'वोट मांगा तो सिर पर नारियल फोड़ देंगे'

गुरुवार, 28 जनवरी 2016 (15:50 IST)
- फ्रेड्रिक नोरोन्हा (गोवा से)
 
पिछले साल दिसंबर में गोवा सरकार ने नारियल के पेड़ को गोवा, दमन और दीव पेड़ संरक्षण अधिनियम, 1984 के तहत शामिल पेड़ों की परिभाषा से अलग करने का इरादा जाहिर किया था।
इस सरकारी मंशा की विपक्षी दल और स्थानीय लोगों ने आलोचना की थी। इसके बाद सोशल मीडिया पर तूफान मच गया था। विपक्षी दल के सदस्यों और दूसरे लोगों ने 1970 के दशक में चिपको आंदोलन की तर्ज पर नारियल के पेड़ से चिपककर अपना विरोध प्रदर्शित किया था।
 
फिर भी इस महीने की शुरुआत में राज्य सरकार ने इस कानून में बदलाव कर दिया और नारियल के पेड़ की एक पेड़ के रूप में मान्यता खत्म कर दी। नारियल का पेड़ काटने से पहले अब वन विभाग के अधिकारी से इजाजत नहीं लेनी पड़ेगी। नारियल के पेड़ को इससे पहले इस कानून की एक धारा के तहत विशेष रूप से पुराने और खतरनाक पेड़ के तहत शामिल किया गया था।
 
पर्यावरण मंत्री राजेंद्र अर्लेकर ने कहा था, 'वनस्पति विज्ञान के मुताबिक नारियल पेड़ नहीं है क्योंकि इसकी शाखाएं नहीं होतीं।' अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनने के बाद इस बयान ने वनस्पति विज्ञान की वेबसाइटों पर बहस छेड़ दी थी।
 
गोवा के सक्रिय पर्यावरणविदों और विपक्षी नेताओं ने सरकार की ओर से जल्दबाजी में उठाए गए इस कदम को कई रियल स्टेट और औद्योगिक परियोजनाओं का रास्ता साफ करने की नीयत से उठाया गया कदम बताया।
पर्यावरणविद् डॉ. क्लॉड अल्वारेस कहते हैं, 'कानून के तहत एक साल में दो हेक्टेयर तक पेड़ काटने की अनुमति बड़ी परियोजनाओं के रास्ते में बाधक है।' उन्होंने इस कानून और भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत कई बड़ी परियोजनाओं को कोर्ट में घसीटा है।
 
'सरकार ने यह कदम उद्योग और रियल स्टेट को फायदा पहुंचाने के मकसद से उठाया है' इस विचार ने इस फैसले को काफी अलोकप्रिय बना दिया है।
 
अल्वारेस के मुताबिक, 'लगता है वे यह मानने को तैयार नहीं कि गोवा के लोगों के लिए नारियल की क्या अहमियत है। जब वे वोट मांगने जाएंगे तो शायद गोवा के लोग उनके सिर पर नारियल फोड़ देंगे।'
 
इकोलॉजी की किताब 'फ़िश करी एंड राइस' में जिक्र है कि स्थानीय कोंकणी भाषा में नारियल के संबोधन के लिए 50 नाम हैं। पेड़ के सभी हिस्से इस्तेमाल में आते हैं। कोई भी हिस्सा बेकार नहीं जाता। प्रचुर मात्रा में खनिज तत्व वाले नारियल पानी की बड़ी मांग है।
तटवर्ती इलाके के लोग नारियल के पेड़ के रेशों से कॉयर मैट, रस्सी, झाड़ू, ब्रश और गद्दे बनाते हैं। इसके अलावा नारियल से टोकरी और छत भी बनती है। गोवा के लोग नारियल के फल का इस्तेमाल खाना पकाने और मिठाई बनाने में करते हैं। नारियल के तेल का इस्तेमाल दवा बनाने समेत रोजमर्रा की चीजों में होता है।
 
इसके तेल का इस्तेमाल साबुन बनाने में भी होता है। नारियल के पेड़ से ताड़ी निकालने वाले गोवा की संस्कृति के अहम हिस्से हैं। हालांकि यह काम अब धीरे-धीरे हाशिए पर जा चुका है। ताड़ी से यहां की प्रसिद्ध फेनी और सिरका तैयार होता है।
 
इतनी सारी खूबियों के कारण इसे 'कल्पवृक्ष' कहते हैं। कृषि विभाग हर साल एक लाख नारियल के पौधे बेचता है। गोवा में हर परिवार अपने घर के पीछे एक नारियल का पेड़ जरूर लगाता है और उसे तभी काटता है जब उसकी बहुत जरूरत हो।
 
'फ़िश करी एंड राइस' के मुताबिक आखिरी बार नारियल के पेड़ों की आधिकारिक गिनती 1954 में की गई थी और 23 लाख नारियल के पेड़ दर्ज किए गए थे। आज 25 हजार हेक्टेयर जमीन पर मौजूद नारियल के पेड़ 12 करोड़ 40 लाख नारियल के फल पैदा करते हैं जो भारत के कुल उत्पादन का 0.98 फीसदी है। हालांकि यह केरल जैसे दक्षिण के राज्यों से बहुत कम है।
बॉटेनिकल सोसायटी ऑफ गोवा के कार्यकारी सदस्य और पूर्व कृषि अधिकारी मीगल ब्रगैंसा ने कहा, 'नारियल उत्पादों का नए डब्लूटीओ व्यवस्था के तहत आयात, कीमतों में कमी, मजदूरी और चोरी जैसे मुद्दों ने नारियल से जुड़ी अर्थव्यवस्था पर असर डाला है। नारियल की पैदावार करने वाले उद्योग, रियल एस्टेट और पर्यटन के दबाव में हैं।'
 
बदलती अर्थव्यवस्था के कारण हालांकि इलाके के लोगों और यहां आने वाले पर्यटकों का नारियल से भावनात्मक संबंध नहीं टूटा है। राजनीतिक दलों ने इसे एक भावनात्मक मुद्दा मानते हुए सरकार को फटकारा है जबकि सरकार ने उन पर 'इमोशनल ब्लैकमेल' का आरोप लगाया है।
 
गोवा के मशहूर फैशन डिजाइनर वेंडेल रॉड्रिक्स का कहना है, 'नारियल का पेड़ रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोगी होने के अलावा पवित्र भी है। यह कई रीति-रिवाजों का पवित्र हिस्सा है। इसका इस तरह से व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए अपमान करना चौंकाने वाला है।'
 
उन्होंने बीबीसी से कहा, 'हमें इस कानून में बदलाव के लिए आंदोलन की जरूरत है। नारियल के पेड़ पूरे सम्मान के साथ अपनी जगह पर कायम रहने चाहिए।'

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