पुरानी कहावत है। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। ये दोनों पहलू वैसे तो एक-दूसरे के विपरीत होते हैं। फिर भी दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे से जुड़ा होता है।
कुछ यही बात माल और सेवा कर यानी जीएसटी के साथ भी लागू होती है। इस नई कर व्यवस्था की दूसरी वर्षगांठ के मौके़ पर एक नज़र दोनों पहलुओं पर। पहले बात सरकार के कुछ दावों की।
पहला पहलू
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक बार कहा था कि जीएसटी काउंसिल जैसी व्यवस्था स्वास्थ्य और कृषि में भी अपनाई जानी चाहिए। किसी भी व्यवस्था की कामयाबी का सबसे बड़ा सबूत यही है कि वो दूसरे क्षेत्र के लिए मिसाल बन जाए।
जीएसटी काउंसिल, जीएसटी के मामले में सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था है। संविधान लागू होने के बाद ये पहली संस्था है जिसमें केंद्र, 29 राज्य और विधानसभा वाले दो केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली और पुड्डुचेरी) ने संविधान के ज़रिए कर को लेकर मिली अपनी संप्रभुता को शामिल किया।
परिषद में फ़ैसले के लिए मत का भी प्रावधान है, लेकिन अब तक परिषद की हुई 35 में से 34 बैठकों में 1064 फै़सले हुए, लेकिन एक बार भी मतदान की ज़रूरत नहीं पड़ी. अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं वाली सरकारों के प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से ही कोई फै़सला लिया और हां उनमें से 1006 यानी 94.5 फ़ीसदी फ़ैसलों पर अमल भी हो गया. जीएसटी काउंसिल की कामयाबी की सबसे बड़ी कहानी यही है।
दूसरी ओर जब केंद्र व राज्य के 17 करों और 26 सेस को मिलाकर एक कर व्यवस्था लागू करने का फ़ैसला हुआ तो एक नहीं, कई आशंकाएं सामने थीं। सबसे बड़ा डर तो यही था कि जहां देश में 90 फ़ीसदी से भी ज़्यादा खुदरा कारोबार असंगठित क्षेत्र में हो तो वहां इस तरह की एकीकृत व्यवस्था कैसे काम करेगी।
दूसरा डर था कि क़ीमतें कहीं बेक़ाबू नहीं हो जाए। तीसरी आशंका कई तरह की दरों को लेकर थी। कम से कम सरकारी आंकड़े तो यही बताते हैं कि ये तीनों ही आशंकाएं ग़लत साबित हुई हैं।
पहली जुलाई 2017 को जीएसटी लागू होने के समय कुल 38.5 लाख करदाताओं ने पुरानी व्यवस्था से नई व्यवस्था की ओर रुख़ किया, वहीं इस साल 30 जून को जीएसटी के तहत करदाताओं की संख्या 1.22 करोड़ पर पहुंच गई है।
इसमें से क़रीब आधे पुरानी व्यवस्था में भी थे जबकि बाक़ी नए हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो पंजीकरण कराने वाले कारोबारियों की संख्या तो बढ़ ही रही है, ऐसे कारोबारी भी शामिल हो रहे हैं जिनके लिए पंजीकरण कराना ज़रूरी नहीं है, लेकिन व्यापार की सुगमता के लिए वो ऐसा कर रहे हैं।
जहां तक क़ीमतों को लेकर बात है तो ये किस तरह से क़ाबू में हैं, इसके संकेत महंगाई दर की मौजूदा स्थिति से मिलते हैं। खुदरा महंगाई दर तीन फ़ीसदी के क़रीब है जबकि थोक महंगाई दर ढ़ाई फ़ीसदी के क़रीब।
जहां तक दरों की बात है तो 97.5 प्रतिशत सामान पर जीएसटी की दर 18 फ़ीसदी या उससे कम है और महज़ 28 चीज़ों पर ही 28 फ़ीसदी की दर से जीएसटी लगता है। इन सबके बाद भी जीएसटी से औसत मासिक कमाई 98 हज़ार करोड़ रुपए से ऊपर हो चुकी है (हालांकि ये लक्ष्य से कम है)
एक और बात। राज्यों की आमदनी सुधरी है। आंकड़े बताते हैं कि 2018-19 के पहले दो महीने में आमदनी में आई कमी जहां 24 फीसदी तक पहुंच गई थी, वहीं चालू कारोबारी साल के पहले दो महीने में ये 20 फीसदी के क़रीब है। पूर्वोत्तर के कई राज्यों में आमदनी में कमी की बजाय बढ़त देखने को मिली है।
हालांकि पुड्डुचेरी, दिल्ली और हरियाणा जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में स्थिति अभी भी ख़राब है, फिर भी राहत की बात है कि शुरुआती 5 वर्षों में कमी की पूरी-पूरी भरपाई करने की व्यवस्था है, लिहाज़ा राज्यों को परेशान नहीं होना होगा।
केंद्र सरकार यह भी दावा कर रही है कि नई कर व्यवस्था के ज़रिए औपचारिक अर्थव्यवस्था का दायरा बढ़ा है। आयकर और जीएसटी के विवरण के मिलान से कर चोरी पर लगाम लगाने में मदद मिली है और कालेधन का प्रसार रुका है। 40 लाख रुपए तक (पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों और तेलंगाना को छोड़कर) जीएसटी पंजीकरण की अनिवार्यता नहीं होने से छोटे कारोबारियों को मदद मिली है।
रिटर्न की नई सरल व्यवस्था लागू की जा रही है और अगर कर से कमाई बढ़ रही होती तो आने वाले दिनों में कर की दरों को और तर्कसंगत बनाया जा सकता है। इस सिलसिले में आने वाले दिन में 12 और 18 फ़ीसदी की दर को मिलाकर एक दर 15 फ़ीसदी किया जा सकता है।
दूसरा पहलू
ये था सिक्के का एक पहलू जहां सब कुछ अच्छा दिख रहा है, लेकिन क्या कहानी बस इतनी ही हैं? बिल्कुल नहीं। सिक्के का दूसरा पहलू है जीएसटी की दिक़्क़तें।
सबसे बड़ी परेशानी इस समय सालाना रिटर्न को लेकर है। हालांकि इसकी तारीख़ 30 जून से 31 अगस्त कर दी गई है, लेकिन कारोबारियों के बीच उलझन ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। किस तरह से पूरी जानकारी एक साथ जुटाई जाए, ये काम करना आसान साबित नहीं हो रहा।
हालांकि जीएसटी अधिकारी दावा करते हैं कि समय-समय पर स्थानीय स्तर पर कार्यशालाओं और संगोष्ठी के ज़रिए हर ज़रूरी जानकारी दी जा रही है, लेकिन कारोबारियों का कहना है कि जानकारी स्पष्ट नहीं है और अधिकारियों का रवैया भी सहयोग बनाए रखने वाला नहीं है।
अब इन सब के बीच एक नई परेशानी नई रिटर्न व्यवस्था को लेकर है। यह अलग-अलग श्रेणी के करदाताओं के लिए चरणबद्ध तरीक़े से शुरू होने के बाद पूरी तरह से पहली जनवरी से लागू हो जाएगा। यानी सालाना रिटर्न से निपटने के बाद एक बड़ी चुनौती नई रिटर्न व्यवस्था को अनुकूल बनाने की होगी।
हालांकि कर अधिकारियों का कहना है कि नए रिटर्न का ख़ाका पहले ही जारी किया जा चुका है और प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल करने के लिए समय भी दिया गया है, लिहाज़ा कारोबारियों को दिक़्क़त नहीं आएगी।
तीसरा मुद्दा ढेर सारी दरों को लेकर है। आमतौर पर 5,12,18 और 28 फ़ीसदी की दर से तो सभी वाक़िफ़ हैं, लेकिन इसके अलावा 0, 0.25 (बिना पॉलिश वाले हीरे के लिए), 1 (किफ़ायती घरों के लिए) और 3 फ़ीसदी (सोना-चांदी वगैरह) की विशेष दर भी है।
शिकायत है कि जब 'एक देश-एक कर-एक बाज़ार' की बात होती है तो इतनी दरों की ज़रुरत ही क्यों है? सिंगापुर में जीएसटी की एक दर 7 फीसदी है जबकि ब्रिटेन में 5 और 20 फीसदी है। कई देशों में एक स्टैंडर्ड रेट और एक निचली दर है।
भारत में तो दो स्टैंडर्ड रेट 12 और 18 फीसदी है। वैसे तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले साल कहा था कि आने वाले समय में 12 और 18 फीसदी को मिलाकर 15 फीसदी की एक दर लाई जा सकती है।
लेकिन ये आसान नहीं दिखता। आज के दिन में 1200 सामान में क़रीब 42 फ़ीसदी पर 18 फ़ीसदी की दर से जीएसटी लगता है जबकि 12 फ़ीसदी की दर 15 फ़ीसदी के क़रीब सामान पर लगता है। ऐसे में ज़्यादातर सामान सस्ते तो हो जाएंगे, लेकिन जीएसटी से सालाना कमाई में 1 लाख रुपए तक की कमी आ सकती है। केंद्र और राज्य इस कमी के लिए फिलहाल तैयार नहीं दिखते।
एक मुद्दा मुनाफ़ाख़ोरी पर लगाम की व्यवस्था को लेकर भी है। कारोबारियों और व्यापारियों की शिकायत है कि मुनाफ़ाख़ोरी की सही-सही परिभाषा का अभाव है। नतीजा मुनाफ़ाख़ोरी पर लगाम लगाने के लिए गठित विशेष प्राधिकरण के फै़सलों में असमानता के आरोप लगते रहे हैं।
हालात ये हैं कि पहली मई तक प्राधिकरण ने कुल 65 फ़ैसले दिए जिसमें से 8 को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है। इसमें से दो सबसे बड़े (हिन्दुस्तान लीवर - 545 करोड़ रुपए की मुनाफ़ाख़ोरी और ज्यूबलिएंट फूड - 41.42 करोड़ की मुनाफ़ाख़ोरी) फ़ैसले शामिल हैं।
प्राधिकरण की ओर से अब तक मुनाफ़ाख़ोरी की कुल रक़म को लेकर जितने फ़ैसले दिए गए हैं, उनमें से 96 फ़ीसदी अकेले इन्हीं दो मामलों को लेकर हैं।
कारोबारियों की एक और शिकायत ई-वे बिल को लेकर है। 50 हज़ार रुपए से ज़्यादा क़ीमत के सामान की आवाजाही के लिए ई वे बिल की अनिवार्यता कारोबारियों को खल रही है।
उनकी ज़्यादा परेशानी और राज्य के भीतर एक-जगह से दूसरे जगह पर एक निश्चित क़ीमत से ज़्यादा के सामान पहुंचाने के लिए ई वे बिल की अनिवार्यता को लेकर है। मांग है कि क़ीमत की सीमा बढ़ाई जाए और राज्य के भीतर किसी भी क़ीमत की सामान की आवाजाही पर ई वे बिल की ज़रूरत ख़त्म की जाए।
अब आगे क्या?
सरकार कह रही है दो सालों के बीच उद्योग और कारोबार की ज़रूरतों को समझते हुए और कभी-कभी पूर्वानुमान लगाकर व्यवस्था में बदलाव किए गए और आगे भी ऐसा ही होगा। इसी सिलसिले में चालू कारोबारी साल यानी 2019-20 के दौरान सात बड़े बदलाव हो रहे हैं।
1. रजिस्ट्रेशन के लिए कारोबार की सीमा - सामान के कारोबारियों के लिए पहली अप्रैल से ज़रूरी रजिस्ट्रेशन करने के लिए सालाना कारोबार की सीमा 20 लाख रुपए की बजाए 40 लाख रुपये। हालांकि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, पुड्डुचेरी, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तराखंड में 20 लाख रुपये की सीमा जारी रहेगी।
2. सेवा क्षेत्र के लिए कंपोजिशन स्कीम - 50 लाख रुपए तक सालाना कारोबार करने वाले सेवा क्षेत्र के कारोबारियों के लिए 1 अप्रैल से विशेष कंपोजिशन स्कीम। छह फ़ीसदी की दर से जीएसटी देना होगा।
3. नई रिटर्न व्यवस्था - बड़े कारोबारियों के लिए प्रायोगिक तौर पर नया रिटर्न पहली जुलाई से और अनिवार्य रूप से पहली अक्टूबर से। छोटे कारोबारियों के लिए सहज व सुगम रिटर्न फॉर्म प्रस्तावित।
4. सिंगल कैश लेज़र - हिसाब-किताब रखने की सरल व्यवस्था में 20 मदों को मिलाकर पांच मदों में शामिल किया गया कर, ब्याज, दंड, शुल्क और अन्य के लिए एक ही कैश लेज़र।
5. रिफंड की सरल व्यवस्था - एक ही जगह (केंद्र या राज्य सरकार) से सभी तरह के रिफंड।
6. इलेक्ट्रॉनिक इनव्यॉस - बड़े कारोबारियों के लिए कारोबार से कारोबार (बी टू बी) लेन-देन के लिए इलेक्ट्रॉनिक इनव्यॉस की व्यवस्था।
7. जीएसटी अपीलीय पंचाट (जीएसटी-एट) - हर राज्य में पंचाट का गठन।