सऊदी अरब में हज का फ़र्ज़ अदा करने के दौरान भारी गर्मी और सुविधाओं की कमी की वजह से 'सैकड़ों' हाजियों की मौत के बाद प्रशासन को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने विभिन्न देशों के विदेश मंत्रालय और दूसरे सूत्रों से मिलने वाली जानकारी के आधार पर कम से कम 562 लोगों की मौत का दावा किया है जबकि एएफ़पी के अनुसार मरने वालों की संख्या लगभग एक हज़ार है। इनमें से अधिकतर मिस्र के नागरिक हैं।
पाकिस्तान हज मिशन के डायरेक्टर अब्दुल वहाब सूमरो के अनुसार कम से कम 35 पाकिस्तानी हज यात्रियों की भी जान गई है।
बीबीसी से बात करते हुए उनका कहना है कि इनमें से 26 लोगों की मौत हज से पहले मक्का में हुई जबकि बाक़ी की मौत हज की रस्में पूरी करने के दौरान हुई। हालांकि उन्होंने उन लोगों की मौत की वजह के बारे में बहुत जानकारी नहीं दी।
बीबीसी ने पाकिस्तान हज यात्रियों की ओर से सुविधाओं की कमी और अव्यवस्था की शिकायत पर पाकिस्तान हज मिशन से संपर्क किया लेकिन उनकी ओर से अब तक कोई जवाब नहीं दिया गया।
सऊदी अरब की ओर से अभी तक मौत के आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं। याद रहे कि पिछले 30 साल के दौरान सऊदी अरब में हज के दौरान भगदड़ मचने, टेंटों में आग लगने और दूसरी दुर्घटनाओं में सैकड़ों लोगों की मौत हुई है।
सऊदी प्रशासन के अनुसार इस साल लगभग 18 लाख लोगों ने हज का फ़र्ज़ अदा किया जिनमें से 16 लाख विदेशी थे।
कई देशों के हज यात्रियों की मौत
समाचार एजेंसी एएफ़पी ने 2 अरब राजनयिकों से मिली जानकारी के बाद दावा किया है कि हज के दौरान भीषण गर्मी के कारण सैकड़ों लोगों की जान गई है जिनमें से अधिकतर का संबंध मिस्र से है।
एएफ़पी ने दावा किया के अधिकतर मौत गर्मी के कारण हुई और मरने वालों में 323 लोगों का संबंध मिस्र जबकि 60 जॉर्डन के थे।
रॉयटर्स ने मिस्र की मेडिकल टीम से मिली जानकारी के आधार पर बताया कि मरने वाले अक्सर मिस्र रजिस्टर्ड नहीं थे, जिसकी वजह से उन्हें अधिक गर्मी में सड़कों पर रहना पड़ा।
ओमान ने सरकारी स्तर पर अब तक 41 हज यात्रियों, ट्यूनीशिया ने 35 और जॉर्डन ने हज के दौरान अपने छह नागरिकों की हीट स्ट्रोक से मौत की पुष्टि की है।
बीबीसी की अरबी सेवा के अनुसार विदेश मंत्रालय और जॉर्डन के विदेशी मामलों के कार्यालय की ओर से जॉर्डन के मरने वाले 41 हज यात्रियों को उनके परिवार वालों की इच्छा पर मक्का में दफ़न करने की इजाज़त दी गई है। साथ ही यह भी बताया गया कि यह हज यात्री जॉर्डन की ओर से भेजे गए सरकारी दल में नहीं थे।
जॉर्डन के दूतावास ने यह भी कहा है कि जॉर्डन के और 106 में से 84 हज यात्री अब तक लापता हैं।
फ़्रांस के 'ले मोंदे' अख़बार ने 19 जून को दावा किया था कि इंडोनेशिया के 136 नागरिक हज के दौरान मारे गए जिनमें से तीन की मौत की वजह हीट स्ट्रोक थी।
ध्यान रहे कि सऊदी प्रशासन ने सोमवार के दिन मक्का में इस साल हज संपन्न होने के साथ तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ने के बारे में सावधान किया था।
रविवार को मंत्रालय ने ऐसे 2764 मरीज़ों के बारे में बताया जिनकी हालत गर्मी और निर्देशों को न मानने से ख़राब हुई। सऊदी अरब के सरकारी टीवी चैनल के अनुसार सोमवार के दिन मक्का में तापमान 51.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया।
समाचार एजेंसी रायटर्स के अनुसार परिवार के लोग अब भी सऊदी अस्पतालों में लापता रिश्तेदारों को तलाश कर रहे हैं।
'जानवरों जैसा बर्ताव किया गया'
बीबीसी ने पाकिस्तान से सरकारी और प्राइवेट चैनल से हज करने वाले लोगों से बात करके वहां के हालात और व्यवस्था के बारे में जानने की कोशिश की है।
इस्लामाबाद से संबंध रखने वाली 38 वर्षीय आमना (असली नाम नहीं) अपने पति के साथ सरकारी चैनल से हज यात्रा करने वालों में शामिल हैं। वह हज की व्यवस्था से दुखी हैं। वह कहती हैं, 'मुझे बहुत मायूसी हुई।'
मक्का से बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने बताया, 'इसमें शक नहीं कि इमारतों में रहना, खाना सब बहुत अच्छा है, ट्रांसपोर्ट मिल जाती है लेकिन हम यहां हज की अहम रस्मों को निभाने आये थे। मगर उन दिनों में उन्होंने हमारे साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया।'
उनके अनुसार मई में गुज़ारे गए दिन दर्दनाक थे। 'उस दौरान एक तंबू में 800 लोग रखे गए थे और तंबुओं में हज अदा करने के लिए मौजूद लोगों के लिए बहुत कम वॉशरूम थे।'
टेंटों की अंदरूनी हालात के बारे में आमना बताती हैं, 'मक्का की गर्मी में वहां एसी की व्यवस्था थी ही नहीं, जो कूलर लगाए गए उनमें अक्सर पानी ही नहीं होता था।'
'उन तंबुओं में इतनी घुटन थी कि हम पसीने से सराबोर रहते और हमारा बुरा हश्र रहता था।'
आमना के अनुसार सऊदी सरकार की ओर से की गई व्यवस्था नाकाफ़ी थी और शिकायत करने पर अधिकारी सुनते ही नहीं थे, 'उनसे बात करना ऐसा है, जैसे दीवार से सर टकराना।'
आमना ने हज के दौरान अव्यवस्था के बारे में बात करते हुए कहा कि मुज़्दलफ़ा एक अंधेरी कोठरी की तरह था जहां न बिजली थी, न पानी।
'इतनी बदइंतज़ामी थी कि अरबों का जब दिल चाहता दरवाज़े बंद कर देते, जब दिल चाहता दरवाज़े खोल देते।'
वह बताती हैं कि वहां पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश के लोगों को जो जगह दी गई थी वह पहाड़ों के बीच गहराई में थी और वहां लोग घुटन का शिकार हुए।
आमना बताती हैं कि इतनी गर्मी में कुछ लोग वॉशरूम के बाहर सोने पर भी मजबूर हुए।
वह ख़ुद मुज़्दलफ़ा में दम घुटने का शिकार हुईं और उनकी हालत बहुत ख़राब हो गई।
वो कहती हैं, 'पूरी रात मैंने कैसे गुज़ारी, यह मैं या मेरा रब जानता है। पूरी रात मेरे शौहर मुझे पंख से हवा देते रहे। मैं केवल यह दुआ करती रही कि अल्लाह मियां बस फ़जर (सूरज निकलने से पहले) की नमाज़ पढ़ कर मैं यहां से निकल जाऊं।'
सऊदी अधिकारियों को लेकर क्या कहा
आमना बताती हैं कि जो लोग मिना से वापस आए हैं, उन्हें वापसी में कई घंटे लगे हैं और उन थके हारे हाजियों को ठहरने की जगह के पास तक नहीं पहुंचाया गया, 'ड्राइवर को रास्ते नहीं मालूम थे। उन्होंने गाड़ियां और एसी बंद कर दी।'
वह कहती हैं कि एक किलोमीटर के लिए टैक्सियों का किराया बहुत अधिक है, मिना से मक्का तक टैक्सी वाले 2000 रियाल मांग रहे थे।
फ़र्स्ट एड के बारे में उनका कहना है की गाड़ियां तो वह लेकर घूमते हैं लेकिन उन्हें ड्रिप तक लगाना नहीं मालूम।
आमना बताती हैं कि उनके ग्रुप में एक शख़्स कलेस्ट्रोफ़ोबिक (जिन्हें अधिक भीड़ वाली जगह पर घबराहट होती है) थे। 'जमरात में भीड़ देखकर उनकी सांस उखड़ने लगी तो हमने उनके लिए मदद मांगी मगर ऐसा लगा जैसे सऊदी अधिकारी मरीज़ का मतलब तक नहीं समझते।'
वह बताती हैं कि उन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत थी और जमरात में तो इमर्जेंसी सुविधा थी मगर वापसी पर उनकी हालत फिर ख़राब हो गई।
वो बताती हैं, 'हम सड़क किनारे बैठे सऊदी से एंबुलेंस मांग रहे थे, मगर वह बस यही कहते रहे 'बुलाते हैं, बुलाते हैं'। आख़िर में एक एंबुलेंस आई और डॉक्टर ने 2 सेकंड भी नहीं देखा और बोला 'उन्हें कुछ नहीं हुआ' और चला गया।'
आमना कहती हैं कि 25 मिनट से अधिक समय गुज़र गया तो 'हमने उन्हें धमकाया कि हम वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर बताएंगे कि तुम हाजियों से कैसा बर्ताव कर रहे हो तो उन्होंने वीडियो भी नहीं बनाने दिए और फिर बहुत देर बाद उन्हें एक एंबुलेंस मिली।'
वह कहती हैं, 'सऊदी अधिकारी न आपका एहसास करते हैं, न मदद।'
आमना का कहना है कि अराफ़ात में पाकिस्तानियों के तंबू सबसे आख़िर में थे। वहां लिखा था, 'यह अराफ़ात का अंतिम छोर है।' उनका कहना है कि अराफ़ात में चलना बहुत पड़ता था लेकिन वहां की व्यवस्था अच्छी थी।
उन्होंने बताया, 'मैंने 25 दिन का साढ़े ग्यारह लाख अदा किया और यह कोई छोटी रक़म नहीं। मेरे जैसे हाजी वॉलिंटियर का ख़र्च भी अदा करते हैं, मगर वह बस बिल्डिंग की रिसेप्शन में बैठे रहते हैं। हज की रस्म शुरू होने के बाद के दिनों में एक भी मदद के लिए मौजूद नहीं था और वह बस यही कहते हैं कि सब कुछ सऊदी सरकार के ज़िम्मे है।'
वह कहती हैं, 'जितनी अव्यवस्था देखी और जिस तरह पाकिस्तानियों से बर्ताव देखा, इसके बाद मैं कभी किसी को सरकारी तौर पर हज करने की राय नहीं दूंगी।'
7 किलोमीटर के रास्ते पर न छांव था न पानी
इस साल हज के सिलसिले में सऊदी अरब में मौजूद हमीरा कंवल ने बताया, 'जब हमें मिना से अराफ़ात के मैदान में ले जाया गया, उस दिन हमें हाजियों की मौत की ख़बरें मिलनी शुरू हो गईं और यह मालूम हुआ कि मौत गर्मी से हो रही है। वहां बने कैंपों में बैठने की जगह बहुत थोड़ी सी थी। हज का ख़ुतबा (प्रवचन) सुनने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी और भारी गर्मी में लोगों को बाहर बैठना पड़ा या अंदर जगह पाने के लिए लड़ाई झगड़ा करना पड़ा।'
मक्का से बीबीसी से बात करते हुए हमीरा बताती हैं कि मुज़्दलफ़ा में रात आसमान के नीचे गुज़ारनी होती है लेकिन वहां पाकिस्तान समेत दूसरे बहुत से देश के हज यात्रियों को एक ट्रेन के पुल के नीचे गंदगी से भरी जगह पर ले जाया गया।
अगली सुबह उन्हें ट्रेन के ज़रिए जमरात की ओर ले जाया गया लेकिन वहां से वापसी की यात्रा बहुत तकलीफ़ वाली थी।
हमीरा कहती हैं, 'हमें 7 किलोमीटर लंबे रास्ते पर चलाया गया जहां न पानी था, न कोई साया और बहुत से हज यात्रियों की तबीयत उसे जगह पर ख़राब हुई।'
हमीरा का कहना था कि सऊदी सरकार की गाड़ियां मौजूद तो थीं लेकिन वह बीमार और गर्मी से बेहोश होने वाले हज यात्रियों के लिए इस्तेमाल में नहीं लाई जा रही थीं।
'कैंपों में लोगों को ऐसे रखा गया था, जैसे किसी फ़ॉर्म में मुर्ग़ियों या जानवरों को साथ-साथ रखा जाता है। बिस्तरों के बीच गुज़रने की जगह तक नहीं थी और सैकड़ों लोगों के लिए गिनती के कुछ वॉशरूम थे।'
लेकिन वह कहती हैं कि आप किसी से शिकायत नहीं कर सकते थे, न ही मदद ले सकते हैं।
हमीरा के अनुसार यहां एंबुलेंस न होने के बराबर दिखाई दी। लंबे-लंबे रूट पर कोई मददगार न था। अगर कोई मिलता तो वह पुलिस वाला होता जो अंग्रेज़ी भाषा नहीं जानता था।
वह कहती हैं कि भारी गर्मी में जब लू चल रही होती थी तो हज यात्रियों को कई घंटों पैदल केवल इसलिए चलना पड़ता था क्योंकि शॉर्ट रास्ते की तरफ़ पुलिस ने रुकावटें खड़ी कर रखी थीं।
हमीरा बताती हैं कि 19 जून को मिना से जमरात तक जाने और आने में उन्हें 26 किलोमीटर चलना पड़ा जब कि वह रास्ता 15 मिनट का था जिसे पुलिस ने बंद कर दिया था।
वह कहती हैं कि यहां पुलिस अधिकारी औरत हो या मर्द उस पर हाथ उठाने से भी नहीं परहेज़ करते।
जान बचाने की कोई व्यवस्था नहीं
हमीरा बताती हैं कि हज के इस सफ़र में उन्हें कई देशों के कैंपों के बीच से गुज़रने का मौक़ा मिला और यहाँ सबसे बुरे हालात पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश के कैंपों में दिखाई देते हैं, 'ऐसा लगता है आप सड़ांध भरे माहौल में कूड़े के ढेर पर बैठे हैं।'
वह कहती हैं, 'आज हज का आख़िरी दिन है और मैं यह सोच रही हूं कि जिस मज़हब में सफ़ाई पहली शर्त है, उसके अंदर इतने बड़े फ़र्ज़ की अदायगी में सफ़ाई के मामले को इस तरह नज़रअंदाज़ क्यों किया गया है?'
लेकिन सऊदी कैंप मैनेजर कहते हैं, 'यही है जिससे काम चलाएं। हमारे पास यही सुविधाएं हैं।'
मोहम्मद आला एक प्राइवेट ग्रुप के हज ऑर्गेनाइज़र हैं। बीबीसी से बात करते हुए वह बताते हैं कि यह उनका अठारहवां हज है। वह कहते हैं, 'सऊदी कंट्रोलर हैं, सुविधा पहुंचाने वाले नहीं।'
मोहम्मद आला के अनुसार इस गर्मी में एक आम हाजी को तवाफ़-ए-ज़ियारत (परिक्रमा) के अलावा हर दिन कम से कम 15 किलोमीटर चलना पड़ सकता है जिसमें गर्मी और थकान के साथ इस हीट स्ट्रोक का सामना करना पड़ता है और जगह-जगह पानी भी मयस्सर नहीं होता।
वह बताते हैं कि पहले हज वाली जगहों तक जाने के लिए जो यू टर्न थे, वह खुले थे मगर अब वह सारे रास्ते और यू टर्न बंद कर दिए गए हैं। इसकी वजह से एक आम हाजी को बहुत अधिक पैदल चलना पड़ता है। यहां तक कि अगर उसका कैंप ज़ोन एक में ए कैटिगरी में है, तब भी उसे अपने टेंट तक जाने के लिए नॉर्मल रास्ते से गर्मी में ढाई किलोमीटर पैदल चलना होगा।
मोहम्मद आला कहते हैं कि अगर इस रास्ते पर किसी के साथ इमर्जेंसी हो जाए तो 30 मिनट तक कोई आपके पास नहीं आएगा और कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है कि ज़िंदगी बचाई जा सके।
उन्होंने बताया कि उन्होंने ऐसे वीडियो देखे हैं जिनमें मिस्र के कई नागरिकों की लाशें देखी जा सकती हैं। इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं कि सऊदी ने उमरे के लिए उन्हें जो वीज़ा जारी किया था, उसकी अवधि लंबी थी और इसलिए उन्होंने रुक कर ग़ैर क़ानूनी हज अदा किया।
मोहम्मद आला का कहना है क्योंकि मिस्र के उन नागरिकों ने ग़ैर क़ानूनी ढंग से हज किया तो उनके पास कैंप जैसी कोई सुविधा नहीं थी, इसलिए उन्हें गर्मी में खुले आसमान के नीचे रहना पड़ा।
हज के दौरान मरने वालों को दफ़्न कैसे किया जाता है?
सऊदी अरब में हर साल हज यात्री भारी गर्मी, भीड़ से रौंदे जाने, बीमार होने या सड़क पर हादसों समेत अलग-अलग वजहों से जान गंवाते हैं। ऐसे में मरने वालों की पहचान और उन्हें दफ़्न करने जैसे दूसरे मामलों की ज़िम्मेदारी सऊदी अरब की सरकार उठाती है।
सऊदी अरब के हज क़ानून में साफ़ तौर पर कहा गया है कि अगर कोई शख़्श हज करते हुए जान गंवाता है तो उसकी लाश उसके देश नहीं भेजी जाएगी बल्कि उनको सऊदी अरब में ही दफ़न किया जाएगा।
हर हज यात्री अपने हज आवेदन फ़ॉर्म में वह इस बात की घोषणा करता/करती है कि अगर वह सऊदी अरब की धरती या हवा में जान गंवाता/गंवाती है तो उसकी लाश उसके देश नहीं भेजी जाएगी बल्कि सऊदी अरब में ही दफ़न किया जाएगा। अगर इसके बारे में परिवार में किसी की ओर से आपत्ति जताई जाती है तो उसे नहीं माना जाएगा।
सऊदी अरब में हज के लिए जाने वाले अपने कैंप या सड़क पर या अस्पताल में किसी हादसे में मारे जाते हैं तो उसकी ख़बर सबसे पहले सऊदी अरब में संबंधित देश के हज मिशन को दी जाती है।
कई बार अस्पताल के अधिकारी या आम लोग सीधे हज मिशन को यह जानकारी देते हैं। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसी शख़्स की मौत कहां और कैसे हुई है।
कुछ ज़रूरी जानकारी जैसे मरने वाले का नाम, उम्र, एजेंसी, देश, पहचान कार्ड नंबर और कलाई या गर्दन पर पहचान बैंड से मिल सकती है जो हज के लिए आए सभी लोगों को पहनना ज़रूरी होता है।
इन ज़रूरी जानकारी से लाश की पहचान की जाती है। अगर मरने वाले हाजी के साथ कोई रिश्तेदार या जानने वाला व्यक्ति हो तो वह भी उसकी पहचान करते हैं।
अगर मरने वाले के परिवार वाले सऊदी अरब जाकर मरने वाले का आख़िरी दीदार करना चाहे तो ऐसा संभव नहीं होता लेकिन अगर वह मक्का में मौजूद होते हैं तो उन्हें लाश का अंतिम दर्शन करने और जनाज़े में शामिल होने का मौक़ा मिल जाता है।
लाश की पहचान के बाद किसी मान्यता प्राप्त डॉक्टर का सर्टिफ़िकेट या मौत का सर्टिफ़िकेट पास के अस्पताल, हज ऑफ़िस या मेडिकल सेंटर से लिया जा सकता है।
लाश की पहचान और मौत का सर्टिफ़िकेट जारी होने के बाद उसे नहलाने और दफ़न करने का काम शुरू हो जाता है।
अगर कोई हाजी मक्का, मिना और मुज़्दलफ़ा में ठहरने के दौरान जान गंवा बैठे तो उसकी नमाज़-ए-जनाज़ा मस्जिद अल-हराम या काबा शरीफ़ में अदा की जाती है।
और अगर किसी की मदीना में मौत हो जाए तो मस्जिद-ए-नबवी में नमाज़-ए-जनाज़ा अदा की जाती है। इसके अलावा अगर कोई हाजी जद्दा या किसी और जगह जान गंवाए तो उसकी नमाज़-ए-जनाज़ा स्थानीय मस्जिद में अदा की जाती है।