वो एक सीधी-सादी तस्वीर थी, जिसने ज़ेंग शियाओचिंग की पतन की पटकथा लिख दी। ज़ेंग अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक पावर के कर्मचारी थे।
अमेरिका के न्याय विभाग की ओर से लगाए गए आरोप के मुताबिक़, अमेरिकी नागरिक ज़ेंग शियाओचिंग ने अपनी कंपनी से चुराई गई गोपनीय फ़ाइलों को डूबते सूरज की एक डिजिटल तस्वीर में बाइनेरी कोड के तौर पर छुपा रखा था। इसके बाद ज़ेंग शियाओचिंग ने ये तस्वीर ख़ुद को मेल की थी।
ज़ेंग ने जिस तकनीक से गोपनीय जानकारी चुराई थी, उसे स्टेगानोग्राफ़ी कहा जाता है। इसमें किसी डेटा फ़ाइल को किसी दूसरी डेटा फ़ाइल में कोड के तौर पर छुपाया जाता है। ज़ेंग ने जनरल इलेक्ट्रिक से संवेदनशील जानकारियों वाली फ़ाइलें चुराने के लिए कई बार इस तकनीक का इस्तेमाल किया था।
जनरल इलेक्ट्रिक एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है, जिसे स्वास्थ्य, ऊर्जा और अंतरिक्ष के क्षेत्रों में बड़ी उपलब्धियों के लिए जाना जाता है। ये कंपनी फ़्रिज से लेकर हवाई जहाज़ के इंजन तक, सब कुछ बनाती है।
ज़ेंग ने जो जानकारी कंपनी से चुराई, वो गैस और भाप से चलने वाली टर्बाइन बनाने की डिज़ाइन से जुड़ी हुई थी। इसमें टर्बाइन की ब्लेड और उनकी सील से जुड़ी सूचनाएं भी शामिल थीं। करोड़ों डॉलर के तकनीकी राज़, ज़ेंग ने चीन में अपने जुर्म के साझीदार को भेजी थीं। अमरीकी कंपनी से चुराए गए इन तकनीकी राज़ों से चीन की सरकार, वहां के विश्वविद्यालयों और चीनी कंपनियों को फ़ायदा होना था।
क़ीमती तकनीकी जानकारियां चुराने के जुर्म में ज़ेंग शियाओचिंग को इस महीने की शुरुआत में दो साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी।
ज़ेंग का मामला, चीन द्वारा अमेरिका के तकनीकी राज़ चुराने के लंबे सिलसिले की ताज़ा कड़ी है, जिसमें अमेरिकी अधिकारी, औद्योगिक जासूसी करने वालों के ख़िलाफ़ मुक़दमे चला रहे हैं। पिछले साल नवंबर में पेशेवर जासूस बताए जा रहे चीन के नागरिक शू यानजुन को 20 साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी। शू पर अमेरिका के हवाई और अंतरिक्ष उद्योग की कई कंपनियों से गोपनीय तकनीकी जानकारियां चुराने का जुर्म साबित हुआ था। इन कंपनियों में जनरल इलेक्ट्रिक भी शामिल है।
चीन तकनीकी राज़ हासिल करके अपनी अर्थव्यवस्था को ताक़तवर बनाना चाहता है, ताकि वो मौजूदा भू-राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती दे सके। वहीं दूसरी तरफ़ अमेरिका अपनी ओर से पुरज़ोर कोशिश कर रहा है कि वो अपने दबदबे को चुनौती दे सकने वाली किसी और देश को उभरने से रोक सके।
इकोनोमिक इंटेलिजेंस यूनिट के निक मारो कहते हैं कि कारोबारी तकनीकी राज़ चुराना एक आकर्षक पेशा है, क्योंकि ऐसे राज़ हासिल करके, 'कोई भी देश वैश्विक मूल्य आधारित श्रृंखला में जल्दी से लंबी छलांग लगा सकता है, और इसके लिए उसे पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक का विकास करने के लिए ज़्यादा निवेश भी नहीं करना पड़ता- फिर चाहे बात वक़्त की हो या पैसे की।'
पिछले साल जुलाई में एफ़बीआई के निदेश क्रिस्टोफ़र रे ने लंदन में कारोबार जगत के दिग्गजों और विद्वानों के सामने कहा था कि, चीन का लक्ष्य पश्चिमी देशों की कंपनियों की बौद्धिक संपदा की 'लूट-मार' करना है, जिससे वो अपने औद्योगिक विकास को रफ़्तार दे सके और आख़िरकार, प्रमुख उद्योगों में अपना दबदबा क़ायम कर सके।
क्रिस्टोफ़र रे ने चेतावनी दी थी कि चीन इस वक़्त, 'बड़े शहरों से छोटे क़स्बों तक, फ़ॉर्च्यून 100 कंपनियों से लेकर स्टार्ट अप तक, हवाई उद्योग से लेकर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और दवा उद्योग तक' में सेंधमारी करके तकनीकी राज़ चुराने में जुटा है।
उस वक़्त चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लीजियन ने कहा था कि क्रिस्टोफ़र रे, 'चीन की छवि ख़राब कर रहे हैं' और उनकी 'मानसिकता शीत युद्ध वाली' है।
'चीन हमारी हैसियत कमज़ोर करना चाह रहा है'
ज़ेंग के बारे में, अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस के बयान में एफ़बीआई के एलन कोहलर जूनियर ने कहा था कि चीन, 'अमेरिकी सादगी ' पर हमले कर रहा है और वो हमें एक विश्व नेता की 'हमारी हैसियत से बेदख़ल' करना चाहता है।
ज़ेंग एक इंजीनियर थे जिन्हें टर्बाइन सील करने की तकनीक में महारत हासिल थी, और वो स्टीम टर्बाइन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में रिसाव रोकने वाली कई तकनीकों पर काम कर रहे थे। अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस ने कहा कि, ऐसी सील से टर्बाइन के काम की क्षमता काफ़ी बढ़ जाती है, 'फिर चाहे वो टर्बाइन की ताक़त या कुशलता में इज़ाफ़े के ज़रिए हो या फिर इंजन के इस्तेमाल की उम्र बढ़ाने से हासिल हो।'
विमान को ताक़त देने वाली गैस टर्बाइन, चीन के हवाई उद्योग के विकास के केंद्र में है।
चीन के अधिकारी विदेशी तकनीक पर अपनी निर्भरता कम करने और फिर उससे आगे निकलने के लिए जिन दस उद्योगों पर काफ़ी ध्यान दे रहे हैं, उनमें अंतरिक्ष और हवाई उद्योग भी शामिल हैं। हालांकि, चीन अपनी औद्योगिक जासूसी के ज़रिए कई और उद्योगों को भी निशाना बना रहा है।
सिलीकॉन वैली स्थित सलाहकार कंपनी कॉन्स्टेलेशन रिसर्च के संस्थापक और सीईओ रे वैंग के मुताबिक़, चीन दवाओं के विकास और नैनो तकनीक के राज़ चुराने की भी पुरज़ोर कोशिश कर रहा है। नैनो तकनीक बहुत बारीक स्तर की इंजीनियरिंग और तकनीक होती है, जिसका इस्तेमाल दवाएं, कपड़े और गाड़ियां बनाने में होता है।
रे वैंग ने एक फ़ॉर्च्यून 100 कंपनी में रिसर्च और विकास विभाग के पूर्व प्रमुख के साथ का एक क़िस्सा सुनाया। उन्होंने वैंग को बताया था कि, 'वो जिस इंसान पर सबसे ज़्यादा भरोसा करते थे- वो उनके इतना क़रीब था कि दोनों के बच्चे भी साथ-साथ पले बढ़े थे- उसी इंसान के बारे में बाद में पता चला कि वो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से पैसे लेता था और उनके लिए जासूसी करता था।'
वैंग ने कहा, 'उन्होंने मुझे बताया कि ऐसे जासूस हर जगह भरे पड़े हैं।'
निक मारो कहते हैं कि इससे पहले जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और सिंगापुर जैसे देशों से तकनीकी राज़ चुराया जाना चिंता की बात थी। लेकिन जब उन देशों की स्वदेशी कंपनियां बाज़ार में नई तकनीक लाने लगीं तो उन देशों ने अपनी बौद्धिक संपदा की रक्षा करना शुरू किया। इसके लिए उन सरकारों ने भी गोपनीय तकनीकी जानकारियां चुराने के मुद्दे को गंभीरता से लेना शुरू किया, और इसे रोकने के लिए क़ानून बनाए।
निक मारो कहते हैं कि, 'पिछले एक दशक के दौरान जब से चीन की कंपनियां नए नए आविष्कार में आगे निकलने लगी हैं, तो उसके बाद से ही घरेलू बौद्धिक संपदा के अधिकारों की हिफ़ाज़त की कोशिशें मज़बूत करने में तेज़ी देखी जा रही है।'
चीन ने विदेशी कंपनियों को अपने बाज़ार में कारोबार की इजाज़त देने के बदले में उनके साथ साझेदारियां की हैं, और ऐसे समझौतों के तहत, विदेशी कंपनियों से तकनीक हासिल किया है। चीन ने इस रास्ते से भी तकनीकी दक्षता हासिल की है। ऐसी शिकायतें किए जाने पर, चीन की हुकूमत ने हमेशा ही दबाव बनाने के आरोपों से इनकार किया है।
हैकिंग का समझौता एक 'मज़ाक़' है
हैकिंग को रोकने के लिए तो ख़ास तौर से कोशिशें की जा रही हैं।
2015 में चीन और अमेरिका ने एक समझौता किया था, जिसके तहत दोनों देशों ने वादा किया था कि वो 'साइबर तकनीक की मदद से बौद्धिक संपदा की चोरी नहीं करेंगे। इनमें कारोबारी बढ़त देने वाली गोपनीय तकनीकी जानकारी और दूसरे व्यापारिक राज़ भी शामिल थे।'
लेकिन, इसके अगले ही साल अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने चीन पर इस समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाया था। लेकिन, अमेरिका की एजेंसी ने ये भी माना था कि सरकारी और कारोबारी डेटा चुराने के लिए हैकिंग के प्रयासों में 'नाटकीय रूप से' गिरावट देखी गई है।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि कुल मिलाकर इस समझौते का बहुत मामूली असर हुआ है। रे वैंग कहते हैं कि, सख़्ती से लागू नहीं किए जाने के चलते ये समझौता एक 'मज़ाक़' बनकर रह गया है। चीन द्वारा अमेरिका की साइबर जासूसी बहुत व्यापक है, और इसने अमेरिकी प्रयोगशालाओं तक में घुसपैठ बना ली है। वैंग ने बीबीसी को बताया कि, 'चीन, पश्चिमी दुनिया के कारोबार जगत के हर क्षेत्र में सेंध लगाकर जासूसी कर रहा है।'
हालांकि, सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी के लिम ताई वेई ने कहा कि, चीन की साइबर जासूसी में बढ़ोत्तरी को लेकर 'पक्के तौर पर ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया है, जिसे चुनौती न दी जा सके'।
लिम कहते हैं, 'कुछ लोगों का मानना है कि चीन के ज़रिए अमेरिका की साइबर जासूसी करने में कमी ज़रूर आई थी लेकिन, जल्द ही ये फिर पुराने स्तर पर पहुंच गई। कुछ अन्य लोग मानते हैं कि ये समझौता इसलिए नाकाम हुआ क्योंकि अमेरिका और चीन के रिश्ते ही काफ़ी बिगड़ गए थे।'
इस बीच, अब अमेरिका सीधे तौर पर सेमीकंडक्टर के अहम उद्योग में चीन की तरक़्क़ी रोकने की कोशिश कर रहा है। ये तकनीक स्मार्टफ़ोन से लेकर, युद्ध की नई तकनीक तक, हर उद्योग के विकास की रीढ़ है। अमेरिका का कहना है कि चीन का ये तकनीक हासिल करना, उसकी (अमेरिका) राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है।
अक्टूबर महीने में अमेरिका ने अब तक के सबसे व्यापक निर्यात प्रतिबंधों का एलान किया था। इसके तहत अमेरिकी तकनीक या सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करके चिप बनाने वाली कंपनियों को, चिप का निर्यात चीन को करने के लिए अमेरिका से लाइसेंस लेना होगा। फिर चाहे वो कंपनियां अमेरिका में चिप बनाती हों या फिर दुनिया के किसी भी दूसरे हिस्से में। अमेरिका ने अपने नागरिकों और ग्रीन कार्ड धारकों को कुछ ख़ास चीनी चिप कंपनियों के लिए काम करने पर भी रोक लगा दी है। ग्रीन कार्ड धारक, अमेरिका के वो स्थायी निवासी हैं, जिन्हें अमेरिका में काम करने का अधिकार हासिल है।
निक मारो कहते हैं कि इन उपायों से चीन की तकनीकी तरक़्क़ी की रफ़्तार कुछ कम ज़रूर होगी। लेकिन, अमेरिका के इन क़दमों से चीन, अपनी तकनीकी आपूर्ति श्रृंखला से अमेरिकी और दूसरे विदेशी उत्पादों को हटाने की कोशिशें भी तेज़ कर देगा।
वो कहते हैं, 'चीन पिछले कई बरस से ऐसा करने की कोशिश कर रहा है, जिसमें अब तक उसे कोई ख़ास कामयाबी नहीं मिली है। लेकिन, अमेरीका की हालिया पाबंदियों के बाद अब चीन पर, इन नीतिगत लक्ष्यों को जल्दी हासिल करने का दबाव बढ़ गया है।'
जहां तक चीन का सवाल है, तो वो भी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दे रहा है। ऐसे में दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए तकनीकी बढ़त बनाने की होड़ और बढ़ने की ही आशंका है।
लेकिन, रे वैंग का मानना है कि अभी भी बढ़त अमेरिका को ही हासिल है। उन्होंने कहा, 'साइबर सुरक्षा क्षेत्र के मेरे दोस्त बताते हैं कि जब वो चीन की वेबसाइटों को हैक करते हैं, तो वहां उन्हें जो उपयोग लायक़ इकलौती तकनीक मिलती है, वो अमेरिका की बौद्धिक संपदा ही है।'