'गूंगी गुड़िया' इंदिरा गांधी कैसे बनीं आयरन लेडी?

Webdunia
सोमवार, 20 नवंबर 2017 (11:32 IST)
- सईद नक़वी (वरिष्ठ पत्रकार)
इंदिरा गांधी से पहले मैंने फ़िरोज़ गांधी को करीब से देखा था। क्योंकि फ़िरोज़ के संसदीय क्षेत्र में ही मेरे चाचा सैयद वसी नक़वी की रायबरेली विधानसभा सीट थी। चाचा का घर ही चुनाव मुख्यालय था। सामंतवादी अवध के मध्य में, नेहरू परिवार के प्रति लोगों में बहुत सम्मान था लिहाजा वो बेअदब टिप्पणी नहीं करते थे।
 
लेकिन दबी ज़ुबान में फ़िरोज़ के मूल को लेकर लोगों के बीच काना-फूसी होती थी, ज्यादातर कृष्ण होटल में जहां चुनाव अभियान के दौरान वो बिना खिड़की वाले ठंडे कमरे में ठहरे थे। मुझे याद है कि एक बार इंदिरा गांधी भी वहां ठहरी थीं। कैसे देश के बड़े ब्राह्मण परिवार की बेटी एक 'बनिया' से शादी कर सकती है। 'घांदी', सीधे-सीधे एक बनिया नाम है, वो अपनी बात ख़त्म करते हैं।
 
फ़िरोज़ जहांगीर "घांदी"
फ़िरोज़ का वास्तविक नाम फ़िरोज़ जहांगीर "घांदी" था, जो स्वादिष्ट धानसाक डिश की तुलना में अधिक पारसी था। इंदिरा गांधी की मदद से, घांदी में थोड़ा बदलाव कर इसे गांधी बना दिया गया और कांग्रेस नेटवर्क ने इसका नेहरू-गांधी परिवार के रूप में बढ़-चढ़ कर प्रचार किया। इसके साथ ही परिवार जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के एक अकाट्य मेल का प्रतिनिधित्व करने लगा।
 
1966 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद में आकस्मिक निधन के बाद, पार्टी के रूढ़िवादी धड़े के उम्मीदवार मोरारजी देसाई को हराकर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। जिस पहले आम चुनाव में उन्होंने पार्टी का नेतृत्व किया वो एक झटका थाः कांग्रेस आठ राज्यों में चुनाव हार गई। संसद में भी संख्या बल घट गया, जिससे डॉक्टर राम मनोहर लोहिया को उन पर कटाक्ष करने का मौका मिला।
 
"गूंगी गुड़िया"
समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इंदिरा को संसद में कई बार "गूंगी गुड़िया" कहा। पूर्व भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) अधिकारी और फॉरवर्ड ब्लॉक नेता एचवी कामथ ने राजा दिनेश सिंह को जूनियर सांसद से उप मंत्री और फ़िर राज्य मंत्री बनाने में उनसे विशेष छूट ली थी।
 
"स्पष्ट तौर पर ये पदोन्नति उनकी छिपी हुई प्रतिभा के लिए थी, जिसका पता केवल प्रधानमंत्री को ही था।" उन पर छिटपुट कानाफूसी भी हुई थीं। वास्तव में, प्रधानमंत्री आवास के केंद्रीय कक्ष में एथलेटिक साधु, धीरेंद्र ब्रह्मचारी की मौजूदगी पर नाराज़गी थी। लेकिन यह व्यवस्था जिसमें ब्राह्मण और सामंती दोनों इतने प्रबल थे कि इस पर गॉसिप होने की क्षमता व्याप्त थी।
 
ईएमएस सरकार की बर्खास्तगी
यह वास्तविकता कि वो नेहरू की बेटी थी, 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के पीछे सबसे बड़ा कारण था। इससे निश्चित ही पार्टी के दक्षिणपंथी धड़े में उनके ख़िलाफ़ कुछ विरोधी उत्पन्न हुए। इस गुट को शांत करने के लिए उन्होंने केरल की सत्ता में ढाई साल पहले चुनकर आई पहली कम्युनिस्ट सरकार को पलटकर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया, विडंबना तो यह थी कि खुद इंदिरा को उसी साल पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था।
 
उन्होंने प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता और पहले मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद की सरकार को बर्खास्त किया था। राष्ट्रपति शासन लगाने को कानून-व्यवस्था का उल्लंघन बताया गया था। दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर झुकाव को इंदिरा ने 1969 में कांग्रेस के विभाजन, बैंकों के राष्ट्रीयकरण से और राजा-महाराजाओं के प्रिवी पर्स बंद करके संतुलित कर दिया। हालांकि, लंदन स्थित टाइम्स की पत्रकार पीटर हेजलहर्स्ट उन्हें "स्वार्थ की ओर झुकाव" वाला बताती हैं।
 
 
जब वाजपेयी ने इंदिरा को "दुर्गा" कहा
इंदिरा के मुख्य सचिव पीएन हस्कर बेशक एक वामपंथी थे, लेकिन उनके कैबिनेट मंत्री और सलाहकार मोहन कुमारमंगलम थे जिन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ रहने पर ज़ोर दिया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव श्रीपाद डांगे इसे एकता और संघर्ष की नीति कहते थे, यानी, कांग्रेस समर्थित नीतियों पर एकजुट हो जाना और इसके जन विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष।
वाम के प्रति झुकाव तब अपने चरम पर था जब सोवियत की मदद से इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश बनाने में अपना दखल दिया। उनकी प्रसिद्धि अपने चरम पर थी। यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी ने भी तब उन्हें "दुर्गा" कहा था। कम्युनिस्टों के साथ इस सुखद मौज मस्ती ने भारत और विश्व व्यवस्था में कोलाहल मचा दिया, खासकर उस समय जब दूसरे देशों के साथ संबंधों में सुधार करना पश्चिम के लिए आसान नहीं था।
 
इस ख़तरनाक बदलाव की बदौलत कांग्रेस के अंदर या बाहर के समाजवादी, अमरीकी कांग्रेस रुढिवादमुखी, जन संघ (आज की बीजेपी) सभी इंदिरा के अपरिभाषित भ्रष्टाचार के विरोध में धुर गांधीवादी विचारधारा पूर्व समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण के तले एक जुट हुए जिसे जेपी आंदोलन या बिहार आंदोलन के नाम से जाना गया।
 
जेपी आंदोलन का दबाव
इंदिरा गांधी जेपी आंदोलन की वजह से बेहद दबाव में आ गईं। जेपी ने आंदोलन के दौरान मुझे कदम कुआं स्थित घर पर रहने के लिए बुलाया था। इसकी वजह से इंदिरा गांधी ने मुझे नेहरू परिवार के एक पुराने मित्र मोहम्मद यूनुस, जो मुझे भी जानते थे, के जरिये मुझे बुलवाया।
 
उनकी पूछताछ ज्यादातर राजनीतिक मसलों पर थी, क्या जेपी श्याम नंदन मिश्रा पर भरोसा करते हैं? क्या दिनेश सिंह वाकई जेपी के क़रीबी हैं? इन दोनों ही नेताओं ने जेपी और इंदिरा गांधी के बीच मैसेज भेजने का प्रयास किया था। जैसे दुनिया के मुल्कों के बीच नेहरू ने भारत की भव्यता का प्रतिनिधित्व किया, इंदिरा गांधी ने ताक़त दिखाई। लेकिन जेपी आंदोलन के बढ़ने के साथ ही स्पष्ट तौर पर वो परेशान भी थीं।
 
आपातकाल के बाद का पहला इंटरव्यू
जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने छोटी सी चुनावी चूक के कारण उनकी संसद सदस्यता खारिज कर दी तो वो असहज हो गयीं। यह उनके छोटे बेटे थे जिन्होंने 25 जून 1975 को आपातकाल घोषित किया था। उन्होंने इंदिरा गांधी के मुख्य अधिकारियों पीएन हक्सर और मीडिया प्रभारी शारदा प्रसाद को भी हटा दिया।
 
यूनुस भाई (मोहम्मद यूनुस) इंदिरा के साथ संजय के भी करीबी थे और उन्होंने खुद को विशेष प्रतिनिधि बनवा लिया। उनके काम के दायरे की वजह से उन्हें मीडिया में भी दिलचस्पी लेने का मौका मिला। उन्होंने मुझे एक काम दिया जिससे मुझे श्रीमती गांधी के उस पक्ष को देखने का मौका मिला जो मुझे नहीं लगता कि किसी और ने देखा होगा। मैं संडे टाइम्स लंदन के इंटरव्यू के सिलसिले में उनसे मिला। मैं भारत में उसका स्ट्रिंगर था।
 
यह बहुत ही सनसनीखेज होने वाला था क्योंकि इंदिरा गांधी के आपातकाल घोषित करने के बाद से यह उनका पहला इंटरव्यू था। श्रीमती गांधी बिल्कुल ख़ामोश रहीं। उन्होंने मेरे एक भी प्रश्न का जवाब नहीं दिया। वो चेहरे पर बिना किसी हाव-भाव के बस दीवार की ओर टकटकी लगाकर देखती रहीं, और एक क़ागज पर बिना देखे कुछ बनाती रहीं।
 
आयरन लेडी
लेकिन केवल यही श्रीमती गांधी की परिभाषित छवि नहीं थी। अन्य भी हैं जैसे बांग्लादेश युद्ध का समय, जिसने उन्हें आयरन लेडी के तौर पर प्रतिष्ठा दी। लेकिन उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि साफ़-सुथरी नहीं रही, खासकर जब वो 1982 के जम्मू चुनाव में सांप्रदायिक रंगों में आयीं।
 
जम्मू में कांग्रेस के चुनावी अभियान को मिले सांप्रदायिक स्वर की पृष्ठभूमि पंजाब में खालिस्तान आंदोलन है। हालांकि, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी यह प्रवृत्ति बनी रही। राजीव गांधी को सहानुभूति की लहर के कारण संसद के कुल 514 में से 404 सीटों पर अभूतपूर्व जीत मिली। ये वो है जैसा हम सोचते हैं। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक, यह अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ हिंदू एकीकरण था।
 
इस वाकये में सवालों के घेरे में सिख हो सकते हैं, लेकिन हिंदू एकजुटता को पार्टी ने एक सूत्र के रूप में अपनाया जिसे सभी अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ समान रूप से इस्तेमाल किया गया।
 
मुस्लिम तुष्टीकरण बनाम हिंदू एकजुटता
और तब कम लोगों को आश्चर्य हुआ जब 1989 में राजीव गांधी ने राम राज्य के वादे के साथ अयोध्या से अपना चुनावी अभियान शुरू किया। वो इलाहाबाद हाई कोर्ट की रोक का उल्लंघन करते हुए ठीक उसी जगह पर राम मंदिर के शिलान्यास को राज़ी हो गये जहां विश्व हिंदू परिषद ने उसकी मांग की थी।
 
यह ट्रेंड ज्यों का त्यों आज भी चला आ रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव की शुरुआत मंदिर जाकर की है। मुख्य रूप से एक हिंदू देश में नेताओं का मंदिरों में जाना सामान्य तौर कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। लेकिन चुनाव के मौसम आते ही, मंदिर जाना यह सुनिश्चित करता है कि बीजेपी कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण पार्टी के रूप में आरोप न मढे।
 
60 वर्षों के कांग्रेस राज में मुस्लिमों का तुष्टिकरण किस प्रकार किया गया है यह 2005 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से ही स्पष्ट हो गया था। तब इस तुष्टीकरण के आरोप से डर भला क्यों? उदारवादी हलकों में अब यह गान आम है कि कांग्रेस और बीजेपी में हक़ीक़त में कोई अंतर नहीं है। इंदिरा गांधी भी इस गान के तेज़ होते स्वर के उत्तरदायित्व से बच नहीं सकतीं।

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