यूपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण रद्द करने का मामला, क्यों विपक्ष योगी सरकार को घेर रहा है?

BBC Hindi

बुधवार, 28 दिसंबर 2022 (07:50 IST)
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार की ओर से जारी ड्राफ्ट नोटिफ़िकेशन को रद्द कर दिया है और ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव कराने के लिए कहा है। नोटिफ़िकेशन में उत्तर प्रदेश सरकार ने ओबीसी आरक्षण को लेकर जो फार्मूला लागू किया था, उस पर कोर्ट सहमत नहीं हुआ।
 
इतना ही नहीं, प्रदेश सरकार ने शहरी स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर पांच दिसंबर को जो अधिसूचना जारी की थी उसे भी खारिज़ कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद ओबीसी आरक्षण को लेकर एक नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। विपक्षी पार्टियों ने बीजेपी को घेरना शुरू कर दिया है। इस फैसले के बाद खुद बीजेपी भी मुश्किल है। किस नेता ने क्या कहा, ये जानने से पहले आसान भाषा में मुद्दे को समझना ज़रूरी है।
 
क्या है मामला ?
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक निकाय चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी की गई अधिसूचना के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गईं थीं।
 
इसमें ओबीसी आरक्षण लागू करने के तरीके को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से कहा कि रिजर्वेशन ड्राफ्ट में सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले का ध्यान नहीं रखा गया है।
 
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय फ़ॉर्मूले का पालन करना चाहिए और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की स्थिति के अध्ययन के लिए एक आयोग बनाना चाहिए।
 
यूपी सरकार के फॉर्मूले पर उठे सवाल
इस पर यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसने एक 'रैपिड सर्वे कराया और ये ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले की ही तरह था।'
 
यूपी सरकार ने इस महीने की शुरुआत में प्रदेश की 17 महापालिकाओं के मेयरों, 200 नगर पालिका और 545 नगर पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण की प्रोविजनल लिस्ट जारी की थी। पांच दिसंबर को जारी लिस्ट के मुताबिक प्रदेश में चार मेयर सीट (अलीगढ़, मथुरा-वृंदावन, मेरठ और प्रयागराज) को ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित किया गया था।
 
इनमें से अलीगढ़ और मथुरा-वृंदावन ओबीसी महिला के लिए आरक्षित थी। नगरपालिका अध्यक्ष की 54 और नगर पंचायत अध्यक्ष की 147 सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित की गईं थीं।
 
लेकिन कोर्ट ने प्रदेश सरकार की ओर से दिए इस रिज़र्वेशन ड्राफ्ट को खारिज कर दिया। कोर्ट का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित ट्रिपल टेस्ट न हो, तब तक आरक्षण नहीं माना जाएगा। यह फै़सला न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने सुनाया है।
 
क्या है ट्रिपल टेस्ट
नगर निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण तय करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाता है, जो निकायों में पिछड़ेपन का आकलन करता है। इसके बाद सीटों के लिए आरक्षण को प्रस्तावित किया जाता है। दूसरे चरण में ओबीसी की संख्या पता की जाती है। तीसरे चरण में सरकार के स्तर पर इसे सत्यापित किया जाता है।
 
कोर्ट के फैसले पर बोले योगी आदित्यनाथ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के फ़ैसले के बाद बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि उनकी सरकार नगर निकाय सामान्य निर्वाचन के लिए एक आयोग गठित करेगी। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण दिया जाएगा।
 
कोर्ट के आदेश के बाद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ज़रूरी हुआ तो उनकी सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी अपील कर सकती है।
 
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्विटर पर जानकारी दी, "यदि आवश्यक हुआ तो माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के क्रम में सभी कानूनी पहलुओं पर विचार करके प्रदेश सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील भी करेगी।"
 
उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, "नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा, परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा!"
 
विपक्ष का क्या कहना है?
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं और आरोप लगाया है कि सरकार ओबीसी आरक्षण को लेकर कोरी सहानुभूति दिखा रही है।
 
अखिलेश यादव ने ट्विटर पर लिखा है, "आज आरक्षण विरोधी भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घड़ियाली सहानुभूति दिखा रही है। आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक़ छीना है,कल भाजपा बाबा साहब द्वारा दिए गये दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी"
 
अखिलेश के अलावा सपा नेता प्रोफेसर रामगोपाल ने भी ट्वीट कर योगी आदित्यनाथ सरकार पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा, "निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण ख़त्म करने का फ़ैसला दुर्भाग्यपूर्ण। उत्तर प्रदेश सरकार की साजिश। तथ्य न्यायालय के समक्ष जानबूझकर प्रस्तुत नहीं किए। उत्तर प्रदेश की साठ फ़ीसदी आबादी को आरक्षण से वंचित किया। ओबीसी मंत्रियों के मुँह पर ताले। मौर्य की स्थिति बंधुआ मज़दूर जैसी !"
 
एनडीए गठबंधन में शामिल अपना दल के कार्यकारी अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल ने कहा कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण ज़रूरी है।
 
ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा, "ओबीसी आरक्षण के बिना निकाय चुनाव किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। हम इस संदर्भ में माननीय लखनऊ उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का अध्ययन कर रहे हैं। जरूरत पड़ी तो अपना दल ओबीसी के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।"
 
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने ट्वीट करते हुए लिखा, "यूपी में बहुप्रतीक्षित निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक अधिकार के तहत मिलने वाले आरक्षण को लेकर सरकार की कारगुजारी का संज्ञान लेने सम्बंधी माननीय हाईकोर्ट का फैसला सही मायने में भाजपा व उनकी सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण-विरोधी सोच व मानसिकता को प्रकट करता है।"
 
"यूपी सरकार को मा. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पूरी निष्ठा व ईमानदारी से अनुपालन करते हुए ट्रिपल टेस्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था को समय से निर्धारित करके चुनाव की प्रक्रिया को अन्तिम रूप दिया जाना था, जो सही से नहीं हुआ। इस गलती की सज़ा ओबीसी समाज बीजेपी को ज़रूर देगा।"
 
आज़ाद सामाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्र शेखर आज़ाद ने ट्वीट करते हुए लिखा, "समय समय पर संविधान और आरक्षण की समीक्षा की पैरवी करने वाली भाजपा से और उम्मीद क्या की जा सकती है।"
 
"यूपी के निकाय चुनावों मे पिछड़ों के आरक्षण पर कुठाराघात भाजपा की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव बाबा साहब की सोच और पूरे बहुजन समाज के साथ नितांत धोखा है।"

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