क्या भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर वो हासिल कर पाये जो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह नहीं कर सके थे? मसलन गुरुवार को चीन और भारत के विदेश मंत्रियों की मॉस्को में हुई बैठक के बाद जिन पाँच बिंदुओं पर दोनों देशों के बीच सहमती बनी है उन्हें भारत के साथ चीन में भी सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है।
चीन से प्रकाशित अंग्रेज़ी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' ने दोनों देशों द्वारा जारी किये गए साझा बयान की चर्चा करते हुए कहा है कि "दोनों देशों के बीच हुई सहमती ना सिर्फ़ सीमा पर उत्तेजना को ठंडा करेगी", बल्कि अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों को लगता है कि 'ये दोनों देशों के नेताओं के बीच मुलाक़ात का रास्ता भी प्रशस्त करेगी।'
दोनों देशों के नेताओं से मतलब साफ है कि 'ग्लोबल टाइम्स' का इशारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तरफ था।
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वाँग यी के बीच गुरुवार को मॉस्को में हुई मुलाक़ात को काफ़ी अहम माना जा रहा है क्योंकि रूस की राजधानी मॉस्को में हो रही 'शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाइज़ेशन' की बैठक के दौरान भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों की भी मुलाक़ात हुई थी।
मगर इस बैठक का 'कोई नतीजा नहीं' निकल पाया था। ये मानना चीन के सामरिक मामलों के विशेषज्ञों का भी है जिनसे 'ग्लोबल टाइम्स' ने बातचीत की है।
जयशंकर ने यह स्पष्ट किया कि भारत 'एलएसी' पर जारी तनाव को और नहीं बढ़ाना चाहता और चीन के प्रति भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
भारत का यह भी मानना है कि भारत के प्रति चीन की नीति में भी किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है।
विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद चीनी विदेश मंत्रालय का भी कहना है कि दो पड़ोसी देश होने के नाते ये बहुत स्वाभाविक है कि चीन और भारत में कुछ मुद्दों पर असहमति है, लेकिन अहम बात ये है कि उन असहमतियों को सही परिपेक्ष्य में देखा जाये।
चीनी विदेश मंत्रालय के हवाले से भारत की समाचार एजेंसी एएनआई ने कहा है कि "चीनी विदेश मंत्री वाँग यी ने कहा कि चीन और भारत के संबंध एक बार फिर दोराहे पर खड़े हैं, लेकिन जब तक दोनों पक्ष अपने संबंधों को सही दिशा में बढ़ाते रहेंगे, तब तक कोई परेशानी नहीं होगी और ऐसी कोई भी चुनौती नहीं होगी जिसको हल ना किया जा सकेगा।"
ये सहमती भी बनी की दोनों देशों के बीच जो मतभेद हैं वो विवाद का रूप ना लें।
'कन्सल्टेशन, कोऑर्डिनेशन और वर्किंग मैकेनिज़्म'
विदेश मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि विदेश मंत्रियों की बैठक और दोनों देशों द्वारा पाँच बिन्दुओं को लेकर बनी सहमती की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि चीन की सेना यानी 'पीपल्स लिबरेशन आर्मी' भारत चीन की सीमा पर क्या करती है।
बैठक में ये भी सहमती बनी कि भारत-चीन मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच 'स्पेशल रिप्रेज़ेन्टेटिव मेकेनिज़्म' के ज़रिए बातचीत जारी रखी जाए। साथ ही सीमा मामलों में 'कन्सल्टेशन' और 'कोऑर्डिनेशन' पर 'वर्किंग मैकेनिज़्म' के तहत भी बातचीत जारी रखी जाए।
जोशी कहते हैं कि 'स्पेशल रिप्रेज़ेन्टेटिव मैकेनिज़्म' के तहत दोनों देशों के बीच कुल 22 बैठकें हो चुकी हैं। आखरी बैठक इस साल के जुलाई माह में हुई जब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने चीनी विदेश मंत्री वाँग यी के साथ एक आपात बैठक की थी।
उस दौरान भी भारत के विदेश मंत्रालय ने जो बयान जारी किया था उसमे काफ़ी सकारात्मकता थी। उम्मीद की जा रही थी कि चीन और भारत के बीच सीमा पर तनाव कम हो जाएगा। मगर हालात ख़राब होते चले गए।
दोनों देशों के बीच ये भी तय हुआ था कि चरणबद्ध तरीक़े से दोनों ही देशों की सेना सीमा पर उलझना बंद करेगी। ये बैठक तब हुई थी जब लद्दाख़ की गलवान घाटी में चीन और भारत की सेना के बीच हुई झड़प में भारत के 20 जवान मारे गए थे।
विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वाँग यी की मुलाक़ात के बाद जारी किये गए साझा बयान के बिंदु कमोबेश वही थे जो बयान वर्ष 2019 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई मुलाकातों के बाद जारी किया गया था।
उस दौरान भी संकल्प लिया गया था कि दोनों ही देश आपसी मतभेदों को विवाद नहीं बनने देंगे।
'जब तक मोदी-जिनपिंग नहीं मिलते, विवाद ख़त्म नहीं होगा'
जोशी कहते हैं कि जयशंकर और वांग यी के बीच हुई सहमती का सारा दारोमदार चीन की सेना पर टिका है, लेकिन वो कहते हैं कि इस बैठक के बाद चीनी मीडिया में जो छापा जा रहा है उससे संकेत मिलते हैं कि दोनों देशों के बीच हालात बेहतर होने की दिशा में आगे बढ़ते हुए दिख रहे हैं।
वे कहते हैं, "विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद ग्लोबल टाइम्स में जो ख़बरें छपी हैं उससे संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले निकट भविष्य में मोदी और जिनपिंग के बीच बातचीत हो सकती है।"
उनका मानना है कि जब तक दोनों देशों के नेता आपस में नहीं मिल लेते, तब तक विवाद पूरी तरह ख़त्म होता नहीं दिखता।
भारत के विदेश मंत्रालय के पूर्व प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने ट्वीट कर कहा कि विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद जारी हुआ साझा बयान 'ज़्यादा उत्साहित करने वाला' नहीं है, ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें अप्रैल माह के पहले की दोनों देशों की सीमाओं की यथास्थिति को बहाल करने की बात नहीं है।
उन्होंने यह भी लिखा है कि बयान में किसी तय समय सीमा का भी उल्लेख नहीं किया गया है। वे कहते हैं कि वो चमत्कार ही होगा, अगर जो बयान में कहा गया है वो सच हो जाए।
वहीं विदेश मामलों के जानकार समीर शरण अपने ट्वीट में लिखते हैं कि ये कोई साझा बयान नहीं है, बल्कि दोनों देशों ने अलग-अलग बयान जारी किये हैं जिनमे 'पाँच निरर्थक विचार' एक जैसे हैं।