कंप्यूटर की दुनिया में पहले अधिकतर टेक्स्ट कंटेंट हुआ करते थे जिन्हें कीबोर्ड पर टाइप किया जाता था। इंटरनेट ने दुनिया को एक छोटे से डिब्बे में समेटना शुरू कर दिया। फिर आया मोबाइल युग जो अपने साथ लाया कैमरे।
मोबाइल की वजह से पूरी दुनिया में इंटरनेट बहुत अधिक देखा जाने लगा। हाल में जब इंटरनेट की स्पीड पहले से और तेज़ हुई तो यहां सबसे अधिक वीडियोज़ देखे जाने लगे।
हम डेस्कटॉप से वेब से मोबाइल और टेक्स्ट कंटेंट से फ़ोटो से वीडियो की दुनिया तक पहुंचे। लेकिन क्या ये इस टेक्नोलॉजी का अंत है? या इसके आगे भी कुछ हो सकता है?
फ़ेसबुक के जनक मार्क ज़करबर्ग ने हाल ही में इसका जवाब मेटावर्स के रूप में दिया है। उनके मुताबिक मोबाइल इंटरनेट की अगली पीढ़ी मेटावर्स बनेंगे।
ऑग्मेंटेड रियलिटी
ये मेटावर्स क्या हैं, जिसे फ़ेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां बनाने में जुटी हैं। और इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था को कैसे फायदा पहुंच सकता है? तो सबसे पहले ये बता दें कि मेटावर्स वर्चुअल रियलिटी के बाद की दुनिया यानी ऑग्मेंटेड रियलिटी पर आधारित हैं। विभिन्न संसाधनों और कंपनियों के सहयोग से इन्हें बनाने में कई वर्ष लग सकते हैं।
तो वस्तुओं और सेवाओं के ज़रिए अर्थव्यवस्था के विकास के लिए जब उस तरह के संसाधनों की ज़रूरत पड़ेगी जो मौजूद नहीं हैं, तो संभव है कि नई कंपनियां भी बनेंगी।
क्रांतिकारी बदलाव
जानकार इस बात पर एकमत हैं कि कोई एक कंपनी पूरे साइबर वर्ल्ड को बनाने और उसे बनाए रखने में सक्षम नहीं होगी। ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस का अनुमान है कि 2024 तक मेटावर्स का बाज़ार 800 बिलियन डॉलर तक का हो जाएगा।
बैंक ऑफ़ अमेरिका ने मेटावर्स को उन 14 टेक्नोलॉजी में शामिल किया है जो हमारी ज़िंदगी में क्रांतिकारी बदलाव लाने जा रही हैं।
हाल ही में बैंक ऑफ़ अमेरिका थीमैटिक रिपोर्टः द 14 टेक्नोलॉजी दैट विल रिवोल्यूशनाइज़ ऑर लाइव्स में जानकारों ने लिखा, "मेटावर्स में अनगिनत वर्चुअल वर्ल्ड होंगी और ये एक दूसरे को वास्तविक दुनिया से जोड़े रखेंगी।"
"लंबे समय से चल रही इंडस्ट्री और मार्केट जैसे कि- फाइनैंस और बैंकिंग, रिटेल और एजुकेशन, हेल्ट और फिटनेस के साथ-साथ एडल्ट बिजनेस में भी इससे बदलाव आएगा तो आप काम पर हों या फुरसत में इनकी मौजूदगी होगी और ये अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएंगी।"
कई तकनीक के जनक और 2012 से गूगल के इंजीनियरिंग डायरेक्टर अमेरिका के रेमंड कुर्ज़वेल कहते हैं, "इस दशक के अंत में, यानी 2030 में, हम वास्तविक दुनिया के बजाय मेटावर्स में अपना अधिक समय गुजारेंगे।"
दुनिया में इस जैसी चीज़ें पहले से मौजूद
वैसे बात ये भी सच है कि यह पूरी तरह से नई चीज़ भी नहीं है। बहुतेरे ऑनलाइन वीडियो गेम्स में वर्चुअल वर्ल्ड का दशकों से इस्तेमाल चला आ रहा है। वे मेटावर्स तो नहीं है लेकिन उनकी कई चीज़ें मेटावर्स से मिलती हैं।
विश्लेषण और निवेश कंपनी विस्डम ट्री में डिजिटल एसेट के निदेशक बेंजामिन डीन कहते हैं, "मेटावर्स नए नहीं हैं। नया है इसमें किया जा रहा निवेश और लोगों के बीच डिजिटल चीज़ों की बढ़ती स्वीकार्यता।"
वे कहते हैं, "टेक्नोलॉजी बहुत तेज़ी से बदल रही है। हाल के वर्षों में औद्योगिक देशों की अधिकांश आबादी (50 फ़ीसद से ज़्यादा) को अब ये याद नहीं है कि इंटरनेट के युग से पहले का जीवन कैसा था। ये बड़े बदलाव आते रहेंगे, ख़ास कर उन देशों में जहां स्मार्टफ़ोन हर जगह मौजूद हैं और उन्हें इस्तेमाल करने वालों की औसत आयु बाकियों से कहीं कम है।"
उन्होंने कहा, "मैंने एक दशक पहले इसे वर्चुअलाइजेशन ऑफ़ वर्ल्ड का नाम दिया था।"
मार्क ज़करबर्ग के मुताबिक "मेटावर्स की डिजिटल दुनिया में आप तुरंत ही बिना घर से निकले ही दफ़्टर या दोस्त की पार्टी में या फिर अपने माता-पिता के साथ बातचीत के लिए एक कमरे में टेलीपोर्ट हो जाएंगे।"
लेकिन आज जिस वर्चुअल रियलिटी का इस्तेमाल विशेषकर वीडियो गेम्स में होता है मेटावर्स में मनोरंजन, गेम्स, कॉन्सर्ट्स, सिनेमा, काम, शिक्षा जैसी कई अन्य चीज़ों के शामिल होने की उम्मीद है। लिहाजा उन क्षेत्रों में नई कंपनियों और टेक्नोलॉजी भी नई आएंगी।
कन्सर्ट, कंटेंट और मनोरंजन
एरियाना ग्रांड, मार्शमेलो या रैपर ट्रैविस स्कॉट सभी ऑनलाइन वीडियो गेम फोर्टनाइट में देखे जा चुके हैं, जिसमें ये दिखाया गया कि मेटावर्स में कॉन्सर्ट जैसे कार्यक्रमों का भविष्य क्या हो सकता है।
बीते वर्ष अप्रैल में 1।23 करोड़ फैन्स रीयल टाइम में ऑनलाइन मौजूद थे जब ट्रैविस स्कॉट ने किड क्यूडी के साथ लिखे गाने को रिलीज़ किया था।
वाल्ट डिज़नी के सीइओ बॉब चापेक ने बताया कि ये समूह अब अपने थीम पार्कों को वर्चुअल रियलिटी की दुनिया में उतारने की तैयारी कर रहा है।
बैंक ऑफ़ अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक, "जेनेरेशन ज़ेड इस बदलाव को देखेगी, वो मेटावर्स और होलोग्राम्स के इस्तेमाल देखेगी। वो वर्चुअल दुनिया में बड़ी मात्रा में कंटेंट को बनते देखेगी। और इससे इंडस्ट्री को फायदा पहुंच सकता है।"
मूवी इंडस्ट्री (डिजनी), टेलिविज़न (डिस्कवरी चैनल), खेल (फॉक्स स्पोर्स्ट्स), म्यूजिक (यूनिवर्सल म्यूजिक ग्रुप, लाइव नेशन), ओटीटी (नेटफ्लिक्स), न्यूज़पेपर (न्यूयॉर्क टाइम्स) ने थ्रीडी में हाथ आजमाने शुरू कर दिए हैं।
वर्चुअल उपस्थिति
कोविड-19 ने पूरी दुनिया को रोक दिया लेकिन जो नहीं रुका वो है वर्चुअल वर्क यानी आप कहीं भी बैठ कर दफ़्तर का काम कर रहे हों।
फ़ेसबुक में वैसे ही दफ़्तर की परिकल्पना है जहां एक मीटिंग रूम में वर्चुअल बैठकें आयोजित की जाती हैं। और लोग अपने अपने कंप्यूटर या लैपटॉप या टैब या मोबाइल से उसमें भाग लेते हैं। लेकिन ऐसा करने वाला फ़ेसबुक अकेला दफ़्तर नहीं है।
माइक्रोसॉफ़्ट ने हाल ही में माइक्रोसॉफ़्ट टीम के लिए मेटावर्स तैयार करने की बात की है। महामारी के दौरान इस वर्चुअल माध्यम का लोगों ने मीटिंग के लिए बहुत इस्तेमाल किया था।
कंपनी के मुताबिक वो इस वर्चुअल टूल का इस्तेमाल इवेंट्स के आयोजन, बैठकों और नेटवर्किंग के लिए भी करना चाहती है।
कन्सल्टिंग फर्म पीडब्ल्यूसी का कहना है कि वर्चुअल दफ़्तर के माहौल का ट्रेनिंग सेक्टर को बहुत फायदा होगा।
इसके जानकार 2020 की अपनी एक रिपोर्ट में कहते हैं, "पहले से ही कई सेक्टर ने अपने ट्रेनिंग कार्यक्रमों के लिए वर्चुअल रियलिटी के दरवाज़े खोल दिये हैं।"
क्या हैं चुनौतियां?
जानकार इस बात पर एकमत हैं कि मेटावर्स कैसे काम करेंगे ये अभी देखना बाकी है।
आईबीएम के पूर्व इंजीनियर थॉमस फ्रे कहते हैं कि इंटरनेट इन्फ्रास्ट्रक्चर, रीयल टाइम में बड़ी संख्या में लोगों का आपस में बातचीत करना, भाषाई बाधाएं और वेब पेज खोलने के लिए क्लिक करने पर इसके लोड होने में लगने वाला समय, ये सब मेटावर्स के लिए मुख्य चुनौतियां हैं।
इसके लिए कंप्यूटर, ग्राफिक कार्ड और वीडियो कहीं अधिक मजबूत बनाने होंगे। फिलहाल इस क्षेत्र में एनवीडीए, एमएमडी और इंटेल जैसी कंपनियां काम कर रही हैं।
उन सभी कंपनियों के लिए जो पहले से माइक्रोचिप बना रही हैं, इन सभी टेक्नोलॉजी को विकसित करने के लिए एक नई कंपनी बनानी पड़ सकती हैं। एक और क्षेत्र हैं जिसमें मेटावर्स से क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है। और ये है शिक्षा का क्षेत्र।
बीओए मेरिल लिंच के स्ट्रैटेजिस्ट मार्टिन ब्रिग्स, हैम इसराइल, फेलिक्स ट्रान लिखते हैं, "मूल विचार, सालों से चले आ रहे पढ़ाने के तरीके से सामंजस्य बिठाना है।"
वो लिखते हैं, "किसी विषय को पढ़ाते वक़्त छात्र कैसे प्रतिक्रिया कर रहे हैं उसके मुताबिक चैप्टर बदले जा सकते हैं- जैसे कि सिर झुकाना या यहां तक कि सो जाना। अतिरिक्त क्विज़, वीडियो और विस्तार से समझाने को इसमें जोड़ा जा सकता है ताकि छात्रों को पढ़ने और चैप्टर समझने में आसानी हो।"
उच्च शिक्षा में वो सभी संकेत मिल रहे हैं कि यूनिवर्सिटी अपने यहां वर्चुअल कैंपस बनाएंगी, जिससे उनके छात्रों की संख्या बढ़ सकती है।
खगोल शास्त्र की पढ़ाई में और मेडिसिन या टेलीकेयर में, कई नई सेवाओं के साथ अनंत संभावनाएं हैं। हेल्थकेयर के क्षेत्र में कोरोना महामारी के दौरान तो देख ही चुके हैं कि किस तरह लोग डिजिटल माध्यम से चिकित्सकीय समाधान तलाश रहे थे।
अमेज़न या लिब्रे मर्काडो जैसी ऑनलाइन कंपनियों ने देखा कि कैसे कोरोना के दौर में उनका कारोबार बहुत अधिक बढ़ गया और बैंक ऑफ़ अमेरिका का मानना है कि मेटावर्स की दुनिया में लोग और भी वर्चुअल ख़रीदारी करेंगे।
बेंजामिन डीन का मानना है कि इन सभी बिजनेस के लिए वैकल्पिक मुद्राएं भी चलन में हो सकती हैं जो डॉलर, यूरो, येन, पेसो जैसी मौजूदा करेंसी से साथ साथ अस्तित्व में रहेंगी।
वे कहते हैं, फिजिकल और वर्चुअल रियलिटी के बीच की रेखा धुंधली हो गई है जो अगले कुछ दशकों तक बनी रहेगी।