टाटा समूह की संपत्ति पाकिस्तान की जीडीपी से भी ज़्यादा कैसे हुई?

BBC Hindi
सोमवार, 26 फ़रवरी 2024 (09:20 IST)
-मिर्ज़ा एबी बेग (बीबीसी उर्दू, नई दिल्ली)
 
बचपन में एक कहावत सुनी थी कि 'जूतों में बाटा और सामान में टाटा बहुत मज़बूत होते हैं।' इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं लेकिन पिछले दिनों भारतीय मीडिया में यह बात सामने आई कि टाटा ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ की कुल संपत्ति 365 अरब डॉलर तक पहुंच गई है।
 
यह उसे भारत की सबसे मज़बूत कंपनी तो बनाती ही है, साथ ही साथ उसकी यह संपत्ति पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी से कहीं अधिक है। आप अक्सर यह सुनते रहे होंगे कि रिलायंस ग्रुप के प्रमुख मुकेश अंबानी दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शामिल हो गए या फिर अरबपति व्यापारी गौतम अदानी ने उनको पीछे छोड़ दिया। लेकिन उनमें आपको टाटा की चर्चा सुनने को नहीं मिलती है।
 
चाय से लेकर जैगुआर लैंड रोवर कार और नमक बनाने से लेकर जहाज़ उड़ाने और होटलों का ग्रुप चलाने तक ज़िंदगी के विभिन्न क्षेत्रों में टाटा का जलवा नज़र आता है। टाटा ग्रुप की मार्केट कैपिटलाइज़ेशन इस साल फ़रवरी में लगभग 365 अरब डॉलर रही जबकि हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने पाकिस्तान के जीडीपी का अनुमान लगभग 341 अरब डॉलर लगाया है।
 
अगर केवल टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज़ की बात की जाए तो उसकी संपत्ति 170 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो कि भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है। इसकी संपत्ति पाकिस्तान की आर्थिकी की लगभग आधी है।
 
टाटा कंपनी की स्थापना
 
बहरहाल, यह सब एक दिन में नहीं हुआ है। इसके लिए 150 साल से अधिक का समय लगा लेकिन यह जीवन के कई क्षेत्रों में भारत की पहली कंपनी रही है। 8 फ़रवरी सन 1911 में लोनावाला डैम की आधारशिला रखते हुए उस समय के टाटा ग्रुप के प्रमुख सर दोराबजी टाटा ने अपने पिता जमशेदजी टाटा की सोच के बारे में बात की थी, जिन्होंने सन 1868 में इस कंपनी की बुनियाद डाली थी।
 
यह अब 10 वर्टिकल्स के साथ 30 कंपनियों का ग्रुप है। यह 6 महादेशों के 100 से अधिक देशों में अपनी सेवाएं दे रही है। दोराबजी टाटा ने कहा था, 'मेरे पिता के लिए दौलत कमाना बाद की बात थी। वह इस देश के लोगों की औद्योगिक और वैचारिक हालत को बेहतर बनाने को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में समय-समय पर जिन विभिन्न संस्थाओं को शुरू किया, उनका असल मक़सद उन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास था।'
 
कंपनी की वेबसाइट पर उनके मिशन के तौर पर यह बात दर्ज है कि उन कंपनियों की स्थापना दुनिया भर में विभिन्न समुदायों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए हुई है। कहा जाता है कि उन्नीसवीं सदी के अंत में टाटा के संस्थापक जमशेदजी टाटा को बंबई के एक महंगे होटल में उनके रंग-रूप की वजह से अंदर जाने नहीं दिया गया था।
 
जमशेदजी पर इस घटना का बहुत गहरा असर हुआ। उन्होंने फ़ैसला किया कि वह इस होटल से बेहतर होटल बनाएंगे जिसमें सभी भारतीय नागरिकों को भी आने-जाने की इजाज़त होगी।
 
पहला लग्ज़री होटल
 
इस तरह सन 1903 में मुंबई के समुद्र किनारे ताज होटल की स्थापना हुई। यह शहर की पहली इमारत थी जिसमें बिजली, अमेरिकन पंखे और जर्मन लिफ़्टों जैसी सुविधाएं दी गई थीं। इसमें अंग्रेज़ ख़ानसामे काम करते थे। अब उसकी ब्रांच अमेरिका और ब्रिटेन समेत 9 देशों में हैं।
 
जमशेदजी सन 1839 में एक पारसी परिवार में पैदा हुए। उनके पूर्वजों में कई पारसी धर्म के गुरु हुए थे। उन्होंने कपास, चाय, तांबे, पीतल और अफ़ीम (जिनका कारोबार उसे समय ग़ैर क़ानूनी नहीं था) में बहुत पैसा बनाया। वे दुनियाभर में घूमने वाले शख़्श थे और नए आविष्कारों से काफ़ी प्रभावित होते थे। ब्रिटेन के एक दौरे के दौरान लंकाशर में कपास की मिलों को देखने के बाद उन्हें यह अहसास हुआ कि भारत अपने इस उपनिवेशवादी मालिक के साथ मुक़ाबला कर सकता है।
 
पहली टेक्सटाइल कंपनी
 
इसलिए सन 1877 में जमशेदजी ने महारानी मिल्स के नाम से देश की पहली टेक्सटाइल मिल खोली। महारानी मिल्स का उद्घाटन उस दिन हुआ जिस दिन महारानी विक्टोरिया की भारत की महारानी के तौर पर ताजपोशी हुई थी। जमशेदजी के भारत के विकास के दृष्टिकोण को स्वदेशी शब्द से समझा जा सकता है, जो 19वीं सदी की शुरुआत में भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन का महत्वपूर्ण अंग था।
 
उन्होंने कहा था, 'किसी समुदाय के विकास के लिए सबसे कमज़ोर और सबसे बेबस लोगों को सहारा देने की बजाय ज़रूरी है कि सबसे अधिक योग्य और सबसे प्रतिभावान लोगों की मदद की जाए ताकि वह अपने देश की सेवा कर सकें।'
 
पहला औद्योगिक शहर
 
उनका सबसे बड़ा सपना स्टील का कारख़ाना बनाना था लेकिन वह इस सपने के सच होने से पहले ही चल बसे। फिर उनके बेटे दोराबजी ने उनकी मौत के बाद अपने पिता का सपना पूरा किया और सन 1907 में टाटा स्टील ने उत्पादन शुरू कर दिया। इस तरह भारत एशिया का पहला देश बन गया, जहां स्टील का कारख़ाना बना था। इस कारख़ाने के पास एक शहर आबाद हुआ जिसे जमशेदपुर का नाम दिया गया। आज यह भारत की स्टील सिटी के नाम से जाना जाता है।
 
जमशेद जी ने अपने बेटे दोराब को पत्र लिखकर एक औद्योगिक शहर बसाने को कहा था। उन्होंने लिखा था, 'इस शहर की सड़कें चौड़ी होनी चाहिए। इसमें पेड़, खेलों के मैदान, पार्क और धार्मिक स्थलों के लिए भी जगह होनी चाहिए।' टाटा ने किसी क़ानूनी पाबंदी के बिना ख़ुद ही अपने कर्मचारियों के कल्याण के लिए नीतियां बनाईं जिनमें 1877 में पेंशन, 1912 में 8 घंटे काम का समय और 1921 में मां बनने वाली महिलाओं के लिए छूट देना शामिल हैं।'
 
पहली हवाई सेवा
 
टाटा परिवार के एक और सदस्य जहांगीर टाटा 1938 में 34 साल की उम्र में कंपनी के चेयरमैन बने और लगभग आधी सदी तक इस पद पर बने रहे। उन्हें उद्योगपति बनने से अधिक पायलट बनने का शौक़ था, जो उन्हें लुईस ब्लेराइट से मिलने के बाद पैदा हुआ था, जो इंग्लिश चैनल पर करने वाले पहले पायलट थे।
 
जेआरडी बॉम्बे फ़्लाइंग क्लब से भारत में पायलट की ट्रेनिंग करने वाले पहले व्यक्ति थे। उनके हवाई लाइसेंस का नंबर 1 था जिस पर उनको बहुत गर्व था। उन्होंने भारत की पहली हवाई डाक सेवा शुरू की। उस उड़ान में अक्सर डाक के साथ यात्रियों को भी ले जाया जाता था। बाद में यही डाक सेवा भारत की पहली एयरलाइन 'टाटा एयरलाइन' बन गई जिसका कुछ समय बाद नाम बदलकर 'एयर इंडिया' कर दिया गया।
 
बाद में 'एयर इंडिया' को सरकार ने अपने स्वामित्व में ले लिया लेकिन एक बार फिर टाटा ने उस कंपनी को सरकार से ख़रीद लिया है। एयर इंडिया वापस लेने के बाद अब टाटा संस के पास तीन एयरलाइंस हैं। एयर इंडिया के अलावा 'एयर विस्तारा' है जिसमें उनकी सिंगापुर एयरलाइंस के साथ साझेदारी है। उनकी एक और कंपनी 'एयर एशिया' है जिसमें मलेशिया के साथ साझेदारी है।
 
एयर इंडिया का स्वामित्व दोबारा लेने पर टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखर ने अक्टूबर सन 2021 में एक बयान जारी करते हुए उसे एक 'ऐतिहासिक पल' बताया था और कहा था कि देश की प्रमुख एयरलाइंस का मालिक बनना गर्व की बात है।
 
चंद्रशेखर ने अपने बयान में यह भी कहा था, 'हमारी कोशिश होगी कि एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की एयरलाइंस चलाई जाए जिसपर भारत को गर्व हो।' उन्होंने कहा, 'महाराजा (एयर इंडिया का प्रतीक चिन्ह) की वापसी जेआरडी टाटा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी जिन्होंने भारत में वायु सेवा की शुरुआत की।'
 
कम्प्यूटर की दुनिया में क़दम
 
भारत सरकार ने इससे पहले टाटा ग्रुप के प्रमुख जेआरडी टाटा को एयर इंडिया के चेयरमैन बना दिया और वह 1978 तक इस पद पर बने रहे। इसके बाद से उस पद पर भारत सरकार के पदाधिकारी रहने लगे। 1968 में उन्होंने अपने परिवार की परंपरा को बरक़रार रखते हुए एक ऐसे कारोबार की शुरुआत की, जो उस समय केवल विकसित देशों में पाया जाता था। यह कारोबार कम्प्यूटर से संबंधित था।
 
'टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़' या 'टीसीएस' नाम की यह कंपनी दुनियाभर में सॉफ़्टवेयर सप्लाई करती है। इस समय टाटा ग्रुप में सबसे अधिक लाभ कमाने वाली कंपनियों में से एक है। सन 1991 में उनके एक दूर के रिश्तेदार रतन टाटा ने कंपनी की बागडोर संभाली और उनके नेतृत्व में टाटा ने दुनिया भर में अपने कारोबार को बढ़ाया। टाटा ने टेटली चाय, एआईजी इंश्योरेंस कंपनी, बॉस्टन में रिट्ज कार्लटन, दाएवू की भारी गाड़ियां बनाने वाली यूनिट और कोरस स्टील यूरोप जैसी कंपनियां ख़रीदीं।
 
आज का टाटा और कामयाबी का राज़
 
टाटा संस टाटा कंपनियों की मूल पूंजी निवेश होल्डिंग कंपनी और प्रमोटर है। टाटा संस के इक्विटी शेयर कैपिटल का 66 फ़ीसद परोपकारी लोगों के पास है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी पैदा करने और कला-संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग करते हैं।
 
हमने टाटा कंपनी कॉर्पोरेट कम्यूनिकेशन से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात न हो सकी। हालांकि टाटा कंपनी ने अभी कंपनी की संपत्ति के आंकड़े नहीं बताए हैं लेकिन 31 जुलाई सन 2023 तक उन्होंने अपनी संपत्ति 300 अरब डॉलर बताई थी और यह भी बताया था कि कंपनी में दुनिया भर में दस लाख से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। कंपनी के अनुसार टाटा कंपनी या एंटरप्राइज़ अपने-अपने बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स के नेतृत्व और निगरानी में स्वतंत्र रूप से काम करती है।
 
हमने टाटा की इस ज़बर्दस्त कामयाबी के बारे में आर्थिक विशेषज्ञ शंकर अय्यर से बात की तो उन्होंने कहा, 'अंबानी या अदानी के नाम इसलिए आता है कि उनकी कंपनियां व्यक्तिगत हैं जबकि टाटा विभिन्न कंपनियों का समूह है और एक ट्रस्ट के तहत चलता है इसलिए उसकी चर्चा उस तरह से नहीं होती है।'
 
उन्होंने फ़ोन पर बात करते हुए कहा कि हालांकि वह कॉर्पोरेट दुनिया में इस तरह की तुलना को सही नहीं मानते लेकिन टाटा कंपनी भारत में कई मामलों में जननी की हैसियत रखती है।
 
ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी जीई इंडिया में अल्स्टोम इंडिया के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर और अब हायोसंग इंडिया लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर नागेश तलवानी ने बीबीसी से फ़ोन पर बात की। उन्होंने कहा, 'टाटा की तरक़्क़ी की बड़ी वजह उसकी नैतिक, न्यायपूर्ण और पारदर्शी व्यवस्था है, जो कर्मचारी के साथ मज़बूत संपर्क पैदा करता है।'
 
तलवानी ने कुछ बिंदुओं के साथ टाटा की विशेषताएं बताईं। उनके अनुसार, टाटा के पास पूंजी निवेश के प्रति स्पष्ट दृष्टिकोण और रणनीति है, उसका अच्छा उदाहरण स्टारबक्स, क्रोमा कॉन्सेप्ट और जैगुआर ब्रैंड आदि को ख़रीदना है। 'वह किसी 'बकवास' दृष्टिकोण से बचते हैं और उनकी चुपचाप, बिना किसी शोर-शराबा के पूरे ध्यान से काम करने की कोशिश रहती है।'
 
उन्होंने कहा कि टाटा ने कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी के तहत ब्रैंड की समझदारी भरी पोज़िशनिंग की है। 'इसकी वजह से देश भर के उपभोक्ता उनसे जुड़े हुए हैं और वह ख़ुद को सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि उनके लिए यह ब्रैंड भरोसेमंद और ईमानदार है।'
 
उन्होंने कहा कि उनकी तरक़्क़ी का एक और महत्वपूर्ण बिंदु भावनात्मक और अनुचित कारोबारी फ़ैसलों से बचना और ख़तरे को संतुलित करने के लिए पोर्टफ़ोलियो में बदलाव और बेहद स्पष्ट गवर्नेंस है। 'उनके पास सप्लाई चेन की प्रभावी व्यवस्था है और वह अपने कर्मचारियों के कल्याण का पूरा ध्यान रखते हैं।'
 
टाटा पॉवर में नई दिल्ली के प्रोजेक्ट मैनेजर विवेक नारायण ने कहा कि शुरू में जैगुआर को लेने के फ़ैसले को मार्केट में अच्छा फ़ैसला नहीं बताया जा रहा था, लेकिन बाद में यह बहुत कामयाब साबित हुआ। इसी तरह अभी हाल में टाटा ने इंडियन एयरलाइंस को वापस हासिल किया है लेकिन अभी उसकी दिशा व गति का ख़ाका पेश करना मुश्किल है।
 
उन्होंने कहा कि टाटा की कामयाबी की गारंटी इसकी विविधता है। वह जिस क्षेत्र में भी काम करता है उसमें सकारात्मक माहौल लाने की कोशिश करता है।

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