1962 के भारत-चीन युद्ध में रूस दोनों देशों में से किसी के साथ खड़ा नहीं था। तब सोवियत संघ का पतन नहीं हुआ था और वैचारिक स्तर पर चीन-रूस काफ़ी करीब थे। आज की तारीख़ में जब एक बार फिर से चीन और भारत के बीच तनाव है तब सोवियत संघ कई देशों में बंट चुका है।
1962 के युद्ध में भी रूस के लिए किसी का पक्ष लेना आसान नहीं था और आज जब दोनों देशों के बीच तनाव है तब भी उसके लिए किसी के साथ खड़ा रहना आसान नहीं है। जेएनयू के सेंटर फोर रसियन में प्रोफ़ेसर संजय पांडे ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि 1962 के युद्ध को रूस ने भाई और दोस्त के बीच की लड़ाई कहा था। रूस ने चीन को भाई कहा था और भारत को दोस्त।
ऐसे में रूस के लिए भाई या दोस्त का पक्ष लेना आसान नहीं रहा और वह तटस्थ रहा था। 1962 के युद्ध हुए 55 साल गए। आज जब एक बार फिर से डोकलाम में भारत और चीन की सेना आमने-सामने हैं तो क्या 55 साल बाद भी रूस का वहीं रुख रहेगा? क्या रूस तटस्थ बना रहेगा?
अमेरिका को चीन की चुनौती
जब तक सोवियत संघ रहा तब तक दुनिया दो ध्रुवीय रही। आज की तारीख़ में अमेरिका को चीन कई मोर्चों पर चुनौती दे रहा है। रूस भी सीरिया और यूक्रेन में अपनी भूमिका को लेकर यूरोप और अमरीका के निशाने पर है। दूसरी तरफ़ भारत भी पिछले 10 सालों में अमेरिका के करीब गया है। ऐसे में रूस का रुख क्या होगा?
संजय पांडे कहते हैं, ''अभी दुनिया की जैसी तस्वीर है उसमें रूस चीन की उपेक्षा कर भारत का साथ नहीं दे सकता है। यूक्रेन में हस्तक्षेप के कारण रूस अमेरिका और यूरोप के निशाने पर है तो दूसरी तरफ़ साउथ चाइना सी में सैन्य विस्तार के कारण चीन निशाने पर। इस स्थिति में चीन और रूस एक दूसरे को मौन समर्थन देते हैं।''
साउथ चाइना सी पर रूस चीन के ख़िलाफ़ नहीं बोलता है और यूक्रेन में रूसी हस्तक्षेप पर चीन रूस के विरोध में नहीं बोलता है। संजय पांडे का कहना है कि रूस और चीन आज की तारीख़ में करीब आए हैं। उन्होंने कहा कि मई 2014 में दोनों देशों के बीच 400 बिलियन डॉलर का गैस समझौता हुआ था।
क़रीब आए हैं रूस और चीन
संजय पांडे ने कहा, ''अब रूस से चीन को सैनिक साजो सामान भी मिल रहा है। पहले रूस चीन को सैन्य साजो सामान देने में परहेज करता था। अब वह चीन को उच्चस्तरीय हथियार भी मुहैया करा रहा है। रूस से चीन को सैन्य तकनीक भी मिल रही है। हालांकि रूस कहता आया है कि वह भारत को जितना अत्याधुनिक सैन्य साजो सामान देता है उतना आधुनिक चीन को नहीं देता है।''
उन्होंने कहा कि रूस सुखोई भारत को भी देता है और चीन को भी देता है। पांडे का कहना है कि रूस और चीन के बीच संबंध 21वीं सदी में गहरे हुए हैं। जेएनयू में रूसी सेंटर की प्रोफ़ेसर अर्चना उपाध्याय भी संजय पांडे की बातों से सहमत हैं।
अर्चना ने कहा, ''सोवियत संघ के पतन के बाद से दुनिया बहुत बदल चुकी है। रूस और चीन के बीच आज की तारीख़ में बहुत अच्छे संबंध हैं। अब तो वह पाकिस्तान से साथ भी अपना संबंध बढ़ा रहा है। रूस का मानना है कि अगर भारत अपने हित में अमेरिका और इसराइल से संबंध बढ़ा सकता है तो रूस चीन और पाकिस्तान के करीब क्यों नहीं जा सकता है। उसे हथियार बेचने हैं। अगर भारत इसराइल से हथियार लेगा तो रूस भी पाकिस्तान और चीन से सौदे के लिए करीब जा सकता है।''
आख़िर किसके साथ होगा रूस?
भारत और रूस का संबंध नेहरू के समय से ही भावनात्मक रहा है। प्रोफ़ेसर अर्चना उपाध्याय कहती हैं कि रूस चीन का साथ देकर अपना गुडविल ख़त्म नहीं करना चाहेगा। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के नागरिकों के बीच भावनात्मक संबंध हैं। आज भी भारत रूस से ही 70 फ़ीसदी हथियारों की ख़रीद करता है।
अर्चना उपाध्याय ने कहा, ''रूस कभी नहीं चाहेगा कि दोनों देशों के बीच युद्ध हो। वह यही कहेगा कि दोनों देश विवाद को बातचीत के ज़रिए ख़त्म करें। रूस खुलकर न चीन का समर्थन कर सकता है और न भारत के विरोध में जा सकता है। रूस कभी नहीं चाहेगा कि चीन इस इलाक़े में महाशक्ति बने और उसकी जगह दुनिया के शक्तिशाली देशों में और निचले पायदान पर जाए। यूएन के सुरक्षा परिषद में आज भी रूस भारत का खुलकर समर्थन करता है।
जब रूस ने दी चीन पर परमाणु हमले की धमकी
हालाँकि 1969 आमूर और उसुरी नदी के तट पर रूस और चीन के बीच एक युद्ध भी हो चुका है। प्रोफ़ेसर पांडे ने कहा कि इस युद्ध में रूस ने चीन पर परमाणु हमले की धमकी तक दे डाली थी। इसमें चीन को क़दम पीछे खींचने पड़े थे। उन्होंने कहा कि 2004 में दोनों देशों के बीच समझौते हुए और सेंट्रल एशिया के कई द्वीपों को रूस ने चीन को सौंप दिया।