मोदी-राजपक्षे वार्ता: भारत अचानक श्रीलंका के क़रीब क्यों जा रहा है?

BBC Hindi

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020 (07:36 IST)
भरनी धरन, बीबीसी तमिल
भारत और श्रीलंका के प्रधानमंत्रियों के बीच शनिवार को हुई वर्चुअल बातचीत को अभूतपूर्व कहा जा रहा है। बातचीत के समय को लेकर दोनों देशों के राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है।
 
शनिवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका में रहने वाले अल्पसंख्यक तमिल समुदाय के साथ शक्तियों के विकेंद्रीकरण करने वाले श्रीलंकाई संविधान के 13वें संशोधन को पूर्ण रूप से लागू करने की अपील की।
 
साथ ही उन्होंने भारत और श्रीलंका के बीच बौद्ध धर्म से जुड़े संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 1।5 करोड़ डॉलर की मदद की भी घोषणा की।
 
महिंदा राजपक्षे के श्रीलंका के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद ये पहली बार है जब राजपक्षे और मोदी के बीच वर्चुअल मुलाक़ात हुई है।
 
श्रीलंकाई तमिलों के अधिकारों को प्राथमिकता
मुलाक़ात के दौरान दोनों नेताओं ने द्वीपक्षीय आर्थिक संबंधों और भारत की मदद से होने वाली परियोजनाओं के बारे में चर्चा की लेकिन दोनों ने विस्तार से श्रीलंकाई तमिलों के अधिकारों के बारे में चर्चा की।
 
श्रीलंका में हाल में संपन्न हुए चुनावों में मौजूदा प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की पार्टी को दो-तिहाई बहुमत हासिल हुआ था। वहीं भारत के तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं।
 
इसके मद्देनज़र नरेंद्र मोदी और महिंदा राजपक्षे के बीच हुई वर्चुअल बातचीत में श्रीलंकाई संविधान के 13वें संशोधन को लेकर हुई चर्चा को बेहद अहम माना जा रहा है।
 
एक घंटे तक हुई इस बातचीत में दोनों देश आतंकवाद-विरोधी सहयोग बढ़ाने, समुद्री सुरक्षा संबंधों को आगे बढ़ाने, व्यापार और निवेश संबंधों को मज़बूत करने और कोलंबो बंदरगाह पर भारत-जापान इस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) परियोजना को लागू करने की बात पर सहमत हुए हैं।
 
दोनों देशों के साझा बयान और इसके उद्देश्य
अपनी स्पीच में मोदी ने शांति और सहभागिता बढ़ाने के लिए श्रीलंकाई संविधान के 13वें संशोधन को पूर्ण रूप से लागू करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। दिल्ली में मौजूद विदेश मंत्रालय (हिंद महासागर क्षेत्र) के संयुक्त सचिव अमित नारंग ने इस बात की पुष्टि की है।
 
अमित नारंग ने बताया, "भारतीय प्रधानमंत्री ने श्रीलंका की नई सरकार से अपील की कि वो तमिलों की आकांक्षाओं का सम्मान करें और उनकी समानता, न्याय, शांति और प्रतिष्ठा के लिए संविधान के प्रावधान को पूरी तरह लागू करें। "
 
इस वर्चुअल मुलाक़ात के बाद दोनों देशों की तरफ़ से एक साझा बयान जारी किया गया जिसमें श्रीलंकाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने उम्मीद जताई कि "उनका देश, तमिलों समेत देश में रहने वाले सभी नस्लीय समूहों की आकांक्षाओं पर खरा उतरेगा और लोगों के बीच सहभागिता का सम्मान करते हुए संविधान के प्रावधानों को लागू करेगा।"
 
संविधान का 13वां संशोधन क्या है?
श्रीलंकाई संविधान का 13वां संशोधन, शक्ति का विकेंद्रीकरण कर वहां रह रहे तमिल समुदाय को अधिक ताक़त देने का रास्ता साफ़ करता है। 1987 में हुए भारत-श्रीलंका समझौते के मद्देनज़र भारत लगातार संविधान के इस संशोधन को लागू करने के लिए ज़ोर देता रहा है।
 
संविधान का ये संशोधन श्रीलंकाई संसद में 14 नवंबर, 1987 को पारित हुआ था। इसका उद्देश्य देश में नस्लवाद के मुद्दे को हल करना और देश की एकता, संप्रभुता बढ़ावा देना और अधिक स्थायित्व लाना था।
 
तमिल समुदाय जिन प्रांतीय काउंसिल में रहते हैं उन्हें राजनीति में अधिक ताक़त देने के लिए 13वें संशोधन को लाया गया था।
 
श्रीलंकाई सेना और एलटीटीई (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल इलम) के बीच जारी गृहयुद्ध 2009 में ख़त्म हो गया था लेकिन संविधान का ये संशोधन अक्षरश: लागू नहीं हो पाया, बल्कि चुनावों के दौरान तमिलों के वोट पाने के लिए एक स्लोगन के तौर पर इसका इस्तमाल किया जाता रहा।
 
इस मुद्दे को लेकर तमिलनाडु में काफ़ी सहानुभूति है और जो पार्टी श्रीलंका में संविधान के 13वें संशोधन को लागू करने की बात करेगी उसे तमिलनाडु में तमिलों के हितैषी के तौर पर देखा जाएगा।
 
लेकिन हाल में, ख़ास कर राजपक्षे परिवार के एक बार फिर सत्ता पर क़ाबिज़ होने के बाद श्रीलंका में संविधान के 13वें संशोधन में बदलाव करने या फिर वापिस लेने को लेकर माँग तेज़ हुई है। श्रीलंका में तमिल पार्टियां और कई संगठन इस क़दम के विरोध में हैं।
 
बंदरगाह की परियोजना के लिए भारतीय मदद
बातचीत के दौरान भारत ने कोलंबो बंदरगाह पर बनने वाले भारत-जापान इस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) का मुद्दा भी उठाया।
 
साल 2019 में भारत, जापान और श्रीलंका के बीच इस संबंध में समझौते पर हत्साक्षर हुए थे, लेकिन इसके एक साल बाद श्रीलंका ने इस परियोजना को होल्ड पर डाल दिया।
 
इस परियोजना के बारे में अमित नारंग ने बताया, "प्रधानमंत्री मोदी ने उम्मीद जताई कि परियोजना को लागू करने के लिए नई सरकार जल्द और निर्णायक क़दम उठाएगी।"
 
दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत में मोदी ने ये भी उम्मीद जताई कि भारत से आयात की जाने वाली कुछ वस्तुओं पर श्रीलंका ने जो अस्थायी प्रतिबंध लगाए हैं उन्हें वो जल्द हटा लेगा और इससे देश की अर्थव्यवस्था और लोगों को लाभ पहुँचेगा।
 
जानकारी साझा करने पर बनी सहमति
दोनों नेताओं में आतंकवाद विरोधी गतिविधियों और समीक्षा को लेकर सहभागिता करने, कैपेसिटी बिल्डिंग और मादक पदार्थों की तस्करी रोकने के लिए ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने पर भी सहमति बन गई है।
 
साझा बयान में कहा गया है कि दोनों नेताओं में द्विपक्षीय समझौतों और क़रार पर परामर्श और बंदरगाहों और उर्जा के क्षेत्र में बुनियादी ढांचा और कनेक्टिविटी परियोजनाओं में तेज़ी लाने को लेकर भी सहमति बनी है।
 
दोनों देशों के बीच लंबे वक़्त से चले आ रहे संबंधों और सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में ज़िक्र करते हुए मोदी ने बौद्ध धर्म से जुड़े संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 1।5 करोड़ डॉलर की मदद का भी ऐलान किया। दोनों नेताओं ने आर्थिक मामलों पर भी विस्तार से चर्चा की।
 
अमित नारंग कहते हैं, "कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए संकट से निपटने के लिए और आर्थिक सुधारों में मदद के लिए भारत ने पहले ही श्रीलंका के केंद्रीय बैंक को 40 करोड़ डॉलर की करेंसी के विनिमय की सुविधा दी है। श्रीलंका की तरफ़ से 1 अरब डॉलर की करेंसी के विनिमय की सुविधा की गुज़ारिश पर भी चर्चा जारी है।"
 
नारंग कहते हैं, "ऋण अदायगी को लेकर किए गए श्रीलंका के अनुरोध पर फ़िलहाल तकनीकी चर्चा चल रही है और जल्द ही इस पर आपसी समझ बन सकती है।"
 
पकड़े गए मछुआरों के प्रति मानवीय व्यवहार
समुद्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करने वाले मछुआरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए इसे लेकर भी दोनों नेताओं के बीच बातचीत के दौरान चर्चा हुई।
 
नारंग ने बताया, "लोगों के आदान-प्रदान और प्रशिक्षण, समुद्री मामलों में सुरक्षा सहयोग और रक्षा क्षेत्रों में श्रीलंका को भारत के समर्थन में आपसी सहयोग को जारी रखने और आगे बढ़ाने पर दोनों नेताओं में सहमति बनी है।"
 
"दोनों नेताओं ने मछुआरों की समस्या के बारे में चर्चा की और इस पर मानवीय दृष्टिकोण रखने और द्विपक्षीय रास्तों के ज़रिए इस पर चर्चा करने पर भी सहमति जताई।"
 
बातचीत के दौरान दोनों नेताओं के बीच श्रीलंका में भारतीय सहयोग से होने वाले कार्यक्रमों पर भी चर्चा हुई और दोनों में ये सहमति बनी है कि हाई इंपैक्ट कम्युनिटी डेवेलपमेंट प्रोग्राम्स को 2020 के बाद पाँच और साल के लिए बढ़ाया जाएगा।
 
नारंग कहते हैं, "मोदी और राजपक्षे इस बात पर सहमत हुए कि श्रीलंका में चल रहे इंडियन हाउसिंग प्रोजेक्ट को जारी रखने और प्लांटेशन सेक्टर में 10,000 घर बनाने की परियोजना में तेज़ी लाने के लिए संबिधित अधिकारियों को आदेश दिए जाएंगे।"
 
महिंदा राजपक्षे ने कहा कि इस प्रांत में सभी का सहयोग करने के विज़न के साथ कोविड-19 महामारी से लड़ने में प्रधानमंत्री मोदी ने मज़बूत नेतृत्व का परिचय दिया है।
 
दोनों नेता इस बात पर समहत हुए कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए मौजूदा हालात नए मौक़े प्रदान करते हैं।
 
दोनों नेताओं ने इस बात की ख़ुशी जताई कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए भारत और श्रीलंका ने साथ मिल कर काम किया। मोदी ने एक बार फिर भरोसा दिलाया कि श्रीलंका में स्वास्थ्य और आर्थिक क्षेत्र में कोरोना महामारी का असर कम हो इसके लिए भारत सभी प्रकार का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है।
 
दोनों नेताओं में बौद्ध धर्म, आयुर्वेद और योग जैसी साझी विरासत के क्षेत्र में नए अवसर खोज कर लोगों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को और मज़बूत बनाने के बारे में भी चर्चा हुई।
 
भारत सरकार ने कहा कि वो बौद्धों में पवित्र माने जाने वाले कुशीनगर की यात्रा के लिए श्रीलंकाई बौद्ध तीर्थयात्रियों के एक प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करेगा। बौद्ध धर्म में कुशीनगर के महत्व को देखते हुए हाल में इसे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा घोषित किया गया है।
 
राजपक्षे ने भारतीय प्रधानमंत्री की बौद्ध धर्म से जुड़े संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 1।5 करोड़ डॉलर की मदद का स्वागत किया है। उन्होंने कहा है कि इससे बौद्धमठों का निर्माण और रखरखाव और लोगों की क्षमता में विकास करने के साथ-साथ सांस्कृतिक, पुरातात्विक सहयोग होगा और भगवान बुद्ध के अवशेषों को अधिक लोगों तक पहुँचाने में मदद मिलेगी और इससे दोनों देशों के लोगों के बीच संबंध गहरे होंगे।
 
महिंदा राजपक्षे ने देश के समुद्रतट के नज़दीक 2,70,000 मैट्रिक टन कच्चा तेल ले जा रहे एक जहाज़ में आग लगने को लेकर भारतीय नौसेना और तटरक्षक बलों ने जो तत्परता दिखाई उसके लिए उनकी सराहना की।
 
इस वर्चुअल बैठक के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री के साथ उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल मौजूद था जिसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रिंगला शामिल थे।
 
बैठक के आख़िर में महिंदा राजपक्षे ने 2021-22 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का ग़ैर-स्थायी सदस्य चुने जाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मिल रहे समर्थन के लिए मोदी को मुबारकबाद दी।
 
इस नज़दीकी का कारण आख़िर क्या है?
चीन के साथ जारी सीमा विवाद के चलते भारत पहले ही देश के पूर्व, उत्तर और उत्तरपूर्व इलाक़े में अपनी सेना की तैनाती बढ़ा रहा है।
 
पूर्वी लद्दाख के इलाक़े में हुए टकराव के बाद से दोनों देशों में तनाव की स्थिति है। हाल में दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच बातचीत में सहमति बनी कि दोनों तरफ़ से फ़िलहाल भड़काने वाला कोई क़दम नहीं उठाया जाएगा। लेकिन फ्रंटलाइन में इस बात पर कितना अमल हो सकेगा इस पर अभी सवालिया निशान हैं।
 
एक तरफ़ जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर चीन पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है तो दूसरी तरफ़ वो नेपाल के साथ अपने संबंध मज़बूत कर रहा है। हाल में जब भारत ने प्याज़ के निर्यात पर रोक लगाई तब चीन ने आगे बढ़ कर वहां प्याज़ की सप्लाई की।
 
नेपाल में चीन कई तरह की सड़क परियोजनाओं को भी अंजाम दे रहा है और उसका दावा है कि नेपाल को लेकर चल रही परियोजनाओं के मामले में वो भारत के मुक़ाबले में नेपाल के अधिक क़रीब है।
 
भारत के दक्षिण में अगर चीन को अपनी स्थिति मज़बूत करनी है तो वहां पर श्रीलंका एकमात्र देश है जहां वो अपनी पकड़ मज़बूत कर सकता है। यही कारण है कि चीन श्रीलंका में निवेश और नज़दीकी, दोनों बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
 
श्रीलंका में गृहयुद्ध ख़त्म होने के बाद से चीन वहां के समुद्र में और सड़कों और हाउंसिंग प्रोजेक्ट में भारत के मुक़ाबले कहीं अधिक निवेश कर रहा है।
 
इस संदर्भ में दक्षिण एशिया मामलों पर नज़र रखने वालों का कहना है कि चीन के अप्रत्यक्ष ख़तरे से भारत को नुक़सान न पहुंचे इसलिए भारत श्रीलंका के प्रधानमंत्री से बातचीत कर रहा है।
 
संबंध कभी नीम तो कभी शहद
साल 2015 में जब महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे उन्होंने चुनावों में अपनी हार के लिए भारतीय ख़ुफ़िया एंजेंसी रॉ को ज़िम्मेदार ठहराया था। 2018 में श्रीलंकाई राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने भी भारत पर इसी तरह के आरोप लगाए।
 
लेकिन दोनों देशों के बीच कड़वाहट कम करने में और रिश्तों को फिर से मधुर बनाने में कूटनीतिज्ञों को ढाई साल का वक़्त लग गया।
 
जानकार कहते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इससे पहले कभी भी महिंदा राजपक्षे से हुई आधिकारिक बातचीत की जानकारी सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं की।
 
लेकिन इस बार उन्होंने सोशल मीडिया में इस बातचीत के बारे में न केवल अंग्रेज़ी में पोस्ट किया बल्कि तमिल और सिन्हला में भी पोस्ट किया।
 
उनका ये क़दम दर्शाता है कि भारत की मोदी सरकार श्रीलंका और भारत में अपनी छवि बनाने के लिए एक तरफ़ वहां रहने वाले तमिलों और सिन्हली लोगों को समान रूप से देखती है तो दूसरी तरफ़ अपनी कोशिशों से भारत के तमिलों का ध्यान भी अपनी ओर खींच सकती है।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी