सऊदी अरब: यहाँ तीन महीने में बड़े-बड़े जिहादी भी सुधर जाते हैं

सोमवार, 29 मई 2017 (11:23 IST)
- फ्रैंक गार्डनर (सऊदी अरब) 
टेंट की दीवार से पीठ टिकाए बैठे अल-क़ायदा के 9 यमनी क़ैदियों के हाथों में उनकी पहचान के लिए ख़ास इलेक्ट्रॉनिक टैग लगे हुए थे। अपने हाथ बांधे बैठे ये 9 क़ैदी सहमे से दिख रहे थे। उनमें अधिकतर पुरुष थे और बीते 15 साल से अमेरिकी सेना द्वारा चलाए जा रहे ग्वांतानामो बे में क़ैद थे। उनमें से एक शख़्स इसी साल अप्रैल में यहां आया है।
 
बीबीसी को उनकी तस्वीरें लेने की इजाज़त नहीं मिली। मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का सऊदी अरब दौरे पर इस्लाम और सहिष्णुता पर दिया भाषण सुना? उन्होंने ये भाषण टेलीविज़न पर सुना था। मेरा सवाल सुन कर उनके चेहरे पर मुस्कान तैर गई और वो एक दूसरे को देखने लगे।
 
उनमें से एक ने अपना हाथ अपने सीने पर रखा और कहा, "मुझे नहीं पता कि वो ईमानदारी से कह रहे थे या नहीं। सच्चाई जानने के लिए मुझे उनके दिल में झांककर देखना होगा।"
 
उनमें से सबसे उम्रदराज़ शख़्स ने सीने तक लंबी अपनी भूरी दाढ़ी पर हाथ फिराते हुए कहा, "मेरा भी यही कहना है। लेकिन हम उन्हें उनके काम से ही जानेंगे।" उनमें से एक ने कहा कि अब व्हाइट हाउस में सरकार बदल गई है। अब वहां जॉर्ज डब्ल्यू बुश नहीं हैं जिन्होंने उन्हें ग्वांतानामो बे भेजा था।
 
सुधार गृह की कल्पना : उनके साथ मुलाकात होना ही अपने आप में सहज नहीं था। उन्हें पश्चिमी देशों से आए पत्रकारों और अकादमिक जानकारों से मिलने के लिए एक टेन्ट में लाकर बैठाया गया था। सऊदी अधिकारियों की निगाहें उन्हीं पर टिकी थीं।
उन्हें पता था कि उनके हर शब्द पर सबके कान लगे हुए है कि कहीं वो हिंसक इशारे वाली कोई बात न कह दें। इस सुधार गृह से उनकी रिहाई इसी पर तो टिकी थी।
 
यहां से रिहाई मिलने के बाद उन्हें रियाद शहर में रहना होगा क्योंकि उनका अपना देश यमन जंग की गिरफ्त में है। उनके लिए अरब प्रांत में पैर फैला चुके अल-क़ायदा में वापस जाना कहीं ज़्यादा आसान हो जाएगा।
 
सऊदी अधिकारी चाहते हैं कि जिहादियों को समाज में फिर से जीना सिखाने के लिए बने इस सुधार गृह (मोहम्मद बिन नाएफ़ सेंटर फ़ॉर काउंसेलिंग एंड केयर) को पूरी दुनिया को दिखाया जाए।
 
सऊदी अरब में अल-क़ायदा पर हुए लगातार हमलों के बाद साल 2004 में इस सुधार गृह की स्थापना की गई थी। इसकी कल्पना कैद में रहे जिहादियों और समाज के बीच एक पुल की तरह की गई थी जहां उन्हें सामान्य नागरिक बनना सिखाया जा सके।
 
यहां रहने वाले अधिकतर क़ैदी सऊदी अरब से हैं और चरमपंथ-रोधी क़ानून के तहत गिरफ्तार किए गए थे। ये सुधार गृह सज़ा पूरी होने के बाद क़ैदियों को सामाजिक जीवन के लिए तैयार करता है ताकि वो हिंसा छोड़ कर सामान्य जीवन अपनाएं।
 
क्या ये तरीका काम करता है?
मानसिक तौर पर हिंसा के रास्ते से जिहादियों को सही रास्ते पर लाने की कोशिश करने वाला ये शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा सुधार गृह है। सुधार गृह के अधिकारियों के अनुसार 2005 से अब तक यहां से 3,300 कैदी समाज में वापस जाने के लिए 'तैयार हो चुके' हैं। इनमें ग्वांतानामो बे से यहां लाए गए 123 क़ैदी भी शामिल हैं।
अधिकारियों का कहना है कि सुधार गृह की सफलता की दर 80 फ़ीसदी है, जबकि बचे 20 फीसद लोगों ने फिर से हिंसा का रास्ता अपना लिया। (मैंने साल 2003 में यमन में इस तरह के एक सुधार गृह का दौरा किया था। यहां की सफलता की दर काफी कम थी।)
 
यहां आने वाले क़ैदी कम से कम तीन महीने यहां बिताते हैं, जिसके बाद आकलन किया जाता है कि वो बाहर की ज़िंदगी के लिए तैयार हुए या नहीं। पूरा कार्यक्रम तीन हिस्सों में किया जाता है-
 
*सुधार गृह में आने से पहले जेल में ही व्यक्ति के साथ काउंसलिंग की जाती है।
*कला, संस्कृति, धर्म और खेल के कार्यक्रमों के ज़रिए सुधार गृह में उनका पुनर्वास किया जाता है।
*सुधार गृह से बाहर निकलने के बाद उनका ध्यान रखा जता है।
 
किंग सऊद यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्री डॉक्टर हामिद अल-शायरी कहते हैं, "ज्ञान के समंदर में आपका स्वागत है। ये वो जगह है जहां हम उन्हें ग़लत राह से निकालने की कोशिश करते हैं ताकि वो समाज के लिए ख़तरा ना बनें।" वो कहते हैं कि उनके कर्मचारी रोज़ कई घंटे क़ैदियों के साथ बिताते हैं। वो कहते हैं, "लोगों को अपने समाज और परिवार से घृणा करने से रोकना कोई आसान काम नहीं है।"
 
कला चिकित्सक और शिक्षक बद्र अल-रज़िन कहते हैं कि उनके पुनर्वास में कला का बड़ा हाथ होता है। वो कहते हैं "जब ये लोग पहली बार यहां आते हैं तो वो अधिकतर लाल रंग के इस्तेमाल से हिंसा दर्शाती तस्वारें बनाना चाहते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनमें सुधार होता है और वो अन्य विषयों पर तस्वीरें बनाने लगते हैं।"
 
धर्म के बारे में पढ़ाने वाले शिक्षकों का काम भी बेहद अहम है। इस्लाम की बेहतर जानकारी के साथ ये शिक्षक ये समझाने की कोशिश करते हैं कि जिहादियों के उद्देश्य और हिंसक काम इस्लाम में क्यों 'हराम' हैं।
 
दुनिया में वापस जाना
तो, ग्वांतानामो बे से सुधार गृह में आए यमन के लोग समाज में वापस जाने के बारे में क्या सोचते हैं?
उन नौ क़ैदियों में से सबसे उम्रदराज़ शख़्स ने कहा, "हम बदल चुके हैं। इस सुधार गृह का शुक्रिया हम खुद को एक नया इंसान महसूस कर पा रहे हैं।"
 
"ये सच है कि ग्वांतानामो बे में लोगों ने हमारे साथ बुरा बर्ताव किया लेकिन यहां के कार्यक्रमों से हम वो सब भूलने में सक्षम हो पाए हैं। लेकिन मुझे चिंता है कि समाज में लोग हमें स्वीकार नहीं करेंगे।"
 
वो कहते हैं "और जब से हम गए हैं तब से अब तक दुनिया भी तो बदल गई है, हम शायद इसे पहचान भी ना पाएं।"

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