के अनुपात में काफ़ी अंतर आ गया।
 
लोग पारंपरिक रूप से लड़के पैदा करने को तरज़ीह देते थे। बहुत सी बच्चियों का या तो गर्भपात कर दिया गया, या छोड़ दिया गया। यहां तक कि कइयों को मार डाला।
 
चीन की आबादी में उम्र के कई दौर वालों के बीच आज हर दस महिला पर 11 पुरुष हैं। इससे पता चलता है कि हर 11 में से एक मर्द को अपनी ही उम्र का जीवनसाथी तलाशने के लिए काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ेगी।
 
चीन में रहन सहन के ख़र्च में इज़ाफ़े और ज़्यादा उम्र में शादी करने के फ़ैसले को भी उसकी आबादी में गिरावट की वजह माना जाता है।
 
हालांकि, चीन के मूल्यों में भी बदलाव आ रहा है। एक के बाद एक कई सर्वे से ज़ाहिर हुआ है कि चीन कि महिलाएं अब एक या दो बच्चों के परिवार को ही आदर्श मानती हैं। बल्कि कई तो एक बच्चा भी नहीं पैदा करना चाहतीं।
 
जबकि चीन ने 2015 में ही एक दंपति के दो बच्चों की नीति लागू कर दी थी। कोविड-19 महमारी के दौरान ये मसले और भी पेचीदा हो गए। लॉकडाउन और दूसरी पाबंदियों से नाराज़ लोगों ने सोशल मीडिया पर #wearethelastgeneration हैशटैग ट्रेंड के ज़रिए अपने जज़्बात बयां किए।
 
5। क्या चीन की आबादी अभी घटती रहेगी?
पिछले 200 या इससे भी ज़्यादा वर्षों से बहुत से औद्योगिक देश, 'आबादी के बदलाव' के दौर से गुज़रे हैं। पहले उनकी आबादी तेज़ी से बढ़ी और फिर आख़िर में ऊंची जन्म और मौत की तेज़ रफ़्तार तब्दील होकर कम जन्म और मृत्यु दर वाली हो गई। चीन को उस 'बदलाव के बाद वाला समाज' माना जाता है, जो पहले ही उस चक्र को पूरा कर चुका है।
 
हालांकि, अभी ये बात साफ़ नहीं है कि आगे क्या होगा। चीन की प्रजनन दर में लगातार गिरावट आने का अंदाज़ा लगाया जा रहा है।
 
ख़ास तौर से तब और, जब आबादी की औसत उम्र बढ़ रही है और अब बच्चे पैदा करने की उम्र वाली महिलाओं की संख्या भी कम हो रही है। हालांकि, दो ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब किसी को भी नहीं पता।
 
पहला तो अप्रवास है। अभी चीन की आबादी के बीच अप्रवास की दर बेहद कम है। लेकिन एलिस्टेयर करी कहते हैं कि इसमें बदलाव आ सकता है। क्योंकि चीन अपनी अर्थव्यवस्था के विकास पर काफ़ी ज़ोर दे रहा है।
 
फिर चीन की सरकार जिस तरह अपने नागरिकों को ज़्यादा बच्चे पैदा करने के लिए हौसला दे रही है, उसका भी कुछ असर देखने को मिल सकता है।
 
भले ही इस वक़्त आबादी बढ़ाने के उपायों का कोई ख़ास असर नहीं दिख रहा हो। लेकिन, कुछ जानकार इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अब चीन आबादी बढ़ाने के लिए दबाव बनाने वाले क़दम उठा सकता है।
 
शुआंग चेन कहती हैं, "नीतिगत क़दमों से प्रजनन दर में गिरावट रोककर इसे बढ़ाने की कोशिश बहुत चुनौती भरी है। हाल के वर्षों में चीन ने आबादी बढ़ाने के लिए पहले ही कई क़दमों का एलान किया है। इनमें एक बच्चे की नीति से निजात पाना और अलग अलग स्तरों पर किसी तरह की सब्सिडी देना शामिल है।"
 
हालांकि वो कहती हैं कि अभी तक चीन की ये नीतियां कुछ ख़ास असर डालती नहीं दिख रही हैं। प्रजनन दर में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। इसीलिए मुझे लगता है कि चीन की आबादी में कमी का सिलसिला अभी जारी रहेगा।
 

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