राफेल भारत को फ़्रांस से मिल रहा जेट कितना ताक़तवर, कितना ज़रूरी?

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019 (07:58 IST)
टीम बीबीसी हिंदी
वायु सेना दिवस यानी 8 अक्टूबर को भारत को अपना पहला राफेल युद्धक विमान मिलने जा रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसे लेने के लिए फ़्रांस पहुँचे हुए हैं। उन्होंने पेरिस जाने से पहले खुद ट्वीट कर इसकी जानकारी दी थी।
 
भारत को जो राफेल लड़ाकू विमान मिल रहे हैं उसे फ़्रांस की दासॉ कंपनी ने बनाया है और इसकी ख़रीद को लेकर बहुत विवाद भी हुए थे।
 
कब हुआ था समझौता?
साल 2010 में यूपीए सरकार ने ख़रीद की प्रक्रिया फ़्रांस से शुरु की। 2012 से 2015 तक दोनों के बीच बातचीत चलती रही। 2014 में यूपीए की जगह मोदी सरकार सत्ता में आई।
 
सितंबर 2016 में भारत ने फ़्रांस के साथ 36 राफेल विमानों के लिए करीब 59 हज़ार करोड़ रुपए के सौदे पर हस्ताक्षर किए।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2016 में कहा था, ''रक्षा सहयोग के संदर्भ में 36 राफेल लड़ाकू विमानों की ख़रीद को लेकर ये खुशी की बात है कि दोनों पक्षों के बीच कुछ वित्तीय पहलुओं को छोड़कर समझौता हुआ है।''
 
क्या है विवाद?
सितंबर 2016 में हुई इस डील को लेकर कांग्रेस ने दावा किया था कि यूपीए सरकार के दौरान एक राफेल फाइटर जेट की कीमत 600 करोड़ रुपये तय की गई थी लेकिन मोदी सरकार के दौरान जब डील को अंतिम रूप दिया गया तो उसके मुताबिक प्रत्येक राफेल करीब 1600 करोड़ रुपये का पड़ेगा।
 
राफेल की ख़रीद में अनियमितता का आरोप लगाते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा के साथ साथ वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भारत की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट में इस डील को लेकर स्वतंत्र जांच की याचिकाएं दायर कीं लेकिन दिसंबर 2018 में इस डील से संबंधित दायर सभी याचिकाओं को कोर्ट ने ख़ारिज करते हुए कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग ठुकरा दी थी।
 
हालांकि इन्होंने फिर पुनर्विचार याचिका दायर। इसमें कहा गया कि कोर्ट के फ़ैसले में कई सारी तथ्यात्मक ग़लतियां हैं। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला सरकार से मिले एक सीलबंद लिफाफे में दी गई ग़लत जानकारी पर आधारित है जिस पर किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर भी नहीं हैं।
 
राफेल की कीमत, उसकी संख्या और अन्य अनियमितता को लेकर चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था, "कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो निर्धारित की गई राफेल कीमत की तुलना करे। हमने मामले की अध्ययन किया, रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत की, हम निर्णय लेने की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं।"
 
कोर्ट ने ये भी कहा कि "हम इस फ़ैसले की जांच नहीं कर सकते कि 126 राफेल की जगह 36 विमान की डील ही क्यों की गई। हम सरकार से ये नहीं कह सकते कि आप 126 राफेल ख़रीदें।"
 
लेकिन रक्षा विशेषज्ञ मारुफ़ रज़ा कहते हैं कि राफेल भारत को मिला है ये सबसे बेहतरीन फाइनेंशियल डील है।
 
मारुफ़ रज़ा कहते हैं, "भारतीय सेना में कोई भी नया हथियार लिया जाता है उसे बहुत जांच परख कर लिया जाता है। लंबे वक्त तक जांचने के बाद ही सेना उसे ख़रीदने की सलाह देती है। राफेल के मुक़ाबले का कोई युद्धक विमान पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में ही नहीं है। चाहे चीन हो या पाकिस्तान या अन्य कोई देश। यही वजह है कि इसे लेकर बहुत प्रोपगैंडा भी हुआ। साथ ही उसकी ख़रीद को लेकर बहुत विवाद हुआ लेकिन कोई भी अब तक साबित नहीं हो सका।"
 
'नाकाफ़ी हैं 32 विमान'
एक ओर मारुफ़ रज़ा कहते हैं कि भारत 16-16 विमानों के जो दो स्क्वाड्रन ख़रीद रहा है उससे उसकी रक्षा ज़रूरतें पूरी हो जाएंगी तो दूसरी तरफ़ रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी की राय उनसे उलट है। उन्होंने बीबीसी को बताया था कि भारत के लिए इतने विमान नाकाफ़ी हैं।
 
वे कहते हैं कि राफेल से भारतीय एयर फ़ोर्स की ताक़त तो ज़रूर बढ़ेगी, लेकिन इसकी संख्या बहुत कम है। उनके अनुसार 36 राफेल अंबाला और पश्चिम बंगाल के हासीमारा स्क्वाड्रन में ही खप जाएंगे।
 
वो कहते हैं, ''दो स्क्वाड्रन काफ़ी नहीं हैं। भारतीय वायु सेना की 42 स्क्वाड्रन आवंटित हैं और अभी 32 ही हैं। जितने स्क्वाड्रन हैं उस हिसाब से तो लड़ाकू विमान ही नहीं हैं। हमें गुणवत्ता तो चाहिए ही, लेकिन साथ में संख्या भी चाहिए। अगर आप चीन या पाकिस्तान का मुक़ाबला कर रहे हैं तो आपको लड़ाकू विमान की तादाद भी चाहिए।''
 
राफेल की क्षमता पर कोई शक नहीं
भारतीय वायु सेना ने राफेल को एक बेहतरीन लड़ाकू विमान बताते हुए कहा था कि इसमें ज़बरदस्त क्षमताएं हैं।
 
मारुफ रज़ा कहते हैं कि राफेल की जो ख़ासियत है उसकी बदौलत उसे फोर्स मल्टीप्लायर कहा जा सकता है। वे बताते हैं कि राफेल की फ्लाइंग रेंज आम युद्धक विमानों और हथियारों से कहीं ज़्यादा है।
 
रज़ा कहते हैं, "उसकी मिसाइल 300 किलोमीटर की दूर से फ़ायर की जा सकती हैं जो अपने टारगेट को बिल्कुल हिट करेंगी। राफेल की ऑपरेशनल उपलब्धता 65 से 70 फ़ीसदी तक है जबकि सुखोई की पचास फ़ीसदी। इसका मतलब यह हुआ कि सुखोई के आधे विमान किसी भी समय मेंटेनेंस में हो सकते हैं।"
 
वे कहते हैं, "यह मल्टी रोल नहीं, ओमनी रोल वाला विमान है। पहाड़ी जगहों पर छोटी जगहों पर उतर सकता है। चलती हुई एयरक्राफ़्ट कैरियर पर समुद्र में उतर सकता है।"
 
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